जन संस्कृति मंच, अलीगढ़ और हिंदी विभाग, श्री वार्ष्णेय कॉलेज, अलीगढ के संयुक्त तत्वावधान में वार्ष्णेय कॉलेज में तीन अक्टूबर को केदारनाथ सिंह पर केंद्रित साखी पत्रिका के विशेषांक और उनकी कविताओं पर परिचर्चा का आयोजन किया गया|
कार्यक्रम की शुरुआत केदारनाथ सिंह की प्रसिद्ध कविता ‘पानी में घिरे हुए लोग’ के पाठ से हुआ| कविता का पाठ शोधार्थी सुनील कुमार चौधरी ने किया| चर्चित कवि तथा अमर उजाला, अलीगढ़ के सम्पादक अरुण आदित्य ने केदारनाथ सिंह को लोक संवेदना का विलक्षण कवि मानते हुए उन्हें अपने समय की नब्ज को पकड़ने वाला विरल कवि कहा| उन्होंने केदारनाथ सिंह की कई कविताओं के हवाले से कवि की कविताई के महत्व को रेखांकित किया| उन्होंने बताया कि किस तरह केदारनाथ सिंह जी अपने गाँव की मिट्टी से, अपने मूल से जुड़े हुए कवि थे। उनकी कविता और लोकगीतों से जुड़ाव की बात को लेकर एक प्रसंग की भी चर्चा उन्होंने की जिसमें केदार जी प्रातः काल गंगा-स्नान के लिए जाने वाली महिलाओं के गीत से प्रभावित होने का ज़िक्र था।
सुप्रसिद्ध गद्यकार और ‘यह भी कोई देश है महाराज’ जैसे यात्रा संस्मरण तथा ‘नगरवधुएं अखबार नहीं पढ़तीं’ कथासंग्रह के लेखक अनिल यादव ने ‘कविता क्यों पढ़ें’ विषय पर चर्चा करते हुए अपने वक्तव्य की शुरुआत की| क्यों ढेर सारी कविताओं के बीच कोई ख़ास कविता आपको अपनी ओर खींच लेती है, क्यों कवियों के बीच से कोई एक कवि हठात आपको आकर्षित कर लेता है, कविता का जीवन से क्या रिश्ता है, इन बारीक प्रश्नों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कवि केदारनाथ सिंह के काव्य की महत्ता पर प्रकाश डाला| केदार जी किस तरह निहायत छोटी-छोटी नामामूली चीजो से बड़ी कविता बना लेते हैं, इस पर अनिलजी ने उदाहरण के साथ अपनी बातें रखीं|
कोच विहार पनचानन बर्मा विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल में हिंदी के व्याख्यात सुशील कुमार सुमन ने केदारजी की कुछ कवितायाएँ ‘सन 47 को याद करते हुए’, ‘हॉकर’ आदि कविताओं के माध्यम से उनकी कविताओं में मौजूद राजनितिक चेतना पर अपनी बात रखी| उन्होंने कहा कि ये कवितायें बताती हैं कि केदारनाथ सिंह हमारे समय के लिए क्यों एक बेहद प्रासंगिक और जरूरी कवि लगते हैं|
अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के शिक्षक कमलानंद झा ने कहा कि बड़ा कवि वह होता है जिनकी रचनाओं में अन्य या दूसरे अस्मिताओं के लिए पर्याप्त जगह होती है| डॉ. झा ने कहा कि उनकी कविता को पढ़ना मनुष्यता की ओर बढाया गया एक और कदम है| उन्होंने केदारजी की भक्त कवि कुम्भनदास पर लिखी कविता के माध्यम से कवि और कविता के साथ सत्ता के आपसी रिश्ते पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कविता और सत्ता के बीच हमेशा से अनबन रही है| और यही कवि की कसौटी भी है|
शोधार्थी कंचन कुमारी ने केदारनाथ सिंह की कविताओं में प्रेम और स्त्री-प्रश्न की बारीक पड़ताल की| कंचन ने कहा कि इनकी प्रेम कविता में रेखांकित करने वाली बात यह है कि प्रेम में अलगाव की स्थिति में भी यह ऊर्जा का संचार करती हुई जीवन में हथेलियों की गर्माहट को बनाए रखती है| इनकी कविता में प्रेम और स्त्री ऐसे आती है जैसे ‘छीमी में धीरे-धीरे रस’ आता है|
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. रमेश कुमार ने कहा कि साखी का यह अंक केदारनाथ सिंह की कविता ही नहीं बल्कि उनके गद्य-लेखन को समझने की दृष्टि से अद्भुत है| उन्होंने संस्मरण खंड और कविता खंड की विस्तृत समीक्षा की| समीक्षा करते हुए उन्होंने कहा कि केदारनाथ सिंह अपनी काव्य यात्रा के पूर्वार्द्ध में लिरिकल हैं| इस दौर की कविताएँ संवेदना और शिल्प की दृष्टि से गीत के ज्यादे करीब हैं| उत्तरार्द्ध में वे नैरेटिव्स के करीब पहुँचते तो हैं पर यहाँ भी उसे पूरी तरह बरत नहीं पाते| आगे उन्होंने कहा कि कल्पना और बिम्ब के सशक्त कवि के रूप में वे काव्य के भारतीय परिदृश्य में याद किये जाएँगे| यह उनका महत्वपूर्ण योगदान माना जाएगा।
कार्यक्रम का सफल संचालन शोधार्थी नवीन सिंह ने और धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी नूतन भारद्वाज ने किया| कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के शोधार्थियों एवं कॉलेज के विद्यार्थियों की भारी उपस्थिति रही इसके अतिरिक्त प्रो.शम्भूनाथ तिवारी, डॉ संजीव कौशल, दीपशिखा सिंह, शाहबाज़ अली खान, राकेश कुमार, निर्मला कुमारी, गीतम सिंह, अर्चना गुप्ता, एकता सिंह एमएम सिंह, यज्ञदेव शर्मा, नीरज शर्मा एवं सोनपाल सिंह, प्रतिभा शर्मा, तथा एस के सिंह आदि साहित्य प्रेमी कार्यक्रम में उपस्थित थे|