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गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर इलाहाबाद में छात्रों पर पुलिसिया कहर

जहां आज पूरा देश गणतंत्र दिवस मना रहा है और दिल्ली के राजपथ पर उड़ान भरते युद्धक विमानों की गड़गड़ाहट से पूरे देश को अपनी शक्ति का एहसास कराया जा रहा है, वहीं गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश के राष्ट्रपति के संबोधन के बाद इलाहाबाद के युवाओं पर पुलिस की लाठियां तड़तड़ा रही थीं. उनके कमरों के दरवाजे, खिड़कियां बंदूक की बटों और लाठियों से तोड़े जा रहे थे.उन्हें कमरों से खींच कर बर्बरता पूर्वक पीटा जा रहा था. हमारा युवा राष्ट्र दुख और क्रोध से चीख रहा था. उसके खून से धरती लाल हो रही थी और हमारी कलम शर्म की स्याही में डूब रही थी. यही नया भारत बन रहा था.

छात्र आक्रोशित क्यों है ?

प्रतियोगी छात्र बिहार से लेकर इलाहाबाद तक रेलवे भर्ती बोर्ड के द्वारा 2019 की नॉनटेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी एनटीपीसी के 15 जनवरी को लेकर आए परिणाम को लेकर आक्रोशित थे और रेलवे ट्रैक जाम करके बैठ गए. दरअस्ल रेलवे भर्ती बोर्ड के परिणाम को लेकर छात्रों की दो प्रमुख आपत्तियां हैं. पहली यह कि नौकरी के नोटिफिकेशन में लगभग 20% सफल अभ्यर्थियों को लेने की बात कही गई थी जिसे घटाकर परिणाम में लगभग 5% कर दिया गया है. और अब जब 2019 की परीक्षा का परिणाम 2022 में आया है तो 23 फरवरी को सीबीडीटी-2 यानी दोबारा परीक्षा लेने की बात कही गई है.

आंदोलन में लाठी खाए और इस परिणाम के भुक्तभोगी छात्र सुधीर मौर्य बात करते हुए कहते हैं कि “आप हमको चपरासी बना रहे हैं कोई आईएस नहीं बना रहे जो दो बार परीक्षा लेंगे.वह कहते हैं कि यह उसे 2025 तक खींचेंगे. इनको नहीं पता घरवाले हम लोगों को कैसे-कैसे पढ़ा रहे हैं” और यह कहते-कहते वह गुस्से से भर जाते हैं.एक युवा पर जब पुलिस लाठियां बरसा रही थी तो वह कह रहा है कि “आज तक मैंने किसी को नहीं मारा, आप लोग मुझे क्यों मार रहे हैं” इस युवा छात्र की बात सुनते हुए आंखें छलक पड़ती हैं.

सोचता हूं हमारे घरों में ही सिखाया जाता है राजनीति नहीं करना, धरना प्रदर्शन में मत पड़ना, मन लगाकर सिर्फ अपनी पढ़ाई अर्थात कोर्स की पढ़ाई करना. लेकिन सब करने के बाद भी इस युवा के हिस्से पुलिस के लाठी ही पड़ती है. और बहुत बार उसे इतनी आत्मग्लानि होती है कि वह आत्महत्या कर लेता है. अभी 3 दिन पहले ही इलाहाबाद के सलोरी मोहल्ले में एक छात्र ने निराश होकर आत्महत्या कर ली और यह आए दिन की बात है.

इस पुलिसिया तांडव का एक पहलू और है. जो लोग इलाहाबाद से परिचित हैं वह जानते हैं कि सलोरी, बघाड़ा, ओम गायत्री नगर जैसे इलाकों में आमतौर पर थोड़ा गरीब और सामाजिक रूप से पिछड़ी पृष्ठभूमि से आने वाले छात्र ही ज्यादा संख्या में रहते हैं. आंदोलन के दौरान हर बार इन गरीब छात्रों को टारगेट करके पुलिसिया कहर टूटता है. यहां भी ‘फर्क साफ है’ बताने की छात्रों युवाओं की एकता को तोड़ने की साजिश की जाती है. पुलिसिया दमन के बाद छात्रों में दहशत है, उनके अभिभावकों के घरों से फोन आ रहे हैं, घर लौटने का दबाव भी बनाया जा रहा है.

लेकिन युवा दमन का प्रतिकार करता है प्रतिरोध में उठ खड़ा होता है. भले ही नई-नई हुई प्रयागराजी पुलिस ने पुराने इलाहाबादी छात्रों को सत्ता पर काबिज गणवेश धारियों के इशारे पर गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर लाठियों का उपहार दिया है तो यह छात्र नौजवान भी आज गणतंत्र दिवस पर इस दमन के खिलाफ इलाहाबाद के पत्थर गिरजा पर फिर से एकत्र होने जा रहे हैं. जनकवि बल्ली सिंह चीमा की कविता पंक्ति याद आ रही है..

रोटी मांग रहे लोगों से किसको खतरा होता है,
यार सुना है, लाठीचारज हल्का हल्का होता है.

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