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रचना सिर्फ सकलम नहीं बल्कि सकर्मक होनी चाहिए

75 पार राजेन्द्र कुमार : प्रो राजेन्द्र कुमार के सम्मान में उमड़ा नागरिक समाज

इलाहाबाद। सेंट जोसेफ कालेज स्थित होगेन हाल में वरिष्ठ कवि, आलोचक एवम जन संस्कृति मंच के अध्यक्ष प्रो राजेन्द्र कुमार के जीवन के 75 वर्ष पूरा होने पर जसम, प्रलेस और जलेस ने संयुक्त रूप से एक भव्य समारोह का आयोजन किया।

क्रांतिकारी गीतों के गायन के साथ पहला सत्र शुरू हुआ। इस सत्र में जसम, जलेस, प्रलेस, समानांतर, राजकमल प्रकाशन, हिंदुस्तानी एकेडमी, सहित्य भंडार, बैक स्टेज, दस्तक, प्रयाग पथ, अभिव्यक्ति, नागरिक समाज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग, ईसीसी, सीएमपी, एडीसी, आर्य कन्या आदि कालेजों के हिंदी विभाग व अन्य संस्थाओं की ओर से शाल ओढाकर तथा गुलदस्ता भेंट कर प्रो राजेन्द्र कुमार को सम्मानित किया गया।

सबसे पहले शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता उमेश नारायण शर्मा ने प्रो राजेन्द्र कुमार को शाल ओढा कर सम्मानित किया। इसके बाद अन्य संस्थाओं की ओर से क्रमशः प्रो मैनेजर पांडेय, फखरूल करीम, हरिश्चन्द्र पांडेय, अनिता गोपेश, रमेश ग्रोवर, सतीश अग्रवाल, प्रवीण शेखर, सीमा आज़ाद, हितेश कुमार, शिवानंद, ओ डी सिंह, रामकिशोर शर्मा, रमोला रूथ लाल, अनुपम आनंद सरोज सिंह, मार्तण्ड सिंह, कल्पना वर्मा आदि ने उन्हें सम्मानित किया।

इस अवसर पर शहर के हिंदी और उर्दू के तमाम साहित्यकार, ट्रेड यूनियन और कम्युनिस्ट पार्टियों के कार्यकर्ता, नाट्य व सांस्कृतिक संस्थाओं, पत्र एवम पत्रिकाओं के प्रतिनिधि तथा भारी तादाद में अध्यापक, सामाजिक कार्यकर्ता, विद्यार्थी उपस्थित थे।

प्रथम सत्र की शुरुआत प्रो संतोष भदौरिया के स्वागत वक्तव्य से हुआ। इसके बाद प्रो जनार्दन ने राजेन्द्र कुमार की कहानियों पर केंद्रित एक पर्चा पढ़ा।

इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो मैनेजर पांडे ने राजेंद्र कुमार की कविताओं के साम्राज्यवाद विरोधी स्वर को रेखांकित करते हुए उनकी कविताओं की जनतांत्रिकता की चर्चा की। प्रो लाल बहादुर वर्मा ने राजेंद्र कुमार को बधाई देते हुए वाम पक्ष के सभी सांस्कृतिक संगठनों की एकता की जिम्मेदारी निभाने की अपील की। अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रो कमलानंद झा ने राजेंद्र कुमार के एक्टिविस्ट रूप की चर्चा करते हुए उनकी विज्ञानवादी दृष्टि को खास तौर पर रेखांकित किया। प्रो झा ने कहा कि राजेन्द्र कुमार सिर्फ साहित्य के आलोचक नहीं बल्कि आलोचक समाज बनाने की गतिविधि में संलग्न एक सांस्कृतिक जागरण के प्रतिनिधि हैं।

