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यौन उत्पीड़न के नौ मामलों में आरोपी अतुल जोहरी को बचाने में जुटा है जेएनयू प्रशासन

 

यौन उत्पीड़न के नौ मामलों में आरोपी जेएनयू के प्रोफेसर अतुल जोहरी पर एफआईआर दर्ज हुए 72 घंटे से भी अधिक हो गए हैं. बावजूद इसके उनके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही होना तो दूर कैंपस में वे अपनी तमाम ज़िम्मेदार भूमिकाओं में न केवल कायम है बल्कि उनका फ़ायदा भी उठा रहे हैं. अतुल जोहरी इस समय विश्वविद्यालय की ‘इंटरनल क्वालिटी एश्युरेंस सेल’ के डायरेक्टर हैं, ‘ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट सेल’ के डायरेक्टर हैं, एक छात्रावास के वार्डन हैं, और कैंपस की कई समितियों में वाईस-चांसलर के पसंदीदा उम्मीदवार भी हैं.

जेएनयू में जीएसकैश जैसी मज़बूत समिति को यहाँ के प्रशासन ने भंग कर दिया है जिसके चलते यहाँ के छात्र-छात्राओं को अपनी मांगों को लेकर पुलिस के पास जाना पड़ा और अतुल जोहरी जिनके ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के बेहद गंभीर आरोप हैं की गिरफ़्तारी के लिए पुलिस स्टेशन तक मार्च करना पड़ा. जेएनयू में यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ मौजूदा आईसीसी (इंटरनल कम्प्लेंट्स कमिटी) नामक समिति के सभी सदस्य आरोपी के नज़दीकी और प्रशासन के प्रति नर्म रूख़ रखने वाले हैं. अतुल जोहरी प्रशासन में अपनी प्रभावशाली पहचान भी रखता है. इसलिए आज तक आईसीसी पर यहाँ के छात्रों का कोई भरोसा भी नहीं बन पाया है. इस तरह कि परिस्थिति के कारण छात्रों को प्रशासन के एक ऐसे ताकतवर व्यक्ति के ख़िलाफ़ जिस पर यौन उत्पीड़न के एक नहीं कई मामले सामने आये हैं, उसके ख़िलाफ़ पुलिस के पास जाने के अतिरिक्त और विकल्प ही क्या बचता है.

होना तो यह चाहिए था कि पीड़िताओं को अकादमिक संस्थान के भीतर से ही न्याय दिलाने कि प्रक्रिया को अंजाम दिया जाना चाहिए था पर नख-दन्त विहीन आईसीसी और जीएसकैश जैसी ताकतवर और निष्पक्ष संस्था को ख़त्म कर दिए जाने के कारण यह संभव नहीं हो सका. शिकायतकर्ता अपने ऊपर हुई ज़्यादती को लेकर पुलिस के पास गयीं, पर मुख्य बात यह है कि जिस अवैधानिक तरीके से जीएसकैश नामक संस्था को रद्द किया गया है वह इस बात कि चेतावनी है कि अब अकादमिक संस्थानों से यौन उत्पीडन के शिकार लोगों को न्याय की कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए.

ऐसा दूसरी बार हो रहा है जब जेएनयू में यौन उत्पीड़न के मामले में आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया है क्योंकि शिकायतकर्ताओं को अब जेएनयू आईसीसी की स्वायत्तता, निष्पक्षता और कर्मठता पर कोई भरोसा नहीं रह गया है.
कई दिनों तक आरोपी के ख़िलाफ़ चले प्रदर्शनों के बावजूद प्रशासन ने न ही उन्हें उनके प्रशासनिक पदों से हटाया, न ही उन्हें सस्पेंड किया है जिस से ताकत पाकर अतुल जोहरी क्रमवार तरीके से उत्पीड़न की कई घटनाओं को अंजाम देता रहा. तथ्य यह है कि प्रशासन इस बात के प्रचार में लगा हुआ है कि अतुल जोहरी ने स्वयं ही अपने प्रशासनिक पदों से इस्तीफ़ा दिए जाने की बात कही है, यह दर्शाता है कि प्रशासन उन पर कार्यवाही करने के स्थान पर उनके प्रति सहानुभूति प्राप्त करने में अधिक लगा हुआ है. आखिर प्रशासन उन्हें सस्पेंड क्यों नहीं कर पा रहा है? इस तरह कि परिस्थिति में पीड़ित को न्याय मिलेगा कैसे जबकि प्रशासन ख़ुद ही आरोपी को शील्ड कर रहा है? और उधर पुलिस भी एफआईआर दर्ज हो जाने के बावजूद एक्शन लेने में कोताही करती नज़र आ रही है.

जोहरी का अपने प्रशासनिक पदों से इस्तीफ़ा देने की बात पूरी तरह से खोखली है. सवाल यह है कि अगर अतुल जोहरी ने वाकई अपने प्रशासनिक पदों से इस्तीफ़ा दे दिया है तो वह चंद्रभागा हॉस्टल के वार्डन के रूप में अभी भी वार्डन फ्लैट में कैसे रह रहे हैं ? उनका इस्तीफ़ा उनकी नौकरी से नहीं है.  इसका मतलब होगा कि वे अभी भी अपनी कक्षाएं ले पायेंगें और लैब के छात्रों को सुपरवाईज़ भी करेंगें. इसका साफ़ मतलब है कि वे पीड़िताओं के संपर्क में भी आ सकेंगें क्योंकि वे उनके अपने डिपार्टमेंट की छात्राएं हैं. एक बार फिर से लैंगिक न्याय और यौन उत्पीड़न के मामलों के लिए यह बहुत घातक बात है, क्योंकि ऐसे मामलों में आरोपी को न्यायिक आदेश दिया जाता है कि वह शिकायतकर्ता से किसी भी सूरत कोई संपर्क न करे और इसकी गारंटी तभी की जा सकती है जबकि आरोपी को उसकी सभी प्रशासनिक और अकादमिक जिम्मेदारियों से सस्पेंड किया जाये. ऐसा  जेएनयू प्रशासन को करना था पर उन्होंने नहीं किया क्योंकि वह तो ख़ुद ही आरोपी को बचाने में लगा हुआ है. जब तक कि वास्तव में उन्हें सस्पेंड नहीं किया जाता तब तक इस्तीफ़ा देने की बात अतुल जोहरी और प्रशासन की तरफ से एक खोखला संकेत ही माना जायेगा.

