पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षक भर्ती में 13 पॉइंट रोस्टर को फिर से बहाल करते हुए यह कहा है कि अब आरक्षण विभागवार लागू होगा।
ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा विभागवार रोस्टर लागू किये जाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एस एल पी डाल रखा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले को उचित ठहराते हुए सरकार और यू जीसी द्वारा दाखिल याचिका को ख़ारिज कर दिया।
सरकार और आयोग को विश्वविद्यालयों और राजनीतिक क्षेत्रों में इसके ख़िलाफ़ उठने वाली आवाज़ों के दबाव में ये याचिकाएँ दाख़िल करनी पड़ीं। लेकिन यह साफ़ दिखाई दिया कि सरकार और आयोग दोनों ने जान बूझकर केस को कमजोर तरीके से लड़ा इसलिए उनकी याचिकाएँ खारिज हो गयी।
यह सही है कि सरकार की नीतियों में सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के लिए कोई जगह नहीं है बल्कि इसके विपरीत किसी न किसी रूप में इन तबकों के संवैधानिक अधिकारों और अवसरों पर हमला करना उसका उद्देश्य है।
वहीं वह सवर्ण तबकों के गरीब लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करके यह संदेश देना चाहती है कि वह इस तबके के प्रति खासतौर पर हितैषी है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह पूरा प्रावधान संविधान में आरक्षण की मूल अवधारणा के ख़िलाफ़ है और आरक्षण के मूल अर्थ को ख़त्म करता है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार अब शैक्षणिक संस्थानों में विभागवार ही आरक्षण लागू किया जायेगा। इससे अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग की सीटों में बड़े पैमाने पर कटौती हो जायेगी। खासतौर पर ऐसे विभागों में कभी भी इन तबके के लोगों का नंबर नहीं आएगा जो अध्यापकों की संख्या के लिहाज से छोटे हैं। पिछले दिनों देश के तमाम विश्वविद्यालयों में 13 पॉइंट या विभागवार रोस्टर के हिसाब से ही नियुक्तियाँ हुई हैं जिनमें आरक्षित वर्गों की सीटें या तो बहुत कम थी या थी नहीं।
ऐसे में यह पूरा रोस्टर सामाजिक और आर्थिक रूप में वंचित तबकों की बेदखली का फ़रमान है। ऊपर से विडम्बना यह है कि यू आर के रूप में विज्ञापित होने वाली सीटों पर केवल सवर्ण तबके के लोगों की नियुक्तियाँ करके संस्थान काउंटर रिजर्वेशन लागू करते हैं यानी कि अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों की भर्तियाँ उन सीटों पर नहीं की जाती हैं जबकि ये सीटें सभी तबकों के लिए होती हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस हालिया फैसले के ख़िलाफ़ देशभर के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। यह मांग की जा रही है कि सरकार इस मसले पर लोकसभा में अध्यादेश लाकर और कानून बनाये ताकि संवैधानिक आरक्षण की रक्षा की जा सके और सामाजिक न्याय को सुनिश्चित किया जा सके।
ज्ञातव्य है कि उच्च शिक्षा के लगभग सभी प्रतिष्ठित संस्थान इस सरकार के निशाने पर रहे हैं । देश के शिक्षा संस्थानों का नाश इस सरकार की प्रतिगामी विचारधारा के लिए जरूरी है । बुद्धि विरोध का यह अभियान व्यक्तियों की हत्या के बाद संस्थाओं की हत्या पर उतर आया है ।
डी टी आई इस सुनियोजित हमले को शिक्षा के विनाश की एक गम्भीर कोशिश समझता है । इसीलिए हम सामाजिक न्याय संपन्न आधुनिक चेतना के विध्वंस की दिशा में जारी इन हमलों के विरोध में होने वाले सभी प्रयासों के साथ अपनी एकजुटता ज़ाहिर करते हैं और सरकार से नया अध्यादेश लाकर विश्वविद्यालय स्तरीय रोस्टर को तत्काल प्रभाव से बहाल करने की मांग करते हैं ।
(दिल्ली टीचर्स इनिशिएटिव की ओर से प्रो. गोपाल प्रधान (संयोजक) डॉ. उमा गुप्ता (सह-संयोजक) की ओर से जारी)