समकालीन जनमत
पुस्तक

जनविरोधी सत्ता के ख़िलाफ़ नाटक का हथियार

सुधाकर रवि


बचपन से दो गीत सुनता आ रहा हूँ। दोनों गीत काफी महशूर हैं. पहला है- पढ़ना लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों। दूसरा पहले से भी ज़्यादा मशहूर है – किताबें करती हैं बातें। इन्हीं दो गीतों के जरिये सफ़दर हाश्मी से पहला परिचय हुआ था मेरा। सुना है, सफ़दर की हत्या पर बहुत रोष था लोगों में। दिल्ली के करीब साहिबाबाद में हुई सफ़दर की हत्या ने देश के मजदूर-किसानों, कार्यकर्ताओं, लेखकों, कलाकारों से लेकर हर संजीदा आदमी को झकझोरा था।
सुधन्वा देशपांडे अभिनेता- निर्देशक हैं। वे सफ़दर के साथी रह चुके हैं। सुधन्वा ने उनके साथ कई नाटकों में हिस्सा लिया। उनकी यह किताब ‘हल्ला बोल’ सफ़दर के जीवन और उनके संघर्ष का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
सफ़दर हाश्मी रंगमंच और नुक्कड़ नाटक की दुनिया का जाना पहचाना नाम हैं। महज चौंतीस साल की उम्र में ही उन्होंने नुक्कड़ नाटक के विकास में जो महत्वपूर्ण योगदान दिया वह अतुलनीय है। उन्हीं का एक मशहूर नुक्कड़ नाटक है हल्ला बोल, जिसका प्रदर्शन करते हुए उनकी हत्या कर दी गई थी।
वामपंथी विचारों वाले सफ़दर अपने नाटकों से मजदूर वर्ग में चेतना जागृत करने का काम करते थे। वे पूंजीवाद और साम्प्रदायिकता से ताउम्र लड़ते रहे।
हल्ला बोल डायरीनुमा शक्ल में लिखी गयी है, जिसकी शुरुआत फ्लैशबैक से होती है उस दिन से, जब सफ़दर की हत्या हुई थी। फिर धीरे-धीरे सफ़दर की जिंदगी और उनके रंगकर्म के अभियान से गुजरती है।
शुरू के अध्यायों को पढ़ते हुए लगता है जैसे सफ़दर की हत्या के साथ-साथ इस सिस्टम से आपकी अहसमति की भी हत्या की जा रही है। महज नुक्कड़ नाटक करने भर से इस सिस्टम को इतना खतरा है तो हमारी-आपकी असहमतियों की यहाँ कोई जगह शेष कहाँ बची रहती है?
सुधन्वा अपनी स्मृति को इस किताब के जरिए हमसे साझा करते हैं, साथ ही वे सफ़दर से जुड़े लोगों के इंटरव्यू के जरिए उनकी यादें भी शामिल करते हैं। यह बाकी बायोग्राफी की तरह नहीं है। यह निजी प्रसंगों के साथ एक विमर्श भी प्रस्तुत करती है। इसमें देश में नुक्कड़ नाटक का इतिहास, उसके विकास, उसके दायरे को भी समझने का अवसर मिलता है। नुक्कड़ नाटक मूलतः एक राजनीतिक टूल के तौर पर सामने आया। कम जगहों और कम संसाधन के साथ मजदूर वर्ग में चेतना प्रवाहित करने का सशक्त माध्यम बना नुक्कड़ नाटक,जिसका प्रदर्शन खुले मैदान के साथ कारखाने के गेट पर भी किया जा सकता है।
सुधन्वा बड़े विस्तार से एक नुक्कड़ नाटक के बनने और संवरने की कथा कहते हैं। रिहर्सल्स, नए लोगों की भर्ती, उन्हें ट्रेंड करना और उससे जुड़ी अलग-अलग चुनौतियों का वे विस्तार से वर्णन करते हैं। कैसे नुक्कड़ नाटक मजदूरों से सीधा जुड़ सकें इसके लिए क्या-क्या तरीके अपनाए जाएं, ये भी वे विस्तार से बताते हैं।
सुधन्वा ने नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से मजदूरों में चेतना जगाने में जन नाट्य मंच और सफ़दर के योगदान की विस्तार से चर्चा की है। दिल्ली और उसके पास के इलाकों में अस्सी के दशक में मजूदर आंदोलन की धार को पैना करने में जन नाट्य मंच के योगदान को इस किताब के जरिये समझा जा सकता है। हल्ला बोल किताब सफ़दर हाशमी के जीवनवृत्त के साथ-साथ दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में कारखानों और उसके मजदूरों का सामाजिक-आर्थिक विवरण भी प्रस्तुत करती है.
सुधन्वा ने यह किताब मूलतः अंग्रेजी में लिखी है और हिंदी में इसका अनुवाद किया है योगेंद्र दत्त ने। अनुवाद शानदार है और पढ़ते हुए आप कहीं नहीं अटकेंगे। भाषा का प्रवाह आपको बांध लेता है। सरल और दिल में उतर जाने वाली यह किताब कहीं से अनूदित प्रतीत नहीं होती।
हल्ला बोल : सफ़दर हाशमी की मौत और ज़िंदगी
लेखकः सुधन्वा देशपांडे
अनुवाद : योगेंद्र दत्त
वाम प्रकाशन,
2254/2 ए
शादी खामपुर, न्यू रंजीत नगर
नई दिल्ली-110008
मूल्यः 325 रुपये

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