वाराणसी के 22 संगठनों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अफ़गानिस्तान की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि संकट की घड़ी में भारत को अफगानिस्तान की पीड़ित जनता के साथ खड़ा होना चाहिए और उनकी हर सम्भव सहायता करनी चाहिए जिसमे इच्छुक लोगों को भारत में शरण देना भी शामिल है।
राष्ट्रपति के भेजे पत्र पर प्रगतिशील लेखक संघ, ऐपवा, भगतसिंह छात्र मोर्चा,आइसा, स्वराज अभियान, पीएसफोर, आरवाईए, एनएसयूआई- यूपी सेल, ऐक्टू, एस सी/ एस टी स्टूडेंट्स प्रोग्राम ऑर्गनिसिंग कमेटी बीएचयू, ओबीसी/ एस सी/ एस टी/ एम टी संघर्ष समिति बीएचयू, ज्ञान विज्ञान समिति, रिदम, ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया सेक्युलर फोरम, लोक समिति, पूर्वांचल बहुजन मोर्चा, प्रेरणा कला मंच, विश्व ज्योति जनसंचार समिति,. वाराणसी डिवीजन इंश्योरेंस इम्प्लॉई एसोसिएशन, बीमा पेंशनर्स संघ वाराणसी मंडल एवं साझा संस्कृति मंच ने हस्ताक्षर किए हैं।
संगठनों द्वारा भेजा गया पत्र
उत्तर प्रदेश, वाराणसी में निवास कर रहे हम भारत के प्रबुद्ध नागरिक पड़ोसी राष्ट्र अफ़गानिस्तान के वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रमों के प्रति गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं। अफ़गानिस्तान के वर्तमान राजनीतिक घटनाचक्रों के चलते न केवल वहाँ रह रहे भारतीयों एवं अन्य विदेशी मूल के नागरिकों, बल्कि समस्त आम अफ़ग़ानी नागरिकों, विशेषकर महिलाओं के जीवन और गरिमा की सुरक्षा के लिए वास्तविक एवं गंभीर खतरे की स्थिति बन चुकी है। वहाँ संविधान सम्मत रूप से चुनी गई जनतान्त्रिक सरकार का विस्थापन और नागरिकों की अभिव्यक्ति और जीवन शैली के चयन की स्वतंत्रता सहित समस्त मूलभूत मानवाधिकारों का हिंसक हनन नितांत अवांक्षित मानवीय त्रासदी का संकट बन रहा है।
निकटवर्ती पड़ोसी होने के कारण अफ़गानिस्तान के वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रमों का प्रभाव हमारे अपने राष्ट्रीय हितों पर भी पड़ना स्वाभाविक है। प्रारंभ से ही अफ़गानिस्तान के साथ भारत के नजदीकी-आत्मीय राजनीतिक, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। भारत सरकार ने अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन करते हुए अफ़गानिस्तान के ढांचागत विकास के लिए लिए बड़े पैमाने पर दीर्घकालीन निवेश किया है। वर्तमान में भी भारतीय नागरिकों की बड़ी संख्या वहाँ की आर्थिक-तकनीकी प्रगति व विकास के लिए अपना बहुमूल्य योगदान कर रही है जिनका जीवन और निवेश दोनों ही वहाँ के वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रमों के चलते खतरे में है।
अस्सी के दशक में सोवियत यूनियन के आक्रमण और पिछले 20 सालों से अमेरिकी सेना की मौजूदगी ने अफगानिस्तान में एक ऐसी राजनीतिक शून्यता पैदा की जिसने वहां के लोकतांत्रिक मूल्यों और राष्ट्रीय सम्प्रभुता को तहस नहस कर दिया और शीत युद्ध में विजय हासिल करने के लिए जिन मुजाहिदीन को अमरीका ने पालापोसा वह आज तालिबान की शक्ल में काबुल पर काबिज हैं । अमरीका की छत्र छाया में जीर्ण शीर्ण और पिट्ठू सरकार तथाकथित लोकतांत्रिक प्रक्रियाके बनाई गई वह तालिबान के हमले को न झेल सकी इसके पीछे मुख्य कारण था तालिबान और अमरीका के बीच हुआ गुप्त समझौता जिसमें अमरीका ने अपनी फौज को अफगानिस्तान से वापस बुला लिया और सत्ता तालिबान के आगे सौंप दी। इन सब राजनीतिक षड्यंत्रों का खामियाजा अफगानिस्तान के आम नागरिक विशेषकर महिलाएं और वहां अल्पसंख्यक झेल रहे हैं। इस संकट की घड़ी में वसुधैव कुटुम्बकम का नारा बुलंद करने वाले भारत को अफगानिस्तान की पीड़ित जनता के साथ खड़ा होना चाहिए और उनकी हर सम्भव सहायता करनी चाहिए जिसमे इच्छुक लोगों को भारत में शरण देना भी शामिल है।
