नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन का केंद्र भले ही पूर्वोत्तर और देश भर के विश्वविद्यालयों में हो, लेकिन इस आंदोलन पर दमन और सरकार संरक्षित पुलिसिया अत्याचार का केंद्र तो फिलहाल उत्तर प्रदेश है। नेटबन्दी और सुरक्षा बलों के आतंक के चलते जिस तरह कश्मीर के आवाम पर पिछले पांच महीनों से चल रहा सरकारी दमन सामने नहीं पा रहा ठीक उसी तरह पिछली 19 दिसम्बर के बाद से उत्तर प्रदेश में पुलिस के सफेद आतंक की खबरें बाहर कम आ रही हैं।
उत्तर प्रदेश में पूर्वोत्तर राज्यों के बाद सबसे अधिक लगभग 15 मौतें इस आंदोलन के दौरान हुई हैं। कानपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, ल खनऊ, बनारस जैसी जगहों पर पुलिस अत्याचार के दिल दहला देने वाले मंजर सामने आए हैं, जहां पुलिस द्वारा जानबूझ कर तोड़ फोड़ को अंजाम दिया गया। इस आंदोलन और शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के दौरान पुलिस और राज्य मशीनरी का खूंखार साम्प्रदायिक चेहरा एक बार फिर खुल कर सामने आया है।
इस आंदोलन के दौरान प्रगतिशील लोकतांत्रिक बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जान बूझ कर निशाना बनाया गया और उन्हें फर्जी मुकदमो में फंसा कर जेल में डाल दिया गया है।
रिहाई मंच के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता मो. शोएब, पूर्व आईपीएस और दलित अधिकारों पर सक्रिय रहने वाले एस.आर. दारापुरी, दोनों ही लोगों की उम्र 70 पार है, को पुलिस उनके घर से बुला कर ले गई और उन्हें बवाल का आरोपी बना कर जेल में डाल दिया और उनपर संगीन धाराएं लगा दी गईं।

इसी तरह बनारस में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे 49 लोगों को जेल में डाल कर उनपर 7 क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट और अन्य संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है।इनमें दो महिलाएं भी हैं जिनमें एकता शेखर नामक पर्यवारण संरक्षण के लिए कार्य करने वाली कार्यकर्ता, उनके पति रवि शेखर को भी गिरफ्तार किया गया है।जबकि उनका एक वर्षीय बच्चा भी है,जो इस भीषण सर्दी में अपने माता पिता से अलग रहने को मजबूर है। बनारस के प्रमुख राजनैतिक कार्यकर्ता एवं भाकपा माले की केन्द्रीय कमेटी के सदस्य मनीष शर्मा की भी गिरफ्तारी हुई है ।
ऐसा साफ लग रहा है कि सीएए- एनआरसी के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में शामिल राजनैतिक कार्यकर्ताओं, सरकार की आलोचना करने वाले बुद्धिजीवियों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की बवाल के बहाने दमन करने की योजना सरकार की है। दूसरी ओर अल्पसंख्यक समुदाय का उत्पीड़न कर सरकार स्वयं ही साम्प्रदायिक उन्माद पैदा करना चाहती है।
इस तरह राष्ट्रीय स्तर पर मंदी, बेरोजगारी व चौतरफा संकट से देश का ध्यान बंटाने के लिए केंद्र सरकार ने CAA-NRC का शिगूफा छोड़ा है वैसे ही उत्तर प्रदेश में ध्वस्त हो चुकी कानून व्यवस्था, हत्या-बलात्कार की घटनाओं, बेरोजगारी व गिरती शिक्षा व्यवस्था को संभाल पाने में अक्षम योगी सरकार आंदोलनकारियों का दमन व धार्मिक उन्माद पैदा कर प्रदेश के लोगों का ध्यान बंटाने में लगी है।
देश में लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे आंदोलनकारी साथियों को उत्तर प्रदेश में हो रहे दमन की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, और मो. शोएब, एस. आर. दारापुरी समेत सभी बेकसूर लोगों की रिहाई की मांग करनी होगी !