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‘ यौन हिंसा से पीड़ित महिला का इलाज करने से इंकार नहीं कर सकते डॉक्टर ’

महिला हिंसा के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय 16 दिवसीय अभियान के अंतर्गत आली और  एफपीएआई ने “महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में स्वास्थ्य प्रणाली की भूमिका” पर कार्यशाला का आयोजन किया

लखनऊ. एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिवस (आली) व फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (एफ पीएआई.) द्वारा महिला हिंसा के विरूद्ध अंतर्राष्ट्रीय 16 दिवसीय अभियान के तहत 9 दिसम्बर को लखनऊ के एक होटल में में  “ महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में स्वास्थ्य प्रणाली व डाक्टर की भूमिका ” पर निजी चिकित्सकों के साथ कार्यशाला का आयोजन किया. इसमें लखनऊ के 50 निजी चिकित्सकों ने भागीदारी की.

कार्यशाला में आली की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा ने क़ानून व नीतियों के अंतर्गत स्वास्थ्य प्रणाली की भूमिका के तकनीकीपहलुओं को निजी चिकित्सकों के साथ साझा किया. उन्होंने कहा कि एनसीआरबी की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में यौन हिंसा के मामलों में न्यायालय द्वारा दोषी सिद्ध का औसत दर 28% है. यौन हिंसा के मामलो में न्यायालय में मेडिकल साक्ष्य एक महत्वपूर्ण साक्ष्य के तौर पर माना गया है, जिसका सीधा असर दोष सिद्ध रेट से भी है . वर्ष 2013 में धारा 166B  भारतीय दण्ड संहिता में जोड़ा गया. इस कानून में सरकारी व निजी डॉक्टरों की भूमिका तय की गयी है जिसमे साफ़ तौर पर यह लिखा गया है की यदि कोई डॉक्टर किसी यौन हिंसा से पीड़ित महिला का इलाज करने से इंकार करते है तो उनके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट दर्ज कर सकती है किन्तु आज भी सरकारी व गैर सरकारी डॉक्टर इसे नहीं जानते. ”

आली संस्था की केस वर्क यूनिट की प्रभारी अपूर्वा श्रीवास्तव ने कहा कि संस्था द्वारा सन 2016 में विभाग के साथ क्षमता वर्धन पहल में उत्तर प्रदेश के लगभग 50 जिलों के सरकारी डाक्टरों के साथ दो-दिवसीय जेंडर संवेदीकरण ज़ोनल कार्यशाला में भाग लिया था, जिसमे उनके साथ घरेलू हिंसा व यौन हिंसा के अलग-अलग पहलू और उनकी भूमिका पर चर्चा की गयी थी. उसी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए इस बार निजी डाक्टरों के साथ महिलाओं पर हो रही यौन हिंसा को रोकने के लिए अपने आप को फौरी राहतकर्ता के रूप में अपनी भूमिका बढ़ाने की अपील की गई है.

कार्यशाला में आए निजी डाक्टरों द्वारा अनुभवों के साझा करने के दौरान यह निकल कर आया कि यौन हिंसा के मामलो और कृत्यों का दायरा बहुत व्यापक है तथा उनके पहल करने से कई महिलाओं को उनके अधिकार प्राप्त हो सकते है और उनका सही इलाज हो सकता है. यौन हिंसा व घरेलू हिंसा कानूनों में निजी चिकित्सक की भूमिका से जुडी भ्रांतियों पर भी चर्चा हुई जिससे वे ऐसे मामलो में सक्रिय रूप से राहत प्रदान कर सकें.

एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव्स (आली) एक नारीवादी कानूनी पैरोकारी एंव संदर्भ केन्द्र है जो वर्ष 1998 से महिला मानवाधिकारो की स्थापना के लिए तकनीकी समर्थन एवं कानूनी सन्दर्भ केन्द्र के रूप में अधिकार आधारित समझ एवं नारीवादी परिपेक्ष्य के साथ कार्य करती रही है. आली अपनी स्थापना के समय से ही महिलाओं तथा बच्चों के साथ होने वाली हिंसा के खिलाफ उत्तर प्रदेश, झारखण्ड व अन्य राज्यो में साथी संस्थाओं के सहयोग से काम करती आ रही है तथा उनसे सम्बन्धित कानूनो के प्रति जागरूकता और कानून के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सक्रिय प्रयास करती रही है.
1949 में स्थापित फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफपीएआई जिसे अब एफपीए इंडिया कहा जाता है) देश का सबसे बड़ा स्वैच्छिक परिवार नियोजन संगठन है. एफपीएआई ने परिवार नियोजन, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य, लिंग आधारित हिंसा, महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा देने, किशोरों की विशिष्ट जरूरतों, पुरुषों और समूहों को वंचित और वंचित क्षेत्रों में बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाई है। एफपीए इंडिया, लखनऊ शाखा 1965 में स्थापित हुई थी.

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