“सर, पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के बारे में भी कुछ लिख दीजिए.” मेरे एक दक्षिणपंथी रुख वाले पुराने विद्यार्थी ने लिखा.
यही तर्क भाजपा कब से दे रही है. कि भई, हम तो पड़ोसी देशों में बसे प्रताड़ित हिंदुओं को अपने यहाँ बसाने की अनुमति ही दे रहे हैं. इसमें मुसलमानों को घबराने की क्या बात है !
बतर्ज नवाजुद्दीन सिद्दीकी ‘मैं क्या अलीबाग से आया है !’ क्या इतनी साधारण सी बात हमको समझ नहीं आती कि आपकी बातों में पड़ोसी देश का अल्पसंख्यक है पर आपके निशाने पर यहां हमारे देश का अल्पसंख्यक है. असम की एनआरसी में बेघर हुए अठारह लाख लोगों में से बारह लाख हिंदुओं और एक लाख अन्य धर्मों के लोगों को बचा लिया जाए और पाँच लाख मुसलमानों को डिटेंशन सेंटर्स में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाए.
आसाम की लड़ाई हिंदू-मुस्लिम की कभी थी ही नहीं, वह हमेशा से असामी-गैर आसामी की थी जिसका अपना संदर्भ है. आसाम और पूर्वोत्तर के अनेक राज्य पाँचवी-छठी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं जिसमें मूलनिवासियों के संरक्षण के लिए विशेष प्रावधान होते हैं. भारत के अनेक आदिवासी इलाके इस तरह के हैं और अभी हाल हाल तक कश्मीर भी था, जिसपर चिल्ला चिल्ला कर आपने गाया जैसे कोई विशिष्ट प्रावधान कर कश्मीर को भारत से अलग ही कर रखा गया हो ! पहले कश्मीर और अब पूर्वोत्तर, आप की नज़र यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों पर है जो प्रचुर मात्रा में है. सीएबी इन अभी तक संरक्षित रहे इलाकों की डेमोग्राफी बदल देगा.यह सीधे सीधे आदिवासी विरोधी है, उससे उसकी प्राकृतिक संपदा छीन लेने की शुरुआत है.
दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने जब उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में नागरिकता के ऐसे ही कार्ड्स बनवाये थे तो उनके निशाने पर भूरे/काले लोग थे, आपके निशाने पर मुसलमान हैं. गाँधी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जिस अन्यायी व्यवस्था के विरोध से की, आज उन्हीं का देश उस अन्यायी व्यवस्था को लागू करने जा रहा है.
पूरे तीन चार दशक तक आपकी राजनीति ‘मुस्लिम घुसपैठियों’ की चीख पुकार पर चलती रही. एक राज्य में हुए एनआरसी के नतीजे सामने आते ही वह भरभराकर ढह गई. अब आसाम के लिए आप यह नया सिद्धांत लेकर आये हैं कि इन सूची बदर लोगों में हिन्दू तो प्रताड़ित शरणार्थी है और मुसलमान दुश्मन देश का जासूस है ! पूरा पूर्वोत्तर इस सिद्धांत को मानने से इनकार कर रहा है क्योंकि उनका विरोध बाहरी से था, मुसलमान से नहीं.
पूरे देश मे नागरिकता रजिस्टर बनवाकर आप अब यह खेल पूरे देश मे खेलना चाहते हैं.सीएबी और एनआरसी का मिश्रण वह घातक जहर तैयार करता है जिसमें आपके चयनित छह धर्मों के लोगों को येन केन प्रकारेण नागरिकता मिल जाये और मुसलमान की नागरिकता संदिग्ध हो जाये. सिर्फ मुसलमान ही क्यों, इन छह धर्मों के दायरे से बाहर के सभी लोगों मसलन बहुत से आदिवासी जो अपने को हिन्दू धर्म से पृथक प्रकृति पूजक स्वतंत्र धर्म का मानते हैं, उन्हें हिन्दू धर्म की चौहद्दी में आने के लिए मजबूर किया जाए.
अगर सिर्फ साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले छोटे से आसाम में पांच लाख मुसलमान सूची बदर हो गए तो पूरे देश मे कितने मुसलमान सूची बदर होंगे ? उनके बारे में आपने संसद में कह ही दिया है कि उनके लिए तो सत्रह मुस्लिम देश हैं ! आपके ट्रोल्स तो पहले ही चिल्लाते रहते थे “पाकिस्तान चले जाओ !”, अब आप संसद से भी यही कह रहे हैं.
इस देश मे सिर्फ मुसलमान है जिसकी नागरिकता खराद पर कसी जाकर निखर चुकी है. उसके सामने सैंतालीस में विकल्प था और उसने एक इस्लामिक देश को न चुनकर हमारे देश को अपना वतन चुना. हिंदुओं को अपनी नागरिकता साबित करने का ऐसा सुनहरा मौका कभी नहीं मिला.
आपकी चिंता में पड़ोसी देश का हिंदू नहीं है, आपके निशाने पर इस देश का मुसलमान है ! हम सीएबी-एनआरसी का विरोध इसलिए नहीं कर रहे हैं कि हम पड़ोसी देश के हिंदू के खिलाफ हैं, हम विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि हम इस देश के मुसलमानों के साथ हैं. इस देश का हर गरीब-दलित-आदिवासी जो इस षड्यंत्र को समझ गया है या देर सबेर समझ जाएगा कि एनआरसी उनकी नागरिकता को ‘शरणार्थी नागरिकता’ में बदलकर उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बना सकता है, आपके खिलाफ होगा. इस देश का हर वह सच्चा हिन्दू आपके खिलाफ होगा जिसने अपने मुसलमान दोस्त को दोस्त से ज्यादा भाई समझा है, उसके साथ एक थाली में रोटी खाई है.
आप खेलना चाहते हैं, खेलिए ! प्रेमचंद के उपन्यास ‘रंगभूमि’ का नायक सूरदास जिस तरह अपने गाँव को बचाने के लिए खड़ा हो गया था, वैसे ही हम सब भी धूल झाड़कर खड़े हो जाएंगे. जब असहयोग आंदोलन की वापसी के बाद गाँधी तात्कालिक रूप से हारते दिखाई दे रहे थे, तब इस अमर उपन्यास में प्रेमचंद ने मानों सूरदास के रूप में गाँधी का प्रतिरूप खड़ा कर दिया था. सूरदास की पंक्तियां आपके लिये :
“हम हारे तो क्या, मैदान से भागे तो नहीं, रोए तो नहीं, धांधली तो नहीं की। फिर खेलेंगे। जरा दम ले लेने दो। हार हार कर तुम्हीं से खेलना सीखेंगे और एक न एक दिन हमारी जीत होगी, जरूर होगी।
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