क्या यह अकारण था कि दुनिया जब महायुद्ध लड़ रही थी , कलाकार अमूर्तन और वस्तुनिरपेक्षता की तरफ बढ़ रहे थे। विचार , धर्म , प्रजाति , राष्ट्र आदि की श्रेष्ठता बोध से ग्रस्त होकर विनाशक परमाणु बम गिराए जा रहे थे तो कलाकार अपने कैनवास पर आकार का निषेध कर रहे थे। एक तरफ हिटलर जैसे कट्टर नराधम का उभार था दूसरे तरफ अकूत धन व सोना के भंडारण और परमाणु शक्ति सम्पन्न होने का घमंड। मानवीय सभ्यता को सर्वाधिक शर्मशार करने वाली ऐतिहासिक दुर्घटनाएं इसी सदी में घटी। राजनीतिक आर्थिक प्रताड़ना के हिंसक कुकर्म और मानव मात्र की मुक्ति व स्वतंत्रता के संग्राम एक साथ चले । गर्व करने वाले सुकर्म भी शायद इसी सदी के हिस्से था।
अमेरीका पूरी दुनिया में दादा के रुप में उभर रहा था और तीसरी दुनिया के देश मुक्ति व स्वतंत्रता के सपने देख ही नहीं रहे थे बल्कि आश्चर्य जनक रुप से उसे साकार भी कर रहे थे। ऐसे समय में कला में अमूर्तन और वस्तुनिरपेक्षता जोर पकड़ रहा था। वैसे देखा जाए तो बीसवीं शताब्दी के शुरुआत से ही अमूर्तन का उभार होने लगा था। वाशिंगटन डी सी राजनीतिक व सामरिक ताकत के केन्द्र के रुप में उभर रहा था तो न्यूयार्क अर्थव्यवस्था और कला के केन्द्र के रुप में। वस्तुनिरपेक्षता या अमूर्तन ने शायद कलाकारों के वैयक्तिक स्वतंत्रता की उद्दाम आकांक्षा के परिणामस्वरुप अस्तित्व ग्रहण किया। देखते ही देखते कला का यह स्वरूप पूरी दुनिया के कलाकारों को अपने प्रभाव में लेने लगा।
हिन्दुस्तान में अमूर्तन में अनेक प्रसिद्ध कलाकारों ने काम किया। इस क्रम में समकालीन भारतीय कला के लब्धप्रतिष्ठित कलाकार यूसुफ के काम को देखना प्रासंगिक होगा | चित्रकार और छापा कलाकार के रुप में सर की ख्याति अंतर्राष्ट्रीय स्तर की है। ग्वालियर में 1952 में जन्में यूसुफ ने फाईन आर्ट व मूर्तिकला में ग्वालियर से डिप्लोमा करने के बाद कला जगत में उल्लेखनीय भागीदारी निभाई। भोपाल कला भवन से जुड़ने के बाद वे अनेक कलाकारों के लिए प्रेरणा बने। यूसुफ की एक खासियत यह है कि समकालीन भारतीय कला जगत के वे एक ऐसे पुरोधा हैं जो एक मुर्धन्य कलाकार , एक सुलझे हुए कला गुरु , एक अध्येता , एक विचारक , कला आलोचक , एक अच्छे आयोजक और कहें तो अपने आप में एक संस्था की तरह हैं। चाहे भोपाल के कला भवन का उनका कार्यकाल हो या बिहार म्यूजियम का कार्यकाल , कला जगत के लिए , स्वप्नदर्शी तरीके से उन्होंने उस अवसर का स्वर्णिम उपयोग किया वह भी तब जबकि पुरी व्यवस्था भ्रष्टाचार में आकंठ डुबी हुई है। हालांकि इसके लिए उन्हें काफी कुछ झेलना पड़ा है। प्रतिष्ठित कार्यशाला व प्रदर्शनी के आयोजन के साथ नवोदित कलाकारों के स्वतंत्र विकास के लिए प्रोत्साहित करना व निर्देशित करना उनके व्यक्तित्व की खासियत है |
