समकालीन जनमत
कविता

व्यवस्था की विसंगतियों पर प्रहार है देव नाथ द्विवेदी की गजलों में

लखनऊ में देव नाथ द्विवेदी के  गजल संग्रह ‘ हवा परिन्दों पर भारी है ’ का विमोचन और परिसंवाद

कौशल किशोर

लखनऊ. ‘ हिन्दुस्तानी जबान में आम आदमी की कविता को हम हिन्दी गजल कहते हैं. समकालीनता और जन पक्षधरता इसके दो घटक हैं. जन समस्या, जन सरोकार, जनाक्रोश और जनांदोलन से हिन्दी गजलो का गहरा जुड़ाव है. दुष्यन्त, गोरख, अदम से यह परम्परा आगे बढ़ी. देव नाथ द्विवेदी की गजलें इसी का हिस्सा है. देव नाथ की गजलों में सरलता और सहजता है तो वहीं गंभीरता और कहने का अपना लहजा है. इनमें ऐसी क्षमता है कि ये जनमानस को आकर्षित और उद्वेलित कर दें.’

यह विचार देव नाथ द्विवेदी के दूसरे गजल संग्रह ‘हवा परिन्दों पर भारी है’ के विमाचन और परिसंवाद के अवसर पर प्रकट किए गये. जन संस्कृति मंच की ओर से आयोजित यह कार्यक्रम 26 अप्रैल को यूपी प्रेस कलब में हुआ जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति ने तथा संचालन किया उर्दू शायर अली सागर ने की। सुल्तानपुर से आये गजलकार डी एम मिश्र विशिष्ट अतिथि थे.

आरम्भ में देवनाथ द्विवेदी ने अपनी साहित्य यात्रा के बारे में बताया और अपनी दो गजलें सुनाईं. डॉ मालविका हरिओम और डॉ अवनीश यादव ने देव नाथ द्विवेदी की कुछ गजलों का सस्वर पाठ किया. डॉ मालविका ने कहा कि सृजन मोहब्बत से शुरू होता है लेकिन वहीं खत्म नहीं होता. वह समाज की सच्चाइयों से रू ब रू होता है। वह इंकलाब तक जाता है. हमारे समाज को जो सज है, देव नाथ द्विवेदी अपनी गजलों में उसे ही व्यक्त करते हैं. इनकी गजलें नज्म के करीब हैं.

देवनाथ द्विवेदी की गजलों को केन्द्र कर हुए परिसंवाद को जाने माने उर्दू शायर ओमप्रकाश नदीम, कवि व पत्रकार सुभाष राय, कवयित्री-कथाकार उषा राय ने अपने विचार रखे। उनका कहना था कि भले ही गजल की शुरुआत रुमानी इजहार से हुई हो लेकिन आज लिखी जा रही गजलों की विशेषता है कि इसने भूख, गरीबी, मुफलिसी, खेत, किसान, सड़क, फुटपाथ के साथ समय, समाज व जिन्दगी के जद्दोजहद को कथ्य बनाया और उसे जिस छन्दबद्ध व लयात्मक तरीके से काव्य के आम पाठकों तक पहुंचाया है, इससे हिन्दी कविता समृद्ध हुई है. यही आज की ग़ज़लों का नया वितान है. इनमें एक तरफ मानव प्रेम और प्रतिरोध की चेतना है तो वहीं सामाजिक दायित्वबोध.

वक्ताओं का कहना था कि देव नाथ द्विवेदी की ग़ज़लों में जीवन के कई रंग हैं. वे प्रेम को जीवन के लिए आवश्यक मानते हैं, वहीं प्रकृति से उनका लगाव भी कम नहीं है. संकट में आज जीवन ही नहीं है वरन प्रकृति भी है. उसका निहित स्वार्थ में जिस तरह दोहन हो रहा है, वह चिन्ताजनक है. इनकी गजलों में
श्रम को बड़ा महत्व दिया गया है. उनकी समझ है कि दुनिया की जो भव्यता है, जो सौंदर्य है वह श्रम और श्रमिकों के पसीने की खुशबू है। यहां प्रेम है तो वहीं समाज की पीड़ा भी है. इनकी गजलों में व्यवस्था की विसंगतियों पर प्रहार है, वहीं संदेश भी है. यहां उम्मीद है और स्वप्न भी है. वक्ताओं ने अपनी बात के समर्थन में देव नाथ द्विवेदी की कई गजलों का उल्लेख भी किया.

जसम के प्रदेश अध्यक्ष कौशल किशोर ने सभी का स्वागत किया और धन्यवाद ज्ञापन कवि भगवान स्वरूप कटियार ने दिया. इस मौके पर गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव, अजय सिंह, किरण सिंह, अनीता श्रीवास्तव, डॉ निर्मला सिंह, प्रताप दीक्षित, अजीत प्रियदर्शी, धर्मेन्द्र, आदियोग, रामकिशोर, श्याम अंकुरम, विमल किशोर, रमेश सेंगर, शोभा द्विवेदी, आशीष, के के शुक्ला, वीरेन्द्र त्रिपाठी, लक्ष्मी नारायण एडवोकेट, सी एम लाल, डॉ रुबी राज सिन्हा आदि बड़ी संख्या में साहित्य सुधि श्रोता उपस्थित थे.

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