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अलविदा कामरेड मीना राय : सहजता और कर्मठता विचार से आती है और संघर्षों में हासिल होती है

17 दिसंबर 2023 को इलाहाबाद का अंजुमन रूहे अदब जो इलाहाबाद के हिंदी उर्दू अदब के न जाने कितने जलसों का गवाह रहा है लेकिन उसने एक नए तरह के जलसे का दीदार किया। आंसू, भावनाओं, दुख से सरोबार लेकिन उसके भीतर से संकल्प और शक्ति के प्रकाश से नहाया हुआ। यह समकालीन जनमत की प्रबंध संपादक, शिक्षक और इलाहाबाद की सक्रिय सचेत नागरिक कामरेड मीना राय, जैसे इतिहास में दर्ज दुर्गा भाभी की तरह हमारे दौर की मीना भाभी की स्मृति सभा थी।

कवि कथाकार नीलम शंकर की पंक्ति ‘एक देह से कितनी कितनी देहों का श्रम करती’ उन्हें कई भूमिकाओं में लोगों ने देखा था और उनके जाने के बाद क्या-क्या याद आ रहा है जैसे आलोचना के संपादक प्रो आशुतोष कुमार ने कहा कि जब वह थीं तो जैसे जीवन में हवा पानी होता है, अब जब वह नहीं है तब लग रहा है कि हमने क्या खो दिया।

यह सभा में आए सभी लोगों को लग रहा था इसीलिए इस स्मृति सभा में जितने तरह के तबकों से लोग आए थे वह केवल किसी एक राजनीतिक पार्टी, एक विधा या एक तरह के विचार, एक समुदाय या एक वर्ग के लोग नहीं थे। इसमें विभिन्न विश्वविद्यालयों के अध्यापक थे, विभिन्न ट्रेड यूनियन, कर्मचारी , किसान, छात्र, महिला, युवा, मानवाधिकार संगठनों और नागरिक समाज से लेकर हिंदी उर्दू के कई महत्वपूर्ण लेखक, उनके मोहल्ले के प्रतिनिधि उनके स्कूल के प्रबंधन से लेकर सहकर्मी शिक्षिकाएं, भाकपा माले के साथ वह जुड़ी हुई तो थीं हीं। उनके पार्टी महासचिव से लेकर विभिन्न कम्युनिस्ट पार्टियों से जुड़ाव रखने वाले, कांग्रेस, समाजवादी, अंबेडकरवादी धारा के नेतृत्वकर्ताओं से लेकर विभिन्न जिलों से किसान मजदूर स्त्रियों और बौद्धिक स्त्रियों तक के प्रतिनिधि शामिल हुए।

 

परिसर में अंदर आते ही दोनों तरफ कामरेड मीना राय की आत्मकथा ‘समर न जीते कोय’ जो अधूरी रह गई उसके अंश के पोस्टर, मीना जी जिस बुक स्टॉल पर बैठती और विचार चेतना से लोगों को लैस करतीं थीं वह लगा हुआ था। नौजवान साथी भानू बैठे थे लेकिन पूरे शहर को वहां मीना जी को देखने की आदत सी बन गई थी, लोगों को झटका सा लगा जिसे तमाम साथियों ने अपनी यादों को साझा करते हुए कहा।

 

लाल सफेद रंगों से बने शामियाने के भीतर बांई तरफ उनकी छायाकार अपल द्वारा खींची गई हल्की मुस्कान के साथ चमकती हुई आंखों वाली तस्वीर लगी थी जिस पर सुर्ख गुलाब और सफेद फूलों से बनी माला थी। तस्वीर सुंदर थी लेकिन उसे आंख भर देखना लोगों को मुश्किल लग रहा था। पुष्पांजलि जब शुरू हुई तो व्यक्तिगत परिवार से लेकर जो बड़ा परिवार उन्होंने निर्मित किया था और कई पीढियों तक फैला था वह कतारबद्ध शांत आते गए लेकिन जब सबसे युवा पीढ़ी छात्रों नौजवानों की आई तो पूरा परिसर कामरेड मीना राय को लाल सलाम कामरेड मीना राय अमर रहें के गगनभेदी नारों से गूंज गया और गोपाल प्रधान की बात कि- इलाहाबाद में विश्वविद्यालय के समानांतर एक और विश्वविद्यालय चलता था जिसमें मैं और मेरे जैसे कई पीढियों के छात्रों ने दाखिला लिया था जिनके दिल दिमाग में समाज को बदलने की हलचल थी, उसके लिए मीना जी की यहां स्पेस था।

