उजरियांव में सीएए विरोधी आंदोलन के एक माह पूरा होने पर जोश मलीहाबादी की याद में कवि सम्मेलन और मुशायरा
लखनऊ, 21 फरवरी। ‘ शाहीन बाग में बैठी हैं औरतें/ उनका आंदोलन चल रहा है/वे एक नहीं हजारों में हैं/शाहीन बाग भी एक नहीं सैकड़ों में है/यहां भी है शाहीन बाग/वहां भी है शाहीन बाग/घंटाघर में है शाहीन बाग/उजरियांव में है शाहीन बाग/हिन्दुस्तान में गूंज रहा शाहीन बाग/शाहीन बाग…शाहीन बाग’।
ये काव्य पंक्तियां हैं विमल किशोर की। वे गोमतीनगर के उजरियांव में आयोजित कवि सम्मेलन और मुशायरा में अपनी कविता सुना रही थीं। शाहीन बाग आज सीएएए, एनआरसी और एनपीआर के प्रतिरोध का प्रतीक बन गया है। उसने विरोध की राह दिखाई है। कई शाहीन बाग उठ खड़े हुए हैं। लखनऊ में भी दो जगह घंटाघर आौर उजरियांव पर धरना चल रहा है। एक महीना बीत गया पर यह आंदोलन जारी है।
महिलाओं ने आंदोलन को अपनी जीवनचर्या का हिस्सा बना डाला है। उसे विविध रंगों से सजाया है जिसमें तिरंगे का रंग है, तो संविधान और लोकतंत्र का भी। यहां पुलवामा में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देता हुआ पोस्टर है तो वही ‘वन इंडिया’ और ‘हम भारत के लोग’ जैसी एकता की गूंज है।
उजरियांव में आंदोलन के एक माह पूरा होने पर विविध आयोजन किए गए। इसी के तहत कवि सम्मेलन और मुशायरा का आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम जोश मलीहाबादी को समर्पित था। इसका आरंभ कवि और जन संस्कृति मंच उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने किया। उन्होंने जोश को याद करते हुए उनके कई शेर सुनाएं और कहा कि फैज़ की तरह जोश मलीहाबादी भी इंकलाब और मोहब्बत के शायर हैं। यहां आवामी जिंदगी के अनेक रंग मिलेंगे।
डॉक्टर संध्या सिंह ने कबीर की कथा सुनाई और कहा कि हमें कबीर से सीखना चाहिए जिसमें प्रेम, भाईचारा और एकता का चटक और गाढ़ा रंग है। उन्होंने इसी भाव-विचार को अपने गजलों के माध्यम से भी व्यक्त किया। सुशीला पुरी ने अपनी कविता ‘बोलना होगा’ के माध्यम से यह कहा कि यह समय चुप रहने का नहीं है, बोलने का है, प्रतिरोध का है। यदि हम अन्याय सहते रहे और चुप रहे तो हमारा अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा।
मोहम्मद कलीम का कहना था कि आज के दौर का चेहरा उदास है तो क्या हुआ इसे बदलने की कूवत हमारे अंदर है। चाहे जैसे भी हालात हो, हमें अपने बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष करना होगा। वे अपनी ग़ज़ल में कहते हैं ‘लाठी गोली और बम की बरसात करने वालों, सुनो/लबों पे इंकलाबी जोश के फिर भी वही तराने होंगे।’ अफ़ीफ़ सिराज ने कहा ‘हजरत महल की बेटियां उतरी है अब मैदान में’। आगे कहा ‘‘इस बार अपना सामना ऐसे गुनाहगारों से है/अबकी फिरंगी से नहीं, रन अबकी गद्दारों से है’।
मुशायरे का संचालन प्रोफेसर साबिर हबीब ने किया। बीच-बीच में अपनी टिप्पणियों और शेर सुना अच्छा समा बांधा। उन्होंने ग़ज़ल भी सुनाया। अपनी गजल में वे कहती हैं ‘जिस दुपट्टे में लगाए हैं मां ने पेवन/ उसी दुपट्टे को मैंने परचम बना रक्खा है।’ मुशायरे की सदारत जानी-मानी शायरा सलमा हिजाब ने किया। उन्होंने आन्दोलन की कामयाबी की कामना करते हुए नज्म सुनायी और श्रोताओं की तालियां बटोरीं।
उन्होंने कहा ‘ऐ मेरे वतन ऐ अर्जे वतन उत्फ़त की कसम/अज़मत की कसम/आंचल को बनाया है परचम/झुकने नहीं देंगे इसको कभी हम’।
जोश मलीहाबादी की याद में आयोजित इस मुशायरे का संयोजन जसम लखनऊ के कार्यक्रम संयोजक कवि कथाकार फरजाना महदी ने किया। इस मौके पर राजेश कुमार, भगवान स्वरूप कटियार, नाइश हसन, रिजवान अली, रामायण प्रकाश, प्रमोद प्रसाद आदि लेखक, संस्कृतिकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।