विरोधाभास से भरे इस समय में हर एक व्यक्ति का व्यक्तित्व विरोधाभास का एक संयोजन है | सुलझा हुआ मस्तिष्क भी खासा उलझा हुआ होता है। विषय-वस्तु के निषेध से शुरु हुआ अमूर्तन आकारों के निषेध तक ही नहीं ठहरा , वह रंगों और रेखाओं के निषेध तक भी पहुँचा। बहरहाल यूसुफ ने रेखाओं के निश्छल प्रवाह में अपनी भावानुभूति को कलात्मक स्वतंत्रता तो जरुर दी लेकिन एक परिपक्व तंत्र के साथ। अमूर्तन में ढ़ेर सारे काम करने वाले कलाकारों के यहां एक अराजकता दिखाई देती है लेकिन यूसुफ के यहां किसी तरह की अराजकता नहीं दिखाई देगी। शायद यह सर के कलात्मक अनुशासन और अभ्यास जनित विनम्रता का परिचायक है। रेखाएं उनकी कला निर्मिति की मूल हैं। सीधी रेखाएं , टेढ़ी रेखाएं , वक्र रेखाएं , क्षैतिज रेखाएं , लंबवत रेखाएं , बलखाती रेखाएं , टूटती बिखरती रेखाएं , संभलती रेखाएं , गिरती रेखाएं , उठती रेखाएं मतलब विविध तरह की रेखाओं का अंतर्जाल उनके कलाकृतियों में दिखाई पड़ता है | उनकी कलाकृतियों की पृष्ठभूमि में रोलिंग कागज की तरह हल्के रंग की समानांतर क्षैतिज रेखाओं का एक पैटर्न दिखाई पड़ता है , उसके ऊपर नाना प्रकार की हल्की व गहरी रेखाएं एक अनजाने आकार का सृजन करती दिखती हैं | ये अनजाने आकार कभी जाने पहचाने जैसे लगते हैं तो कभी बिल्कुल अपरिचित ।
किसी विषय वस्तु की सादृश्यता से भिन्न ये कल्पनाशील आकृतियां पृष्ठभूमि से पृथक भी होती हैं और अंतर्सम्बंधित भी। सतह से आहिस्ता आहिस्ता उभरती हुई इन आकृतियों और पृष्ठभूमि के बीच में जो विविध लेयर ( परत ) बनते हैं, वह कमाल की दृश्यावली निर्मित करते हैं । ये परत दर परत विविध परत ( लेयर ) कलाकृति में मधुर संगीत सा लय समूह की रचना करते हैं। जिस तरह कोई संगीत लहरी सुमधुर श्रव्य अनुभूति उत्पन्न करती है उसी तरह रेखाओं का यह लयात्मक संयोजन नयनाभिराम दृश्यात्मक अनुभूति का सृजन करते हैं। यह सच है कि अमूर्त रचनाशीलता से उत्पन्न अनुभूति को शब्द रुप में व्यक्त करना बहुत कठिन है और बहुत संभव है वह ठीक ठीक व्यक्त न हो पाये | लेकिन चूंकि यह अस्तित्व में है , उसकी मौजूदगी है और महत्वपूर्ण रुप में है तो उसे छोड़ा भी नहीं जा सकता |
चित्रकला के साथ भारतीय छापा कला को समृद्ध करने में यूसुफ सर की सृजनशीलता का उल्लेखनीय योगदान है। तकनीकी रुप से एक पिछड़े हुए देश में वैश्विक स्तर के काम करना कम चुनौतीपूर्ण नहीं है | अगर आज छापा कला की अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में भारतीय छापाकला वैश्विक छापाकला के समकक्ष खड़ी होती है तो इसमें यूसुफ जैसे कल्पनाशील कलाकारों की महत्वपूर्ण भूमिका है। चाहे चित्रकला हो या छापा कला , कल्पनाशीलता को स्वतंत्र विस्तार देना व उपलब्ध तकनीक का प्रयोगधर्मी इस्तेमाल करना यूसुफ की खास विशेषता है |
यूसुफ कल्पनाशीलता के साथ तकनीक के सीमाओं का भी अद्भुत विस्तार करते हैं वह भी बगैर किसी जोर जबरदस्ती के। बगैर किसी बलात तोड़-फोड़ के। एकदम अहिंसक एकदम विनम्र तरीके से। हालांकि मैं नहीं जानता यूसुफ पर , गांधी और बुद्ध का क्या प्रभाव है और इनके जीवन दर्शन का उनकी रचना से कोई सम्बंध है भी या नहीं | यह भी हो सकता है यह मेरी कल्पना हो , लेकिन उनकी कलाकृतियों को देखते हुए ऐसा लगता है कि जिस तरह से गांधीवादी धारा ने अहिंसक तरीके से राजनीति के क्षेत्र को मानवीय विस्तार दिया , जिस तरह से बुद्ध के दर्शन ने आध्यात्मिक क्षेत्र को विनम्रता से विस्तृत किया। शायद उसी तरह से यूसुफ की निश्छल रचनाशीलता ने कला को एक आवश्यक विस्तार दिया।
यूसुफ ने मूर्तिकला में भी कुछ महत्वपूर्ण काम किया है। सिलाई मशीन के साथ मानवीय मुखाकृति का कल्पनाशील इस्तेमाल कर उन्होंने जिन शिल्पाकृतियों की रचना की है , वह वाकई महत्वपूर्ण है। इन शिल्पाकृतियों में भी वही चिर परिचित क्षैतिज रेखाएं जैसे ये रेखाएं यूसुफ के सुंदर हस्ताक्षर हों। इस श्रृंखला की एक मूर्तिशिल्प में तो पंख का इस्तेमाल ऐसा एहसास करता है जैसे उन्होंने अपनी रचनाशीलता को पंख लगा दिया हो। यूसुफ सर अपनी कलाकृतियों को शीर्षक देने से बचते हैं। शायद इसलिए कि प्रेक्षक बगैर किसी पूर्व धारणा व पूर्वाग्रह के कलाकृतियों के कलात्मक उत्स का आनंद ले सके।
रेखाएं व रंग कला के मूल तत्व हैं। यूसुफ के काम में रेखाएं प्रमुख भुमिका निभाती हैं। उनकी कलाकृतियों में रंग बहुत सावधानी से आते हैं। इतनी सावधानी से कि रेखाएं जरा भी डिस्टर्व न हो बल्कि रंगों के आने से रेखाएं और भी लय में आ जाती हैं। जैसे सहकर्मी आते हैं औपचारिक तौर पर एक मुस्कान उछालते हैं , हैलो हाय करते हुए अपने आरक्षित स्थान पर बैठते हैं और अपने अपने काम में निमग्न हो जाते हैं | ये रेखाएं उनके चित्रण में तो प्रमुखता के साथ रचना प्रक्रिया का नेतृत्व करती ही हैं , छापा कला और मूर्तिकला में भी वह महत्वाकांक्षी भूमिका निभाती हैं।
समकालीन कला के परिप्रेक्ष्य में यूसुफ की रचनाएं एक जरुरी तत्व की तरह हैं। उनकी रचनात्मक उपस्थिति समकालीन कला जगत में मौजूद उद्दाम स्वतंत्रता की महत्वकांक्षा का प्रतिनिधित्व करती है | क्षेत्रीयतावाद , जातिवाद , सांप्रदायिकता , अंधराष्ट्रवाद की संकीर्ण गलियारों से पार वैयक्तिक स्वतंत्रता की स्वप्नदर्शी महत्वाकांक्षा से जन्मी अमूर्त कला के , सुव्यवस्थित और विनम्र कलाकार के रुप में स्थापित यूसुफ हमारे समय के एक मूर्धन्य कलाकार हैं जिनकी निरंतर गतिमान रचनाशीलता नये कलाकारों के लिए प्रेरणा स्रोत की तरह है।