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भारत में कोरोना टेस्टिंग कम क्यों हो रही है

कोविड-19 महामारी की मार से अमेरिका, इटली, स्पेन और चीन जैसी महाशक्तियां पस्त हैं। भारत में भी ये तेजी से फैल रहा है बावजूद उसके भारत में बहुत कम टेस्ट हो रहे हैं। इसकी एक सबसे बड़ी वजह देश में कोविड-19 जाँच-किट की कमी है हालांकि सरकार का दावा है उसके पास पर्याप्त किट हैं.

भारत अब दूसरे टेस्टिंग विकल्पों को आजमाने में लग गया है। परीक्षण रणनीति पर उच्च-स्तरीय समिति अब इस बात पर विचार कर रही है कि क्या कोविड  -19 के लिए सकारात्मक परीक्षण करने वाले लोगों के संपर्क में आने वाले लोगों पर सेरोलॉजी परीक्षण किया जाना चाहिए।

इसी कड़ी में आईसीएमआर ने 10 लाख एंटीबॉडी किट के लिए बुधवार 25 मार्च को बोलियां आमंत्रित कीं।

कोविड-19 के व्यापक पैमाने पर टेस्टिंग के लिए इंडियन कौंसिल आफ मेडिकल रिसर्च ( आईसीएमआर) ने 10 लाख एंटीबॉडी किट्स (सेरोलॉजिकल टेस्ट) की आपूर्ति के लिए प्राइस कोट माँगा है। इसके अलावा 7 लाख RNA इक्सट्रैक्शन किट खरीदने के बारे में सोच रहा जोकि फिलहाल देश में कोविड-19 की टेस्टिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। कोरिया से कुछ किट पहले से ही नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी-पुणे के मूल्यांकन और सत्यापन के लिए भेजे गए हैं।

क्या है सीरोलॉजिकल (एंटीबॉडी) टेस्ट

सीरोलॉजिकल टेस्ट के नाम से जाने जाने वाले एंटीबॉडी टेस्ट वर्तमान समय में हो रही कोविंड-19 डायग्नोस्टिक टेस्ट से बिल्कुल अलग है। बता दें कि अभी कोविड-19 टेस्ट में नेजल एस्पिरेट, ट्रेशल एस्पिरेट और स्वाब टेस्ट के जरिए एक्टिव संक्रमण के बारे में पता लगाया जाता है। जबकि सीरोलॉजिकल (एंटीबॉडी) टेस्ट में ये पीड़ित व्यक्ति के खून में मौजूद एंटीबॉडी के जरिए ये पता लगाया जाएगा कि उस व्यक्ति पहले को पहले वायरल संक्रमण था या नहीं। यह कोविड-19 को कन्फर्म करने वाला टेस्ट नहीं है।

जाँच के एक अन्य ढंग सीरोलॉजिकल टेस्ट का भी प्रयोग कर रहे हैं। इस जाँच में सार्स-सीओवी 2 विषाणु के खिलाफ़ शरीर के भीतर बनी एंटीबॉडी नामक प्रोटीनों की जाँच की जाती है। एंटीबॉडी एक प्रकार की रक्षक प्रोटीनें होती हैं , जिनका निर्माण हमारा शरीर अलग-अलग बाहरी शत्रुओं ( जीवाणु , विषाणु , फफूँद ) अथवा भीतरी शत्रु  के खिलाफ़ करता है।

किसी भी संक्रमण के होने के तुरन्त बाद एंटीबॉडी तुरन्त नहीं बनतीं , उनके बनने में थोड़ा समय लगता है। इसका अर्थ यह है कि संक्रमण करने वाले विषाणु के शरीर में भीतर दाखिल होने और एंटीबॉडी बनने के बीच का जो समय है , उसमें सीरोलॉजिकल टेस्ट नेगेटिव आएगा। ऐसे में कोविड 19 को इस दौरान पकड़ा न जा सकेगा।

