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समाजवादी जन परिषद की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो स्वाति नहीं रहीं

अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच की केंद्रीय कार्यकारिणी की सदस्य, समान शिक्षा आंदोलन उत्तर प्रदेश की नेता ,समाजवादी जन परिषद की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर रहीं प्रो स्वाति का 2 मई की शाम वाराणसी में निधन हो गया. 72 वर्षीय डॉ स्वाति पिछ्ले दस महीनों से रक्त प्लाज़्मा के एक कठिन कैंसर से पीडित थी, जिसके कारण उनके गुर्दे भी प्रभावित हुए थे।

प्रो स्वाति सुप्रसिध्द गांधीवादी नेता नारायण भाई के बेटे अफलातून की पत्नी थी. प्रो स्वाति की बेटी प्योली सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं.

प्रो स्वाति का समाजवादी आन्दोलन से लम्बे समय तक जुड़ाव रहा.

स्वाति जी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर के एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में 21 अप्रैल 1948 को हुआ था. उनके पिता सत्येंद्रनाथ दत्त एक सिविल इंजीनियर और व्यवसायी थे और माँ पुष्पलता दत्त एक शिक्षित गृहिणी थी. इनके पूर्वज बीसवी सदी की शुरुआत में पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के फरीदपुर जिले से ग्वालियर आकर बस गए थे.

स्वातिजी अपने बचपन से ही बहुत मेधावी छात्रा रहीं और अपनी कक्षा में सदैव प्रथम स्थान प्राप्त किया. 1967 में ग्वालियर के कमला राजा महिला महाविद्यालय से बीएससी भौतिक विज्ञान, गोल्ड मेडल सहित उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुम्बई से भौतिकी में एमएससी (1969) किया.

आगे शोध के लिए भारत में पर्याप्त सुविधाओं और प्रोत्साहन के अभाव में स्वातिजी ने सँयुक्त राज्य अमेरिका के जाने-माने पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. वहाँ आणविक भौतिकी में महत्वपूर्ण शोध करने के बाद 1975 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. अगर तब वे चाहतीं तो किसी भी पश्चिमी देश में अनुसंधान और शिक्षण के उच्च पदों पर आसीन हो एक नामी वैज्ञानिक बन सकती थीं, लेकिन अपनी मातृभूमि से लगाव और समाज के लिए कुछ कर गुज़रने की आकांक्षा उन्हें वापस भारत खींच लाई.

अस्सी के दशक की शुरुआत में उन्होने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के महाविद्यालय में भौतिकी पढ़ाना शुरू किया और तीस साल के ऊर्जावान, सफल कार्यकाल के बाद 2013 में रीडर के पद से सेवानिवृत्त हुईं. हालांकि भारत के अकादमिक जगत में उन्हें यथोचित सम्मान नहीं मिल सका, एक कुशल और प्रेरक अध्यापक के रूप में उन्होने सैकड़ों छात्राओं के जीवन को दिशा दी. विज्ञान के प्रति भी उनका अनुराग जीवन भर बना रहा और 2005 के बाद एक नए विषय बायो-इंफोर्मैटिक्स (जैव प्रौद्योगिकी की एक शाखा) में शोध करके उन्होने अपने विश्वविद्यालय में इस विभाग की स्थापना में महती भूमिका निभाई

अमरीका से भारत लौटने पर स्वातिजी का सामना आपातकाल के बाद के उथल पुथल भरे सामाजिक- राजनैतिक परिवेश से हुआ हालाँकि विदेश में ही वे समाजवादी विचारों के सम्पर्क में आ चुकी थी. जब समाजवादी नेताओं और चिंतकों, जैसे किशन पटनायक, सच्चिदानंद सिन्हा और अनेक छात्र-युवा कार्यकर्ताओं ने 1980 में समता संगठन की नींव रखी तो स्वातिजी उसमें संस्थापक सदस्य के रूप में शामिल हुई. मुख्यधारा की चालू राजनीति के बरक्स यह शोषित तबकों के संघर्ष के जरिए एक समतामूलक समाज की स्थापना का आंदोलन था. समता संगठन के जरिए डॉ स्वाति ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अनेक आंदोलनों में भाग लिया. मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में जब बनखेड़ी में कार्यकर्ताओं पर दमन चक्र चला या केसला में सुनील और राजनारायण जैसे साथियों को जेल भेजा गया, स्वातिजी ने अपनी नौकरी से लम्बी छुट्टियाँ लेकर गांव गांव घूमकर संगठन को मजबूत किया।

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