( 28 सितंबर 2015 की सुबह वीरेन डंगवाल की मृत्यु के बाद अमर उजाला के बरेली संस्करण के स्टाफ़ फ़ोटोग्राफ़र ने अच्छी कवरेज के लिए उनके ड्राइंगरूम में फ्रेम जड़ी जिन कुछ तस्वीरों अपने कैमरे में कैद किया था उसमें अपने ठेठ अंदाज़ में तख़्त पर बायीं तरफ़ देखने वाली वीरेन डंगवाल की यह तस्वीर अगले दिन अखबार के मुख्य पृष्ठ पर छपते ही वायरल होनी शुरू हो गयी. पता नहीं कितनी फ़ेसबुक पोस्ट और पत्रिकाओं के कवर पर यह तस्वीर छपी. हिंदी पट्टी की तबियत के मुताबिक कभी किसी पत्रिका और फ़ेसबुक एक्टिविस्ट ने छायाकार के नाम को जानने की जहमत नहीं उठायी . आज वीरेन दा के जन्मदिन के बहाने इस तस्वीर के छायाकार अपल की ज़ुबानी ही इस तस्वीर की कहानी को साझा करने का विचार समकालीन जनमत में बना. जानिए एक फोटो के बहाने एक छवि के कई मायनों की कहानी कहती छायाकार अपल की यह रोचक टिप्पणी. सं.)
मेरे दोस्त और जन संस्कृति मंच के एक्टिव कार्यकर्त्ता संजय जोशी ने कहा “अपल वीरेनदा वाली तुम्हारी फोटो बहुत वायरल होगी 5 तारीख तक, कुछ लिखते काहे नहीं हो, सब ने फोटो देखी है, उस के बारे में जानता कोई नहीं है” बहुत सोचा कि फोटो के बारे क्या जानना, तस्वीर है, वह खुद तो ही बोल रही है। उस दिन जब मैंने यह फोटो खींची थी, याद किया तो एक बहुत बड़ी सी तस्वीर बनने लगी, फोटो के आगे-पीछे की कहानी; फोटो में केवल टू डायमेंशनल (two dimensional) छवि है, जबकी वीरेनदा की कहानी तो मल्टी डायमेंशनल है।
मैं वीरेनदा को जानता था तो मैं अपने बचपन से था, उन को देखा था सम्मलेन में, गोष्ठी में सुना था, हिंदुस्तान अख़बार के दफ्तर में मिला था लेकिन उन्हें केवल जानता था, यह जानता था कि वह कवि हैं, संपादक हैं और मार्क्सवादी विचारक हैं. कभी कभार बात भी हुयी थी, लेकिन वो मेरे पिता के दोस्त हैं , मेरे दोस्त नहीं थे वो। मेरी दोस्ती उनसे 15 सितम्बर 2011 से शुरू हुई, जिस दिन ये तस्वीर खींची थी। उन दिनों अपने पहले ऑपरेशन के बाद वह बरेली में रहते थे।
तारीख, समय वह दोपहर सब अच्छी तरह याद है मुझे जिस दिन मैं अपनी टीम के साथ दिल्ली से पीलीभीत जा रहा था, रास्ते में बरेली पड़ता था। मैं नाव से नदी की यात्रा करता हूँ। और हम गोमती नदी की यात्रा की शुरुवात करने उसके उद्गम पर गोमत ताल, पीलीभीत जा रहे थे। उन को फ़ोन किया तो उन्होंने पूरी टीम को अपने घर खाने पर न्योता दिया। और हमारे लिए मटन बनाया। बरेली से कुछ पत्रकार भी आये थे। मेरे दोस्त और एक्सपीडिशन लीडर एंडी लीमन ने गोमती एक्सपीडिशन और उस से पहले की यात्रा के बारे में बताया। पत्रकार से कहीं ज़्यादा ध्यान से वीरेनदा ने सुना और बाद में बोले “कभी तुम्हारे साथ मैं भी नदी की यात्रा पर चलूंगा” अफसोस वो दिन कभी नहीं आया। हम बहुत देर उनके साथ रुक तो नहीं पाए, पर बातें ढेर सारी की थीं । और हमारे कहने पर अपनी गंगा पर लिखी कविता भी सुनाई।
इसी सब के बीच में कभी तस्वीर खींची थी। पता नहीं था इतने सारे साल/दिन के बाद आज भी वह फोटो कितनी कहानी सुना रही है, केवल मेरी ही नहीं, वीरेनदा को जो भी जानता था, उस को उस में कोई कहानी मिल जाती है। शायद यही इस तस्वीर की कहानी है।और आने वाले दिनों में न जाने कितने किस्से कहानी सुनाएगी। और सब में कितनी वीरेनदा की तस्वीर बनेगी।
(जौनपुर में पैदा हुए और अलीगढ़ व दिल्ली से शिक्षित हुए छायाकार -घुम्मकड़ अपल जन संस्कृति मंच की जौनपुर टीम के एक्टिविस्ट अभिनेता रहे हैं. पिछले छब्बीस वर्षों से अपल छायाकारी के विभिन्न फोरमैटों में प्रयोग करते हुए छायाकारी को महज क्लिक करने से आगे की विधा के बतौर बरतते रहे हैं . छायाकारी करते हुए उन्होंने दुनिया के तमाम देशों की मज़ेदार यात्राएँ की हैं जिनमे से इस तरह की कई रोचक कहानियां अब भी इंतज़ार कर रही हैं . पिछले सोलह वर्षों से वे अपने अनोखे साथियों के साथ दुनिया की नदियों की अनूठी खोज यात्राएं करते रहे हैं . उनकी इन बेहद मजेदार और जरुरी यात्राओं को https://www.ribexpedition.net पर महसूस किया जा सकता है . अपल, नौकुचियाताल, नैनीताल में रहते हैं .)