ऐसे सभा शुरू हुई तो सहज सादे मंच पर जसम के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेंद्र कुमार, जौनपुर से आए कवि चित्रकार अजय कुमार, भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, फिलहाल की संपादक प्रीति सिन्हा, इलाहाबाद के नागरिक समाज की डॉ पद्मा सिंह, जलेस के राज्य सचिव और कवि हरिश्चंद्र पांडे मंच पर मौजूद थे। तो सामने प्रो अली अहमद फातमी, 84 साल के वरिष्ठ आलोचक संपादक नीलकांत, दिल्ली से आए कवि देवी प्रसाद मिश्र, रांची से आए उपन्यासकार रणेंद्र, लंदन से आई साउथ एशिया सालिडेरिटी फोरम की कामरेड कल्पना विल्सन, पटना से आईं स्कीम वर्कर्स की राष्ट्रीय नेता शशि यादव, भाकपा माले की केंद्रीय कमेटी सदस्य प्रभात कुमार, नवीन, अभ्युदय, इंकलाबी नौजवान सभा के राष्ट्रीय महासचिव नीरज कुमार, बिहार के नौजवान विधायक संदीप सौरभ, कवि रूपम मिश्रा, पत्रकार हिमांशु रंजन, सुशील मानव, कोरस पटना के साथी, किसान सभा के ईश्वरी प्रसाद, खेत मजदूर सभा के नेता श्रीराम चौधरी, वरिष्ठ कामरेड जयप्रकाश नारायण, जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कवि कौशल किशोर, लखनऊ से कवि भगवान स्वरूप कटियार, युवा कथाकार फरजाना मेंहदी, आजमगढ़ से आलोचक कल्पनाथ यादव, देवरिया से आए मीना जी के स्कूल के संस्थापक के बेटे अध्यापक प्रदीप पाल, बलिया से प्रो अखिलेश राय, जैसे तमाम साथियों के साथ शहर उत्तरी के पूर्व विधायक अनुग्रह नारायण सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो कुमार वीरेन, कवि कविता कादंबरी, आशुतोष पार्थेश्वर, लक्ष्मण गुप्ता, अमितेश,अंकित पाठक, सूर्यनारायण विभिन्न विश्वविद्यालयों, पूर्वांचल, गोरखपुर, दिल्ली, आगरा, आजमगढ़, जौनपुर प्रतापगढ़, गाज़ीपुर लखनऊ के तमाम लेखक अध्यापक एक्टिविस्ट शहर इलाहाबाद के रंगकर्मी प्रवीण शेखर अजीत बहादुर सीपीआई माले न्यू डेमोक्रेसी के कामरेड हीरालाल, सीपीएमके जिला सचिव अखिल विकल, कथाकार अनीता गोपेश, का गायत्री गांगुली, कथा के संपादक दुर्गा सिंह, अशरफ अली बेग, सुरेंद्र राही ,रामायन राम, लेखक बीके सिंह कॉमरेड रामजी राय, मीना जी के स्कूल की सहकर्मी स्नेह, रुचि खत्री समेत मीना जी के मुहल्ले के पड़ोसी,जनमत के कला संपादन से जुड़े संतोष चंदन, शहनाज़ के साथ जाने कितने-कितने लोग इस सभा में अपनी यादें मंच और मंच से परे साझा करते हुए उनके व्यक्तित्व से क्या सीखा, क्या सीखना है, क्या हमसे छीन गया इस पर बातें आती गईं आंसू छलकते गए। लोग उनके व्यवहार उनकी कई-कई भूमिकाओं को याद करते गए।

प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने कहा कि एक ग्रामीण खेतिहर परिवार की हंसती खेलती लड़की हजारों वर्षों की रूढियों से टकराती हुई कैसे कामरेड मीना राय बनती है, ऐसी आत्मकथा ऐसा संघर्ष हिंदी लेखन में नहीं दिखता। तो जसम राज्य सचिव रामरमेश राम ने ठीक ही कहा कि उत्तर भारत में ऐसा चरित्र दुर्लभ है। रामजी राय के सहपाठी पत्रकार हिमांशु रंजन ने कैफी आजमी की नज्म ‘औरत ‘ का जिक्र करते हुए कहा कि वह कवि की कल्पना वैसी हो सकती है लेकिन व्यवहार में वह मीना राय जैसे ही दिखती है।

कथाकार रणेंद्र जब उनके लिखे से उनके संघर्ष को देखते हैं तो कहते हैं यह सहजता लंबे संघर्ष के दौरान ही कठिनाई से हासिल की जाती है। राजेंद्र कुमार कहते हैं कमरा उनका छोटा था लेकिन वहां जगह कम नहीं पड़ती थी तो वह भी उस व्यक्तित्व की विशालता की ओर इशारा कर रहे थे जिसे प्रणय कृष्ण, आशुतोष कुमार, बसंत त्रिपाठी, बजरंग बिहारी तिवारी, अनुग्रह नारायण सिंह और जनार्दन कह रहे थे कि एक भावनात्मक कनेक्ट संगठन के भीतर भी और संगठन के बाहर वह स्कूल हो या मोहल्ला विभिन्न संगठनों के लोग हों चाहे अविनाश मिश्र हों या सुरेन्द्र राही, स्कूल की स्नेह, रूचि या मुहल्ले की गुड़िया,परवीन जो कहती हैं कि ‘मीना भाभी हमें ईदी देती थीं।हम बच्चों को देते थे वह हमें देती थीं। अब कौन हमें ऐसे देखेगा।’ जब कवि रूपम कहती हैं कि ‘वह हमारी बिरादरी की औरतें हैं जिनसे मीना भाभी सहज संवाद करती थीं’ तो परवीन उसी बात की तस्दीक करती हैं।

