और इसी परियोजना के तहत हमारी गौरवशाली विरासत की कथा कहता स्थापत्य का वह जीता जागता फाटक, जिसके अन्दर कुछ लोगों का रोजगार भी चलता था, उसे जमींदोज कर दिया गया । एल सी डी स्क्रीन पर मिथकों को इतिहास बताने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी 16वीं शताब्दी में बने इस ऐतिहासिक गेट को विकास के नाम पर तोड़ने की ही वकालत करते नजर आते हैं ( टाइम्स आफ इंडिया, 29 अगस्त, 2018)। पुरातत्व विभाग के इंचार्जअधिकारी अविनाश चंद्र मिश्र कहते हैं कि ” ए डी ए की इन्क्वायरी पर हमने उन्हें दो बातें साफ कर दी ,पहली कि यह एक ऐतिहासिक महत्व का स्थल है और दूसरी कि यह पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित नहीं है (टाइम्स आफ इंडिया ,29 अगस्त,2018)।
दिव्य कुंभ के नाम पर सड़क चौड़ीकरण के लिए किसी ऐतिहासिक विरासत की हत्या का यह कुत्सित कृत्य विकास के नाम पर किया गया ।विकास की यह कैसी विनाशलीला है जो जीवित इतिहास को दफनाने में लगी है और मिथकों, कथाओं को इतिहास बनाने पर तुली है ।
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