साथ ही कुछ हजार तालिबनियो को पूरा अफगानिस्तान नहीं मान लेना चाहिए औऱ वहां की घटनाओं की आड़ में भारत में साम्प्रदायिक राजनीति फैलाने वाले प्रयासों को भी विफल करना चाहिए।
इन विषम परिस्थितियों में हम भारत के नागरिक, महामहिम प्रथम नागरिक एवं भारत गणराज्य के राष्ट्रपति से आग्रह करते हैं कि वह भारत सरकार को अपने राष्ट्रीय व क्षेत्रीय हितों और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा सदस्य राष्ट्रों के लिए अभिप्रेरित अधिकारों और दायित्वों की मर्यादा के अधीन निम्नलिखित कदम उठाने के लिए सचेत एवं निर्देशित करने का कष्ट करें :-
1. अफ़गानिस्तान में फंसे हुए भारतीय नागरिकों के जान-माल की सम्पूर्ण सुरक्षा की गारंटी के लिए तत्काल समस्त अपेक्षित कदम उठाने एवं उनकी सुरक्षित वापसी का प्रबंध ;
2. अफ़गानिस्तान के भारतीय मूल के नागरिकों की जान-माल एवं समस्त जनतान्त्रिक-मानवाधिकारों की गारंटी के लिए राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक-कूटनीतिक दबाव सहित समस्त आवश्यक कार्यवाही ;
3. अफ़गानिस्तान में निवेशित भारतीय संपदा एवं हितों की सम्पूर्ण सुरक्षा की गारंटी ;
4. चूंकि भारत वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कासदस्य है, अतः उसे निश्चित रूप से अपने पद और प्रभाव का उपयोग सुरक्षा परिषद में अफ़गानिस्तान की वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के लिए करना चाहिए :-
• अफ़गानिस्तान में संविधानसम्मत रूप से चुनी गई जनतान्त्रिक सरकार को बलात विस्थापित करने के प्रति चिंता और वहाँ तालिबान शासन द्वारा किए जा रहे हिंसक महिला एवं बच्चों मानवाधिकार उल्लंघनों की भर्त्सना का प्रस्ताव पारित कराना; एवं
• अफ़गानिस्तान में हो रहे जनतंत्र के हनन और मानवता के विरुद्ध अपराधों की तत्काल रोकथाम के लिए सुरक्षा परिषद की कमान में अंतर्राष्ट्रीय शांति मिशन की तैनाती, और अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की देखरेख में वहाँ नागरिक समाज के सम्मानित सदस्यों की एक अस्थाई कार्यकारी शासन-संचालन परिषद का गठन, जो निश्चित समयावधि के अंदर संविधान सम्मत सरकार का निर्वाचन करा कर जनतंत्र की बहाली सुनिश्चित करे। यह सुनिश्चित किया जाय कि अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक दल अथवा शांति मिशन में अफ़गानिस्तान की वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति के लिए परोक्ष-अपरोक्ष किसी भी रूप से जिम्मेदार किसी भी राष्ट्र का प्रतिनिधि न हो।
5. अफ़गानिस्तान में विगत चार दशकों से चल रहे हिंसक राजनीतिक उथल-पुथल में विशेषकर 1991 (मुजाहिदीन आक्रमण) से ले कर अब तक हुई अकल्पनीय पैमाने पर हुई नागरिक हत्याओं, उत्पीड़न और मानवता के विरुद्ध किए गए राजनीतिक-युद्ध अपराधों की जांच और न्याय व सामाजिक पुनर्निर्माण की दृष्टि से संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय अपराध/सत्य व समाधान ट्राइब्यूनल (International Criminal/ Truth & Reconciliation Tribunal) का गठन समयबद्ध मैनडेट के साथ कराने के लिए प्रयास।
हम आशा करते हैं कि महामहिम राष्ट्रपति राष्ट्र एवं सम्पूर्ण मानवता व जनतंत्र के हित में हम नागरिकों की भावना का समुचित संज्ञान लेते हुए भारत सरकार को उपरोक्त कदम उठाने के लिए निर्देश देने का कष्ट करेंगे।