समकालीन जनमत
ज़ेर-ए-बहस

नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 और कुछ नहीं पिछले दरवाजे से लाया गया ‘ हिन्‍दू राष्‍ट्र बिल ’ है

मोदी सरकार 1955 के नागरिकता कानून में संशोधन कर भारतीय गणतंत्र के मूल स्‍वरूप को ही बदल देना चाहती है. अपनी ‘ हिन्‍दू राष्‍ट्र ‘ की फासीवादी अवधारणा के अनुरूप प्रस्‍तावित नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 के द्वारा भारत में आने वाले शरणार्थियों को वह उनके धार्मिक जुड़ाव और पहचान के आधार पर बांट कर देखना चाहती है। इस संशोधन विधेयक के अनुसार अफगानिस्‍तान, बंगलादेश और पाकिस्‍तान से बगैर वैध कागजातों के साथ आने वाले गैरमुस्लिम शरणार्थियों को गैर कानूनी प्रवासी नहीं माना जायेगा और उन्‍हें भारतीय नागरिकता मौजूदा प्रावधानों से ज्‍यादा आसान शर्तों पर दे दी जायेगी.

धर्म के आधार पर नागरिकता दिलाने की यह कवायद खुल्‍लमखुल्‍ला ‘ हिन्‍दू राष्‍ट्र ‘ को पिछले दरवाजे से प्रवेश कराने और मुस्लिम शरणार्थियों को घुसपैठिया बता कर प्रताड़ित करने की साजिश का हिस्‍सा है.

नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 का असम में तीखा विरोध हो रहा है जहां भाजपा की मंशा असम समझौते की मूल भावना की अवहेलना करते हुए हिन्‍दू बंग्‍लादेशियों को बसाने की है. असम के हितों के साथ खिलवाड़ करके, और भारत के संविधान में दी गई धर्मनिरपेक्षता के आधार पर भारतीय नागरिकता की परिभाषा को बदल कर, भाजपा द्वारा की जा रही इस साम्‍प्रदायिक राजनीति के खिलाफ असम की जनता आज सड़कों पर आन्‍दोलन कर रही है.

इस बिल में एक और प्रावधान है जिसके अनुसार किसी ‘ वर्तमान में लागू कानून ‘ का उल्‍लंघन होने पर प्रवासी भारतीयों की नागरिकता को रद्द किया जा सकता है. हमारे देश की सरकार ललित मोदी, विजय माल्‍या और नीरव मोदी जैसे अपराधियों को तो पकड़ने की बजाय विदेशों में सुरक्षित भेज दे रही है, ऐसे में जाहिर है कि इस प्रावधान का प्रयोग भारत में होने वाले अन्‍याय और अत्‍याचार के खिलाफ बोलने वाले एन.आर.आई. और विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों के खिलाफ ही होगा. नागरिकता खत्‍म होने के डर से विदेश स्थित कोई भी भारतीय नागरिक सरकार की नीतियों का विरोध नहीं कर सकेगा.

विभिन्‍न धर्मों के मानने वाले भारत में शरण लेने आ सकते हैं, उन्‍हें आना भी चाहिए. तमाम तरह के सामाजिक व राजनीतिक उत्‍पीड़न से लेकर आर्थिक कठिनाइयां, प्राकृतिक आपदायें और पर्यावरण परिवर्तन जैसे कई कारण उन्‍हें इसके लिए बाध्‍य कर सकते हैं. म्‍यांमार के बेहद उत्‍पीडि़त एवं बेघर रोहिंग्‍या शरणार्थियों को भाजपा भारत से वापस भेजना चाहती है, वहीं भारत के पड़ोसी देशों के हिन्‍दू शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रस्‍ताव दे रही है. एक धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक गणतंत्र में धर्म न तो नागरिकता देने का आधार बन सकता है, और न ही न्‍याय, सम्‍मान व मानवीय आधार पर शरणार्थियों को शरण देने का पैमाना बन सकता है.

भारत अभी तक संयुक्‍त राष्‍ट्र शरणार्थी कन्‍वेंशन 1955 और उसके 1967 में बने प्रोटोकॉल पर हस्‍ताक्षर करने से बचता रहा है. भारत को तत्‍काल इस कन्‍वेंशन, जिसमें करीब 145 देश शामिल हैं, का हस्‍ताक्षरी (सिग्‍नेटरी) बन जाना चाहिए.  यह कन्‍वेंशन शरणार्थियों के धार्मिक एवं आवागमन के अधिकार, काम करने,शिक्षा पाने एवं यात्रा के वैध कागजात हासिल करने के अधिकारों, को सुनिश्चित करवाता है. इसमें एक महत्‍वपूर्ण प्रावधान यह भी है कि किसी शरणार्थी को ऐसे देश में वापस नहीं भेजा जा सकता जहां उसके उत्‍पीड़न की सम्‍भावना हो।

अंतर्राष्‍ट्रीय कानून (इंटरनेशनल लॉ) में भी यह आम प्रचलन में है, और सभी देश इसके लिए बाध्‍य हैं – जो यू.एन. कन्‍वेंशन में शामिल नहीं हैं वे भी – कि कोई भी देश जबरन शरणार्थियों को ऐसे देश में नहीं भेज सकता है जहां उनके उत्‍पीड़न की सम्‍भावना हो अथवा उनकी जान को खतरा हो.

भाजपा नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 के माध्‍यम से भारत को हिन्‍दुओं के वैश्विक ‘ घर ‘ के रूप में दिखाना चाहती है। यह विधेयक इजरायली मॉडल पर बना है – जिस प्रकार इजरायल में दुनिया के किसी भी यहूदी को ‘वापसी का अधिकार ‘ दिया गया है, उसी प्रकार मोदी सरकार भी पड़ोसी देशों के ‘ उत्‍पीडि़त हिन्‍दुओं ‘ को ‘वापसी का अधिकार ‘ देना चाहती है। यह और कुछ नहीं पिछले दरवाजे से लाया गया एक ‘हिन्‍दू राष्‍ट्र बिल ‘ ही है।

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion