समकालीन जनमत
चित्रकला

समकालीन कला का विस्तार और उमेश सिंह की कलाकृतियां

नई पीढ़ी के कलाकारों में उमेश सिंह एक महत्वपूर्ण प्रयोगधर्मी रचनाकार के रुप में उभर कर सामने आए हैं | नई पीढ़ी के कलाकारों की खासियत है कि वे मल्टी टैलेंटेड होते हैं | नये माध्यम उनके पसंदीदा माध्यम होते हैं | एक जमाने में मिक्स मिडिया का चलन था। यह नये माध्यम का जमाना है जहाँ पेंटिग , मूर्ति , और प्रिंट के साथ ही फोटोग्राफी , कम्प्यूटर कला , विडियो कला, काइनेटिक कला ,  इंस्टॉलेशन , परफामेंस आदि बीसियों  माध्यम हैं यानि वो हर संभव तरीका है जिसकी जरुरत हो सकती है। यहां आस पास उपलब्ध कोई भी वस्तु , कोई भी क्रिया कलाप , कला का माध्यम हो सकता है। वे सबका प्रयोग नये-नये तरह से करते हुए एक आश्चर्यलोक रचते हैं | इस तरह आश्चर्यलोक रचने के क्रम में जब कोई अर्थपूर्ण और प्रासंगिक दृश्य उपस्थित होता है तो वह दर्शकों को देर तक याद रहता है |

                     एक तरह से कहा जाए तो अब कलाकारों के सामने रचने को विविध तरह के माध्यम हैं जिसका प्रयोग वे रचनात्मक तरीके से कर रहे हैं | किसी भी कला आयोजन में चले जाइए वहां नए माध्यम की दमदार और उल्लेखनीए उपस्थित अवश्य दिखाई देगी | इन नए माध्यमों ने कलाकारों को विशाल वातावरण उपलब्ध कराया है जिसके सार्थक इस्तेमाल से वे कला का अतुलनीय विस्तार कर रहे हैं | अब प्रदर्शनी के लिए खास तरह की बनी हुई कला दीर्घा की जरुरत लगभग नहीं है | कहीं भी और कभी भी उपलब्ध संसाधन से मनोवांछित दृश्य की रचना हो सकती है | उमेश सिंह इन नये मध्यमों के महत्वपूर्ण कलाकार इस मायने में हैं कि उन्होंने इनका इस्तेमाल किसानों और मजदूरों के संघर्ष और उनकी आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करने के लिए किया है |

 

रचनाशीलता की धरातल पर भी और विषय वस्तु के धरातल पर भी उमेश सिंह एक ऐसे कलाकार हैं जिन पर बात की ही जानी चाहिए | वह इसलिए क्योंकि जब देश के किसान और मजदूर सर्वाधिक संकट ग्रस्त हैं और संघर्षरत हैं तो कला को उनके साथ होना ही चाहिए | उमेश की गहरी संवेदना किसानों के साथ है | 11 जून 1992 में जन्में उमेश सिंह दरअसल किसान परिवार में पले बढे़ एक कलाकार हैं | उनके पिता श्रीराम सिंह एक किसान थे जो अब किसानी छोड़ कर गार्ड का काम कर रहे हैं और माता निर्मला देवी जी गृहिणी हैं | उमेश सिंह बिहार राज्य के भोजपुर जिले के कुरमूरी गांव के रहने वाले हैं | यह गांव बहुत पहले से ही तीखे राजनीतिक सामाजिक संघर्ष का केन्द्र रहा है | उनकी उच्चतर शिक्षा भोजपुर के मुख्यालय आरा में हुई तथा कलात्मक शिक्षा वाराणसी और हैदराबाद में हुई।

 उन्होंने 2017 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से पेंटिग में स्नातक और 2019 में हैदराबाद विश्वविद्यालय से प्रिंट मेकींग में स्नातकोत्तर की शिक्षा हासिल की | बचपन से ही उनके अन्दर कलात्मक अभिरुचि मौजूद थी जो उम्र के साथ बढ़ती गई | जब वे उच्चतर शिक्षा हासिल करने के लिए आरा आए तब उन्हें पता चला कि कला की विधिवत पढाई भी होती है | फिर उन्होंने इसके लिए प्रयास शुरु किया | यह कलाकार ही जानते हैं कि यहां किसी अच्छे कला महाविद्यालय में दाखिला पाना कितना कठिन काम है | निरंतर अभ्यास व कठिन परिश्रम से उन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दृश्य कला संकाय में दाखिला मिला | उसके बाद उमेश के कलात्मक संघर्ष का सफर शुरु हुआ जो हैदराबाद विश्वविद्यालय से होते हुए कला जगत की मुख्य धारा तक पहुँचा |

उमेश बताते हैं कि बी एच यू में पढ़ते हुए एक अकादमिक जकड़बंदी महसूस होती थी | हैदराबाद विश्वविद्यालय ने रचना के लिए विराट आसमान उपलब्ध कराया | हैदराबाद विश्वविद्यालय के स्वतंत्र वातावरण में उनकी रचनात्मक प्रतिभा को एक ऊंचाई मिली | उमेश कहते हैं कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के कला संकाय के गुरु जन प्रतिभाओं को अपने हुनर को विस्तार देने की पूरी स्वतंत्रता देते हैं | वहां का स्वतंत्र कलात्मक वातावरण मेरे कलात्मक विकास में सबसे बड़ा सहयोगी रहा है |

         उमेश सिंह ने एक तरह से अभी कला जगत में कदम ही रखा है लेकिन इतने कम समय में ही उन्होंने अपनी बेहतरीन रचनाशीलता प्रस्तुत की है | इस थोड़े से समय में ही उनकी रचनात्मक उपस्थिति केन्द्रीय ललित कला अकादमी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी से लेकर कोच्ची विनालय की छात्र शखा तक हुई है  | वहां अपनी कलाकृतियों के लिए उन्हे अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत भी किया गया | जिसके फलस्वरूप वे वेनिस विनालय देखने के लिए गये | यह किसी भी कलाकार के लिए बड़ी उपलब्धि है | इसके अलावे अनेक प्रतिष्ठित आयोजन में उनके काम को सराहा व पुरस्कृत किया गया है | खास जगह अधारित संस्थापन , पब्लिक आर्ट , लैन्ड आर्ट , परफ़ार्मेंस आदि माध्यम उनका खास पसंदीदा माध्यम है |

उमेश की रचना के लिए किसी खास जगह की जरुरत नहीं होती वे कहीं भी किसी भी जगह को धरातल और उपलब्ध वस्तुओं को माध्यम बना लेते हैं | अपने गांव में ही वे खेती से जुड़ी हुई वस्तुओं , औजारों और आसपास के लोग तक को माध्यम बना कर एक कल्‍पनाशील दृश्य रच देते हैं| उन दृश्यों के छाया चित्र देखते हुए आप उनकी कल्पनाशीलता और रचनाशीलता को एक हद तक महसूस कर सकते हैं |

उनके कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं के छायाचित्रों में 2019 में रचित ” Where is god ” परफ़ार्मेंस के छाया चित्र को देखा जा सकता है | एक और परफार्मेंश ” Jab & Muzzle ”  के छाया चित्रों को देखना भी सारगर्भित होगा | इसमें उन्होंने आसपास के लोगों का सहयोग भी लिया है | आखिर देश की आर्थिक नीतियां किसानों और मजदूरों के मुंह पर जबरदस्ती पहनाए गए जाब की तरह ही तो है | इस तरह के अनेक संस्थापन , परफार्मेंश और पब्लिक आर्ट के माध्यम से उमेश रचनाशीलता को रोजमर्रे से जोड़ते हैं | इसके अतिरिक्त उनके प्रिंट और ड्रॉइंग भी हमारा ध्यान खींचते हैं |

                हाल के दिनों में उन्होंने किसान संघर्ष को केंद्रित कर बड़े ध्यानाकर्षक ड्रॉइंग बनाए हैं | चारकोल से बने ये चित्र किसानों के संघर्ष को भी अभिव्यक्त करते हैं और उनकी आकांक्षा को भी अभिव्यंजित करते हैं | इन चित्रों के रेखाओं में एक आवेग व बेचैनी दिखाई पड़ती है | कोरोनो काल के दौरान जब लॉक डाउन लगा तब उमेश सिंह भी वाराणसी में फंस गए थे | उस पुरी यंत्रणा को उन्होंने ड्रॉइंग के माध्यम से प्रभावशाली तरीके से  अभिव्यक्त किया था। उसमें अपने तकलीफ और मुश्किलों के साथ मजदूरों, छात्रों और हजारों बेबसों के दर्द को उन्होंने अपने चित्रों से अभिव्यक्त किया था।

 

 

उमेश एक बहुत संवेदनशील और चेतना सम्पन्न कलाकार हैं। वैचारिक और कलात्मक दोनों धरातल पर उमेश की रचनाशीलता आज के समय में महत्वपूर्ण है। साधारण से दिखने वाले दृश्य को कलात्मक बना देना और उसके माध्यम से अपनी बात कह देना उमेश की अपनी खासियत है। उमेश कोशिश करते हैं कि ऐसे माध्यम का उपयोग किया जाए जो आसानी से उपलब्ध हो और नष्ट होने के बाद आसानी से प्रकृति में मिल जाए। प्रकृति से भी उनका उत्कट लगाव है। इस लगाव को हम उनकी रचना में भी देख सकते हैं |

           नये माध्यम में उमेश प्रमुखतः संस्थापन और परफ़ार्मेंस का इस्तेमाल करते हैं | यहाँ वे नायाब तरीके का प्रयोग करते हैं | एक तरह से देखा जाए तो उमेश अपने प्रदर्शन या प्रदर्शनी के लिए किसी कला दीर्घा या आर्ट सेन्टर या कार्यशाला के मोहताज नहीं रहते | वे कहीं भी इसका प्रदर्शन व प्रदर्शनी कर देते हैं इस तरह उमेश सिंह कला का विस्तार तो करते ही हैं कलात्मक वातावरण को भी विस्तार देते हैं और यह वे समूह में तो करते ही हैं अकेले भी करते हैं | कला में यह एक साहसिक और सराहनीय कदम है |

उमेश की कलाकृतियों में उत्पीड़ित तबके की  दारुण व संकटपूर्ण परिस्थितियों के प्रदर्शन के साथ इन परिस्थिति के बदलाव की गहरी आकांक्षा दिखती है | उमेश की कलाकृतियों में मानवतावाद , जनपक्ष के प्रगतिशील तत्व के साथ सृजनशीलता के उत्कृष्ट तत्व का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है | उमेश सिंह जैसे नये कलाकारों की रचनाशीलता व प्रयोगधर्मिता , समकालीन भारतीय कला के प्रगतिशील विस्तार की तरह है जो इसे समृद्धि प्रदान करेगी |

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