एंटीबॉडी इस विषाणु के लिए एकदम विशिष्ट हों , ऐसा भी हमेशा नहीं होता। कई बार निर्मित एंटीबॉडी दो विषाणुओं के खिलाफ़ अन्तर नहीं कर पातीं। ऐसे में सीरोलॉजिकल टेस्ट के के पॉज़िटिव आने पर यह भी हो सकता है कि यह एंटीबॉडी सार्स-सीओवी 2 विषाणु के खिलाफ़ न हो , किसी अन्य पुराने विषाणु-संक्रमण के खिलाफ़ बनी हो। इस तरह से पॉज़िटिव आये सीरोलॉजिकल टेस्ट को डॉक्टर फ़ाल्स यानी झूठा पॉज़िटिव कहते हैं। यानी ऐसे लोगों का टेस्ट तो पॉज़िटिव आ रहा होता है , पर उन्हें कोविड-19 नहीं होता।

इसके बावजूद दुनिया-भर की ढेरों निजी कम्पनियाँ और देश इन सीरोलॉजिकल टेस्टों को प्रमोट करने में लगे हुए हैं। जबकि सीरोलॉजिकल टेस्ट आरटी-पीसीआर टेस्ट की तुलना में कहीं से भी विश्वसनीय नहीं हैं।

आईसीएमआर द्वारा कोविड -19 के लिए परीक्षण रणनीति की समीक्षा के लिए गठित उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष रणदीप गुलेरिया ने कहा- “इस बात की पुष्टि करने के लिए कोरोनोवायरस के लिए एंटीबॉडी परीक्षण शुरू करने के लिए तैयार हैं कि क्या कोई व्यक्ति पहले वायरस से संक्रमित हो गया था, यह एक ऐसा कदम जो देश में कोविड -19 की महामारी विज्ञान को समझने में मदद करेगा।

सीरोलॉजिकल परीक्षण डॉक्टरों को यह निर्धारित करने की अनुमति देगा कि क्या किसी व्यक्ति को पहले वायरल संक्रमण हुआ है। यह कोविड -19 के कन्फर्मेंशन का टेस्ट नहीं है। सीरोलॉजिकल टेस्ट दरअसल डेटा तैयार करने और यह समझने के लिए है कि कम्युनिटी के लोग वायरस के संपर्क में आए हैं या नहीं।”

हालांकि आईसीएमआर द्वारा रैंडम सैंपल पर किए गए परीक्षण यही कहते हैं हैं कि भारत में अभी तक कोविड-19 बीमारी का सामुदायिक प्रसरण (कम्युनिटी ट्रांसमिशन) नहीं है, विशेषज्ञों के कहना है कि सीरोलॉजिकल परीक्षण आगे शोधकर्ताओं को संक्रमित लोगों का पता लगाने और पहचानने तथा बेहतर तरीके से समझने की अनुमति देगा कि वायरस कैसा व्यवहार करता है।

एंटीबॉडी टेस्ट शुरुआती वायरल संक्रमणों को नहीं बता सकता है, लेकिन वे बता सकते हैं कि क्या किसी को कभी कोई विशेष वायरस था – शायद तब भी जब वे लक्षण दिखाई न दिए थे।

एक विषेषज्ञ का कहना है कि- “यह हमें एक अधिक जनसंख्या में संक्रमित को ट्रेस करने में मदद करेगा, साथ ही हल्के संक्रमण के शिकार हुए और रिकवर हुए जनसंख्या का पता लगाने, तथा संक्रमण के पैटर्न को समझने में मदद करेगी।” कम्युनिटी में कोविड -19 के विशिष्ट जांच के लिए इसका इस्तेमाल मास स्केल पर और बहुत ही रियायती दाम पर किया जा सकता है।

आईसीएमआर ने जारी किया टेस्टिंग किट गाइडलाइन्स

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने शुक्रवार 27 मार्च को रैपिड टेस्टिंग किट के लिए एक गाईडलाइन्स जारी किया, जो खून, सीरम या प्लाज्मा पर आधारित हैं, और 30 मिनट में नोवल कोरोनवायरस, या SARS-CoV2 के संपर्क में आने का परिणाम बता सकता है।

सरकार की नोडल जैव-अनुसंधान एजेंसी ने कहा -“पोजीटेव टेस्ट SARS-CoV-2 के संपर्क का संकेत देता है जबकि नेगेटिव टेस्ट COVID -19 संक्रमण से पूरी तरह खारिज नहीं करता है।”

