समकालीन जनमत

Category : कविता

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अमरेन्‍द्र कुमार की कविताओं में काव्‍य परंपरा का बोध अभिव्यक्त होता है

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कुमार मुकुल   अमरेन्‍द्र कुमार की कविताएँ पढ़ते लगता है कि अरसा बाद कोई सचमुच का कवि मिला है, अपनी सच्‍ची जिद, उमंग, उल्‍लास और...
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अपराजिता अनामिका की कविताएँ पुरुष प्रधान समाज से प्रतिवाद करती स्त्री अस्मिता की पक्षधर हैं

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गुंजन विधान किसी कवि के शुरुआती दौर में जो आवेग और मौजूदा सामाजिक ढांचे के साथ ऐतिहासिक समझ होनी चाहिए वह अपराजिता अनामिका में मौजूद...
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सत्यम तिवारी की कविताएँ व्यवस्था के दंभ से व्यक्ति के भीतर पनप रहे अन्तर्द्वंद को व्यक्त करती हैं

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अनुराग यादव सफलता की नयी-नयी मिसालें स्थापित करने के वर्तमान समय में एक व्यक्ति के भीतर बढ़‌ती बेचैनी को दर्शाने का सफ‌ल प्रयास सत्यम तिवारी...
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एकता वर्मा की कविताएँ स्त्री मन की पीड़ा और अमानवीय होते समय की कविताएँ हैं

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श्रीधर करुणानिधि कविताएँ सिर्फ़ सूचना नहीं देतीं भावपूर्ण स्थितियों के माध्यम से खुद की अभिव्यक्ति पर पहुँच कर थम जाती हैं और बाकी का काम...
कवितास्मृति

तरुण भारतीय की कविताएँ हिंदी कविता का उत्तरपूर्वी अंग हैं

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असद ज़ैदी प्रसिद्ध फिल्म निर्माता, कवि और सामाजिक कार्यकर्ता तरुण भारतीय का 25 जनवरी की सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। ‘समकालीन...
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लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की कविताएँ देशकाल की पड़ताल और प्रतिगामी शक्तियों की शिनाख़्त करती हैं।

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अरुण आदित्य लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की कविता देशकाल की पड़ताल और प्रतिगामी शक्तियों के प्रतिरोध की कविता है। यहाँ हाशिए के लोग हैं, उनका श्रम...
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मनीषा मिश्रा की कविताएँ समाज के प्रति अपनी जागरूक भूमिका को निभाने का प्रयास हैं

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सोनी पाण्डेय बाँस की कोपलों सी बढ़ती है लड़कियाँ…. विमर्श और स्त्री मुक्ति के नारों के बीच आज की कस्बाई औरतों के संघर्षों का यदि...
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डॉ हेमन्त कुमार और पूनम श्रीवास्तव के कविता संग्रह का विमोचन 

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लखनऊ। जन संस्कृति मंच (जसम) की ओर से छह जनवरी को डॉ हेमन्त कुमार के कविता संग्रह ‘ कटघरे के भीतर ‘ तथा पूनम श्रीवास्तव...
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रणेन्द्र की कविताएँ युगबोध और प्रतिबद्धता की बानगी हैं।

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प्रज्ञा गुप्ता “रणेन्द्र युगबोध के कवि हैं। रणेन्द्र का कवि मन अपनी विविध प्रतिबद्धताओं,सरोकारों के बीच रागारुण संवेदना के साथ उपस्थित है।” ‘ग्लोबल गाँव के...
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माया मिश्रा की कविताओं में कभी न ख़त्म होने वाली उम्मीद का एक शिखर है

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गुंजन श्रीवास्तव माया मिश्रा जी की कविताओं को पढ़कर एक बात तो साफ़ कही जा सकती है कि यह एक कवि के परिपक्व अनुभव से...
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हरे प्रकाश उपाध्याय की कविताएँ तनी हुई मुट्ठी की तरह ऊपर उठती हैं।

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चित्रा पंवार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना कविता के विषय में कहते हैं– ‘कविता अगर मेरी धमनियों में जलती है पर शब्दों में नहीं ढल पाती मुझे...
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दुनिया में ताक़त के खेल को समझने की कोशिश है अरुणाभ सौरभ की कविताएँ

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बीते शनिवार को प्रभाकर प्रकाशन में अरुणाभ सौरभ के काव्य-संग्रह ‘मेरी दुनिया के ईश्वर’ के तीसरे संस्करण का लोकार्पण हुआ। इस अवसर पर एक परिचर्चा...
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रचित की कविताएँ यथास्थिति को बदलने के लिए बेचैन हैं

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जावेद आलम ख़ान रचित की कविताओं में गुस्सैल प्रेमी रहता है ऐसा नायक जो यथार्थ को नंगा नहीं करता, बड़े सलीके से परोसता है जिसकी...
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ग्रेस कुजूर की कविताओं में नष्ट होती प्रकृति का दर्द झलकता है।

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प्रज्ञा गुप्ता प्रकृति का सानिध्य किसे प्रिय नहीं। प्रकृति के सानिध्य में ही मनुष्य ने मनुष्यता सीखी; प्रकृति एवं जीवन के प्रश्नों ने ही मनुष्य...
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हूबनाथ पांडेय ने अपनी कविताओं में व्यवस्था की निर्लज्जता को बेनक़ाब किया है

उमा राग
मेहजबीं हूबनाथ पांडेय जी जनसरोकार से जुड़े हुए कवि हैं। उनकी अभिव्यक्ति के केन्द्र में व्यवस्था का शोषण तंत्र है, प्रशासन द्वारा परोसा जा रहा...
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पूजा कुमारी की कविताओं में हाशिये की तमाम आवाज़ें जगह पाती हैं।

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बबली गुज्जर जिंदगी में जब लगता है कि सब खत्म हो गया है, तो असल में वह कुछ नया होने की शुरुआत होती है। चुप्पियाँ...
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माया प्रसाद की कविताएँ उस व्यक्ति-मन की प्रतिक्रियाएँ हैं जो अपने परिवेश के प्रति जागरुक और संवेदनशील है।

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प्रज्ञा गुप्ता डॉ माया प्रसाद की कविताएँ उस व्यक्ति-मन की प्रतिक्रियाएँ हैं जो बहुत संवेदनशील है और अपने पूरे परिवेश के प्रति जागरुक है। उनकी...
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मंजुल भारद्वाज की कविताएँ दमनात्मक व्यवस्था की त्रासदी को उजागर करती हैं

उमा राग
मेहजबीं मंजुल भारद्वाज एक मंझे हुए रंगकर्मी हैं और एक ज़िम्मेदार कवि भी। उनकी अभिव्यक्ति के केन्द्र में लोकतंत्र संविधान और देश की जनता है।...
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कुछ न होगा के विरुद्ध हैं चंद्रभूषण की कविताएँ

समकालीन जनमत
प्रियम अंकित चंद्रभूषण की कविताएँ निरंतर जटिल होते समय में जनता के सहज सरोकारों के पक्ष में खड़ी होने वाली कविताएँ हैं। आज जब एक...
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संजय कुंदन की कविताएँ स्थगित प्रश्नकाल में ख़तरनाक सवाल की उपस्थिति हैं।

उमा राग
अरुण आदित्य संजय कुंदन की कविताओं में गूंजती विविध आवाजों को सुनें तो लगता है कि शास्त्रीयता के बोझ से मुक्त यह कविता दरअसल कविता...
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