प्रो अली अहमद फातमी ने इलाहाबाद की गंगा जमुनी साहित्यिक संस्कृति की विशिष्टता को रेखांकित करते हुए राजेन्द्र कुमार को हिंदी-उर्दू का सेतु बताया। प्रो फातमी के अनुसार राजेन्द्र कुमार के व्यक्तित्व में संतों का खमीर और सूफियों का ज़मीर घुल मिल गया है।

लखनऊ से पधारे प्रख्यात कथाकार और ” तद्भव ” पत्रिका के संपादक अखिलेश ने अपने छात्र जीवन की याद करते हुए अपने गुरु राजेन्द्र कुमार के घर को युवक साहित्यकारों का प्रशिक्षक केंद्र और तमाम साहित्यकारों का ठिकाना बताया। उन्होंने कहा कि यदि राजेन्द्र कुमार जैसे शिक्षक का सानिध्य न मिला होता तो वे जिस मुकाम पर आज हैं वहां न पहुंचे होते।

प्रो अनिता गोपेश ने राजेन्द्र कुमार के व्यक्तित्व की सहजता और सरलता के साथ साथ उनकी वैचारिक दृढ़ता के अनेक किस्सों को याद किया।

लखनऊ से आये वरिष्ठ आलोचक वीरेन्द्र यादव ने राजेन्द्र कुमार द्वारा संपादित ‘ अभिप्राय ‘ पत्रिका के ऐतिहासिक योगदान की चर्चा की। उन्होंने तीन -चार दशक पहले के उनके लेखों का हवाला देते हुए बताया कि कैसे उनके लेखों ने दशकों पहले आज के भयावह खतरों से आगाह किया था। श्री यादव ने कहा कि वे उस दौर के विरले आलोचकों में थे जिन्होंने दलित विमर्श को समझने पर जोर दिया। वीरेंद्र यादव ने उनकी आलोचना की जनतांत्रिकता पर जोर देते हुए यह कहा कि उसमें आत्मावलोचना शामिल है।

वरिष्ठ कवि हरिशचंद्र पांडेय ने उनकी कविताओं में भारत के मैनचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर शहर के मेहनतकशों की दुनियां के विम्बों को लक्षित किया।

भोपाल से आये वरिष्ठ आलोचक विजय बहादुर सिंह ने कहा कि राजेन्द्र जी अजातशत्रु हैं। वे अपने जीवन काल में ही अध्यापक से अधिक खुद में एक गुरुकुल हैं। रांची से आये वरिष्ठ आलोचक रवि भूषण ने उनके एक मुक्कमल इंसान होने के साथ मिलाकर उनकी रचना शीलता को समझने की सिफारिश की।

पहले सत्र के अंत में प्रख्यात अलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी द्वारा राजेन्द्र कुमार के कविताओं के वाचन का वीडियो दिखाया गया।

दूसरे सत्र के प्रारंभ के पहले अपने संबोधन में प्रो राजेन्द्र कुमार ने कहा कि कहा कि रचना सिर्फ सकलम नहीं बल्कि सकर्मक होनी चाहिए. उन्होंने सामाजिक परिवर्तन के संघर्ष को और मजबूती से जारी रखने का आह्वान करते हुए अपना एक शेर पढ़ा -“अगर कल ख़्वाब हो जाऊँ, तो दे देना उन आँखों को
जो खैंचा चाहती हैं इक बदलती दुनिया का ख़ाका।”

दूसरे सत्र में कविता गोष्ठी में लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता, अंशुल त्रिपाठी, अंशु मालवीय, मृत्युंजय, बृजेश यादव, संध्या नवोदिता, बसंत त्रिपाठी, प्रियदर्शन मालवीय, मदन कश्यप, पंकज चतुर्वेदी, मनोज कुमार सिंह, हरीश चंद्र पांडेय तथा स्वयं राजेन्द्र कुमार ने कविता पाठ किया।
प्रथम सत्र का संचालन के के पांडेय तथा कुमार वीरेंद्र तथा दूसरे सत्र संचालन कवि संतोष चतुर्वेदी ने किया। धन्यवाद जसम के महासचिव मनोज सिंह ने किया।

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