तथ्य तो यह है कि जेएनयू प्रशासन की और से जारी प्रेस रिलीज़ में इस बात का ज़िक्र तक नहीं है कि उन्होंने अतुल जोहरी का इस्तीफ़ा स्वीकार किया भी है कि नहीं, केवल प्रेस रिलीज़ देने भर से उनकी सक्रियता प्रमाणिक नहीं मानी जायगी क्योंकि इससे शिकायतकर्ताओं को न्याय मिलने का कोई रास्ता नहीं बनता. 16 मार्च 2018 को जारी की गयी प्रेस रिलीज़ में प्रशासन शिकायतकर्ताओं को अपमानजनक तरीके से कमतर आंकता है जब वह रिलीज़ में यौन उत्पीड़न में एक नहीं कई मामलों के आरोपी के ख़िलाफ़ स्पष्टतया कहने के स्थान पर लिखते हैं ‘उनके ख़िलाफ़ कुछ शिकायतकर्ताओं ने मौखिक शिकायत ज़ाहिर की’. ‘कुछ शिकायतकर्ता’ ? यौन उत्पीड़न की और कितनी शिकायतों कि दरकार है जेएनयू प्रशासन को जिसके बाद वह अपने इस चहेते प्रोफेसर के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही करना उचित समझेंगें ? और यह भी समझाना होगा कि यह सिर्फ शिकायतें नहीं हैं जैसा कि प्रशासन दर्शा रहा है बल्कि यह क्रमवार तरीके से किये गए यौन उत्पीड़न के बेहद गंभीर मामले हैं.

जेएनयू प्रशासन का यह कहना कि वह इस मामले को कैंपस के आईसीसी के तहत हल कर लेगा, यह सिर्फ इस पूरे मामले में टाल मटोल करने कि जुगत है क्योंकि आईसीसी के सभी सदस्य अतुल जोहरी के नज़दीकी हैं जो जोहरी को बचाने के लिए कुछ भी करेंगें. जेएनयू के छात्रों की मांग बिलकुल स्पष्ट है, वे चाहते हैं जोहरी को अविलम्ब अपनी सभी अकादमिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों से सस्पेंड किया जाये. उन्हें चंद्र्भागा हॉस्टल की वार्डनशिप और फ्लैट से हटाया जाये.

दिल्ली पुलिस को आखिर जोहरी के ख़िलाफ़ एक्शन लेने से कौन रोक रहा है?
शिकायतकर्ताओं द्वारा दर्ज कराई गयी एफआईआर पर पुलिस ने अभी तक केवल प्रतीकात्मक कार्यवाही की है. यह जानने के बाद कि छात्र 17 मार्च को वसंतकुंज थाने पर प्रोटेस्ट करने वाले हैं पुलिस ने रात 9 बजे शिकायतकर्ताओं को नोटिस दिया कि वह आकर सेक्शन 164 के तहत अपनी शिकायत दर्ज करें, और सोमवार को उनसे थाने आने के लिए कहा गया है जो कि अभी तीन दिन दूर था. पुलिस इस देरी के पीछे जो तर्क दे रही है कि स्टेटमेंट केवल मजिस्ट्रेट के सामने ही दर्ज किया जा सकता है वह पूरी तरह से झूठ है.

ऐसे कई मामले और अवसर रहे हैं जहाँ स्टेटमेंट कोर्ट के बाहर भी रिकॉर्ड हुए हैं. स्टेटमेंट दर्ज करने में की जा रही ये लापरवाही इस पूरे मामले में आरोपी के प्रति पुलिस कि नरमी दिखा रही है और उस गठजोड़ कि तरफ भी यह स्पष्ट संकेत है जो पुलिस-आरोपी और प्रशासन के मध्य बना हुआ है. कन्हैया कुमार पर एफआईआर दर्ज होने के 24 घंटे से पहले ही उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है तो फिर जोहरी को क्यों नहीं? इस से यह भी स्पष्ट है कि पुलिस पीड़िताओं के प्रति बिल्कुल संवेदनहीन है, जबकि जोहरी पर न तो पुलिस की तरफ से न ही प्रशासन की तरफ से कोई कार्यवाही हुई है उसके पास ये पूरी छूट है कि वह इस जाँच को प्रभावित कर सकता है.

जेएनयू  के आन्दोलनरत छात्र-छात्राओं का कहना है कि जोहरी खुले आम मीडिया में यह कहने का सहस कर पा रहा कि उसके ख़िलाफ़ दर्ज कि गयी शिकायत केवल उसे बदनाम करने कि साजिश के तहत की गयी है. यह पीड़िताओं कि गरिमा और उनके उस साहस का अपमान है जिसके बल पर वह जोहरी द्वारा अपने ऊपर हुई ज़्यादती के ख़िलाफ़ खुलकर वह जनता के सामने आई हैं. जेएनयू प्रशासन शिकायतकर्ताओं का साथ देने उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करने के स्थान पर, जोहरी को सस्पेंड न करके उन साहसी शिकायतकर्ताओं का अपमान कर रहा है.

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