नई दिल्ली. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ ने वाइस चांसलर जगदीश कुमार पर दो वर्षों से छात्र व शिक्षक विरोधी नीतियों के जरिए जेएनयू के लोकतांत्रिक और समावेशी चरित्र को नष्ट करने का आरोप लगाते हुए उनको हटाने की मांग की है। छात्र संघ की अगुवाई में 20 फरवरी को हजारों छात्र-छात्राओं ने हड़ताल करते हुए जेएनयू से मानव संसाधान विकास मंत्रालय तक मार्च किया और मांग पत्र दिया।
इस मार्च में बड़ी संख्या में जेएनयू के शिक्षक और दिल्ली के नागरिक शामिल हुए। मार्च में शामिल छात्र-छात्राएं, शिक्षक व नागरिक ‘ वीसी हटाओ, जेएनयू बचाओ ’ का नारा लगा रहे थे।
मार्च के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय को दिए गए ज्ञापन में जेएनयू छात्र संघ ने वाइस चांसलर जगदीश कुमार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वह दो वर्षों से छात्र व शिक्षक विरोधी नीतियों के जरिए जेएनयू के लोकतांत्रिक और उसके समावेशी चरित्र को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। शोध सीटों में भारी कटौती, आरक्षण और डिप्राइवेशन पॉइंट्स में कमी, जीएसकैश को खत्म करने, एकीकृत बीए-एमए और एकीकृत एम फिल-पीएचडी समाप्त करने की कोशिश, फैकल्टी चयन समितियों और पक्षपातपूर्ण नियुक्तियों के लिए नियमों में छेड़छाड़ और अब अनिवार्य उपस्थिति के नाम पर मनमानी विनियमन – क्रमिक रूप से जेएनयू को नष्ट करने के उनके अभियान का हिस्सा हैं।
ज्ञापन में कहा गया है कि कुलपति विश्वविद्यालय में निर्णय लेने वाली संस्थाओं को बर्बाद कर रहे हैं। वैधानिक निर्णय लेने वाली संस्थाओं में बिना चर्चा के वीसी की सनक को थोपना, शैक्षणिक परिषदों को बार-बार कुचलने की कोशिश, नियमों का उल्लंघन करना और मीटिंगों के मिनट्स में तोड़-मरोड़ करना एक सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थान को मनमाने तरीके से चलाने की सोच को दर्शाता है।
छात्र संघ ने कहा कि वी सी लगातार सभी लोकतांत्रिक चर्चाओं को समाप्त करने, असहमति के अधिकार को खत्म करने और जेएनयू को धमकियों, परिपत्र, मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे झूठ, अदालती मामलों, पुलिस और दंड के माध्यम से चलाने की कोशिश कर रहे हैं। आज तक कुलपति ने बातचीत का कोई संकेत नहीं दिया है और केवल छात्रों को और दंडित करने की धमकी दे रहे हैं। उन्होंने जेएनएसयू सहित छात्रों पर एफआईआर दर्ज कराया और अवमानना की कार्यवाही कर दमित कर रहे हैं। कुलपति ने 23 फरवरी की शैक्षणिक परिषद की बैठक को अभूतपूर्व छात्र विरोध के चलते अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया है और अनिवार्य उपस्थिति को वापस नहीं लेने की घोषणा कर दी है।
कुलपति का झूठ उनके ही द्वारा नियुक्त शैक्षणिक परिषद की बाहरी सदस्य मधु किश्वर ने उजागर किया है। मधु किश्वर ने स्पष्ट रूप से ट्वीट किया है कि एक दिसम्बर 2017 की शैक्षणिक परिषद में अनिवार्य उपस्थिति नीति को पारित नहीं किया गया है। यह शिक्षकों और छात्रों के पक्ष की पुष्टि करता है और साबित करता है कि किस तरह वाइस चांसलर बड़े पैमाने पर झूठ के माध्यम से विश्वविद्यालय के सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था पर अनौचित्यपूर्ण और दमनकारी हस्तक्षेप कर रहे हैं।
जेएनयू के हजारों छात्रों ने सामूहिक हस्ताक्षर कर, जेएनयू स्कूल्स और जीबीएम सेंटर्स, जेएनयू टीचर एसोसिएशन और जेएनयू छात्र संघ ने वाइस चांसलर को को विस्तार से लिखा है कि जे एन यू में अनिवार्य उपस्थिति का नियम कितना गैरजरूरी और विनाशकारी है लेकिन वीसी ने जेएनयूटीए, जेएनयूएसयू के साथ-साथ जीबीएम सेंटर्स की राय को मानने से इंकार कर दिया। जब न केवल छात्रों बल्कि शिक्षकों ने इस प्रशासनिक कदम को खारिज कर दिया है तो क्या यह एक वीसी को शोभा देता है कि ऐसे नियमों को जबरन थोपा जाए जैसे कि वह एक राजा हों और छात्र एवं शिक्षक उनकी प्रजा ?
ज्ञापन में लिखा गया है कि हम कक्षा में जाने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम सैन्य अनुशासन के खिलाफ हैं। जेएनयू में छात्रों ने न केवल कक्षाओं में भाग लिया है, बल्कि बहस मुबाहिसे के माध्यम से सीखने के प्रति आकर्षण के कारण वे अधिक उपस्थिति दर्ज कराते हैं। छात्रों ने स्पष्ट रूप कहा है कि वे कक्षाओं में भाग न लेने के अधिकार के लिए नहीं लड़ रहे हैं, वे जेएनयू की सर्वोत्तम परंपराओं में बिना किसी बेवजह और मनमानी विनियमन के सीखने के अपने अधिकार के लिए लड़ रहे हैं, जिसने दशकों से उसकी अकादमिक उत्कृष्टता कायम रखी है।
जेएनयूएसयू के एमएचआरडी मार्च में हजारों की संख्या में शामिल लोगों ने जोर से और स्पष्ट घोषित किया -जगदीश कुमार जी, आप संस्थागत जवाबदेही से भाग नहीं सकते और आप जेएनयू के वीसी के रूप में बने रहने की सभी वैधता और अधिकार खो चुके हैं। ’ जेएनयू छात्र ऐतिहासिक एमएचआरडी मार्च में एक आवाज में घोषणा करने के लिए उमड़ पड़े हैं कि जगदीश कुमार हमारे वीसी नही हैं। ’
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