पुरानी दुनिया को नई दुनिया चिन्हाती एक सजल कड़ी अचानक टूट गई।

ऐसे ही पद्मा सिंह हों या संध्या नवोदिता, कामरेड शशि यादव हों या फिलहाल की संपादक प्रीति सिन्हा, या एकदम नई पीढ़ी की रुचि और शिवानी सबका उनसे अपना अपना कनेक्ट था। रूचि उनके नई से नई चीजों को सीखने की जिज्ञासा और सीख जाने को याद करते हुए उन्हें “ डिजिटल माऊ” कहकर याद करती हैं। अपने जीवन में मीना जी जो बनकर उभरी सबको वह अपनी लगतीं। वह अपनी उलझनें अपनी खुशी, दिक्कतें सब सहजता से शेयर करतीं।और पदमा के शब्दों में “ यार मीना भाभी इतनी ऊर्जा इतनी मुस्कान कहां से लाती हो, इतनी भूमिकाएं कैसे निभा लेती हो इसका सिक्रेट तो बता दो यार।”

कभी हरिश्चंद्र पांडे उनके सहजता के साथ उनकी निर्भीकता और साहस को याद करते हैं तो कवि देवी प्रसाद मिश्र उनकी स्मृति को इस कठिन दौर में जरूरी प्रतिस्मृति मानते हुए याद करते हैं।

कामरेड कल्पना विल्सन उनके विचारधारा पर संदेह से परे कमिटमेंट को याद करती हैं तो अजय कुमार मीना जी को उनकी कर्मठौता, सहजता के लिए याद करते हुए कहते हैं कि ‘लाल सलाम में को शब्द लगाकर मैं सिर्फ महासचिव और मीना राय के लिए ही बोलता हूं। मीना राय को लाल सलाम। भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने उन्हें याद करते हुए कहा कि इस फासीवादी हमले के समय हमें सर्वाधिक जरूरत मीना राय की थी। उनका जाना पार्टी के लिए बहुत भारी है। इतनी जल्दी तो कोई और दूसरी मीना राय नहीं हो सकती। इसलिए एक समूह को मिलकर जनमत के प्रकाशन, बुक स्टाल और लोगों से जीवंत संपर्क यह सब करना ही उन्हें सचमुच याद करना है।

सभा में चाहे वह सीनियर साथी आनंद मालवीय हों ,नागरिक समाज के संयोजक विनोद तिवारी, प्रो संतोष भदौरिया या युवा कामरेड सुनील मौर्य सभी ने समकालीन जनमत के साथ और बुक स्टॉल के साथ उन्हें याद किया। उन्हें जनमत वाली मीना भाभी की तरह याद किया और उनकी प्रतिबद्धता व भावनात्मक लगाव के लिए किसी ने उन्हें मां, बड़ी बहन , सखी के रूप में याद किया।

जाते जाते ट्रेड यूनियन के साथी अविनाश मिश्र ने कहा कि ‘ मीना जी जीवन भर सभी को एकसाथ लेकर चलती रहीं और अपनी स्मृति सभा में भी सबको एकसाथ कर गईं’।

सभा के अगले हिस्से में उन पर एक फोटो स्टोरी संजय जोशी और अंकुर द्वारा बनाई गई दिखाई गई जिसमें वे अपने सपनों की बात कहती है और सबके साथ सामूहिकता में जीना चाहती हैं, उड़ान भरना चाहती हैं ।

कार्यक्रम स्थल पर कोरस की रिया और रुनझुन ने जनमत के पूर्व कला संपादक अशोक सिद्धार्थ द्वारा मीना जी की आत्मकथा के अंशों को लेकर डिजाइन किए गए फोल्डर का वितरण किया। इसके बाद सभी लोगों को मीना जी की इच्छा के अनुसार जिसमें खुद भी सदेह होना चाहती थीं, खाने पर बुलाया गया और खाना भी दो संस्कृतियों के मिलन का खाना था। जिसमें पूरी सब्जी और मीना जी के अपार प्यार और मिठास से भरा ज़र्दा भी था। सभी यादें और संकल्प लेकर विदा हुए। यह स्मृति सभा संयुक्त रुप से जनमत, प्रलेस, जलेस, जसम, और नागरिक समाज इलाहाबाद की ओर से हुई।

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