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विश्व पुस्तक दिवस: किताबें कुछ तो कहना चाहती हैं

अजय कुमार


किताबें करती हैं बातें
आज यानी 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाया जाता है। और जैसे ही कोई किताबों के दिन की बात करता है, मशहूर रंगकर्मी सफ़दर हाशमी की यह कविता ज़ेहन में गूंजने लगती है –
किताबें करती हैं बातें
बीते जमानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की कल की
एक-एक पल की।
खुशियों की, गमों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की।
सुनोगे नहीं क्या
किताबों की बातें?
किताबें, कुछ तो कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

दुनिया भर के साइंस, दर्शन, राजनीति, मोहब्बत, इंकलाब को अपने भीतर समेटे किताबें जो हमसे कहना चाह रही हैं, क्या वह हम सुन पा रहे हैं?
ये सवाल और इसका जवाब इसलिए भी बेहद जरूरी हो जाता है कि आज के दौर में इन बातों की सबसे ज्यादा जरूरत है । 
किताबों के ज़िक्र में गुलज़ार की ये पंक्तियां बहुत साझा की जाती हैं-
किताबें झांकती हैं बंद आलमारी के शीशों से,
बड़ी हसरत से तकती हैं,
महीनों अब मुलाकातें नहीं होती,
जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं,
अब अक्सर गुजर जाती है कंप्यूटर के पर्दों पर..!
गुलजार साहब की ये कविता किताबों के उस दौर की याद दिलाती है जब किताबें जीवन का अभिन्न अंग हुआ करती थीं। आज विश्व एक ऐसे मुकाम पर है, जहा कंप्यूटर और इंटरनेट को ज्यादा बढ़ावा मिल रहा। देखा जाये तो  फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर आदि आधुनिकता के इस दौर में पुस्तकों में लोगों की रूचि कम हुई है लेकिन आज भी लोग किताबों को पढ़ना पसंद करते हैं। किताबों के प्रति लोगों की रूचि कम न हो इसी उद्देश्य से इस दिवस को मानाने की जरुरत है।  23 अप्रैल 1995 को पहली बार यूनेस्को ने विश्व पुस्तक दिवस (World Book Day) की शुरुआत की थी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों के मन में पुस्तक प्रेम को जागृत करना है। इसकी मदद से यूनेस्को लोगों के बीच किताब पढ़ने की आदत को बढ़ावा देना चाहता है। चूंकि किताबी दुनिया में कॉपीराइट एक अहम मुद्दा है, इसलिए विश्व पुस्तक दिवस पर इस पर भी जोर दिया जाता है। इसी वजह से दुनिया के कई हिस्सों में इसे विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है।
पहला विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल, 1995 को मनाया गया था। इस तारीख के साथ खास बात यह है कि 23 अप्रैल को मीगुयेल डी सरवेन्टीस के अलावा महान लेखक विलियम शेक्सपियर का देहांत हुआ था । विलियम शेक्सपियर को विश्व का ‘साहित्य सम्राट’ भी कहा जाता है। आज भी उनकी लिखी किताबों को लोग पढ़ना पसंद करते हैं। विश्वभर में लेखकों और पुस्तकों को सम्मानित करने के लिए साल 1995 में पेरिस में हुए यूनेस्को जनरल कांफ्रेंस में विश्व पुस्तक दिवस को मनाने की घोषणा की गई थी।
किताबें सिखाती हैं जीने की कला
किताबें हमारे व्यक्तित्व का निर्माण कर हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं। यही नहीं, किताबें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ज्ञान हस्तांतरित करने का सशक्त माध्यम भी हैं। किताबों से बुद्धि का विकास का होता है तथा हम महान लोगों से परिचित होकर उनके पदचिन्हों पर चलने की प्रेरणा लेते हैं। पं. जवाहर लाल नेहरू ने कहा था, “पुस्तकों के बगैर मैं दुनिया की कल्पना भी नहीं कर सकता हूं.” पुस्तक संस्कार मनुष्य में कभी समाप्त नहीं हो सकते, जब तक उसमें जानने की जिज्ञासा है तब तक वह पुस्तकों से दूर नहीं जा सकता है। पुस्तकें तो तब उसके साथ होती हैं जब उसके साथ कोई नहीं होता।
दरअसल, किताबें सोच बनाने व बदलने का माद्दा रखती है। किताबें हमें अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों काल की जानकारी देती हैं। किताबें मनुष्य की सच्ची मित्र हैं जो प्रत्येक परिस्थिति में बखूबी साथ निभाती हैं। एक अच्छी किताब एक बेहतर मनुष्य के निर्माण के लिए नींव का पत्थर है । बेहतर दुनिया बनाने का सपना सुंदर किताबों से होकर गुजरता है ।
(अजय कुमार ने पुस्तकालय के क्षेत्र में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की है । फिलहाल गुवाहाटी में पढ़ाते हैं ।)

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