आईसीएमआर का कहना है कि COVID-19 संक्रमण के निदान के लिए इस टेस्ट की सिफारिश नहीं की गई है,बल्कि केवल यह पता लगाने के लिए है कि रोगी वायरस के संपर्क में आया है या नहीं।

जैव-अनुसंधान निकाय ने जो 12 अनुमोदित रैपिड टेस्ट किट सूचीबद्ध किए हैं, उनमें 11 यूरोपीय नियामक से अप्रूव्ड हैं।
आम तौर पर रियल-टाइम पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन की तुलना में रैपिड टेस्टिंग किट को कम विश्वसनीय माना जाता है लेकिन सकारात्मक मामलों के लिए त्वरित परिणाम देने में मदद करता है। दोनों ही टेस्ट आमतौर पर संक्रमण के 7-10 दिनों के बाद पोजीटिव रिजल्ट देते हैं।

28 फरवरी 2020 की आईसीएमआर की अपडेट के अनुसार देश में अप्रूव्ड 122 सरकारी लैब काम कर रहे हैं जोकि COVID-19 संक्रमित सैंपल का टेस्ट कर रहे हैं। एक सप्ताह पहले तक ये संख्या सिर्फ़ 89 थी।

इसके अलावा 47 प्राइवेट लैब भी कोविड-19 टेस्ट कर रहे हैं जोकि ICMR से अप्रूव्ड हैं।

उत्तर प्रदेश राज्य की कुल आबादी 23 करोड़ 20 लाख है। शुरुआत में  उत्तर प्रदेश में 4 लैब कार्यरत थे जो  25 मार्च तक 8 हो गए. इसमें तीन लखनऊ में कार्यरत हैं। एक निजी  निजी लैब को भी जांच के लिए अधिकृत किया गया है।

भारतीय चिकित्सा और अनुसंधान परिषद (ICMR) के मुताबिक कोविड-19 संक्रमण की जाच के लिए कार्यरत तमाम सरकारी लैब में ले अधिकांश लैब की क्षमता प्रतिदिन 90 सैंपल टेस्ट करने की है। कुछ (10 प्रतिशत) की क्षमता प्रतिदिन 50-60 सैंपल टेस्ट करने की है।

जबकि दो लैब (एक एनसीआर और दूसरा भुवनेश्वर स्थित है) की क्षमता 1400 सैंपल प्रतिदिन टेस्ट करने की है। ICMR के मुताबिक कोविड-19 का पहला टेस्ट करने में 1500 का खर्चा आता है जबकि दूसरा यानि कन्फर्मेशन टेस्ट करने में कुल मिलाकतर 3000 का खर्चा आता है। इस तरह सरकार लगभग 6000-6500 से रुपए का खर्च वहन करती है।

निजी लैब में टेस्ट का खर्च 4500 रुपए

ICMR ने निजी टेस्टिंग लैब को दिशा-निर्देश जारी करते हुए निजी लैब में सैंपल टेस्ट का खर्च 4500 रुपए निर्धारित किया है। संदिग्ध मरीजों की स्क्रीनिंग के लिए 1500 और कन्फर्मेशन टेस्ट के लिए 3000 रुपए निर्धारित किया गया है। इसके निजी लैबों से मुफ्त या अनुदान पर टेस्ट करने के लिए भी आग्रह किया है। बता दें कि COVID-19 परीक्षण के लिए अनुमोदित 100 से अधिक सरकारी प्रयोगशालाओं के अलावा, स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में देश भर में 17,000 से अधिक कलेक्शन सेंटर के साथ 30 से अधिक निजी प्रयोगशालाओं को मान्यता दी है। साथ ही ICMR ने तय राशि 4500 से ज्यादा लेने वाले लैब मालिकों के खिलाफ़ सख्त कार्रवाई की जाएगी। जबकि देश भर में इस समय 47 निजी लैब को COVID-19 संक्रमण जांच के लिए ICMR की अप्रूवल और अनुमति दी गई है।

कोविड-19 टेस्टिंग किट खरीदने के लिए किट निर्माताओं से माँग गया प्राइस कोट
आईसीएमआर के ने 25 मार्च को 7 लाख RNA इक्सट्रैक्शन किट खरीदने के लिए बोलियां आमंत्रित किया। भारतीय चिकित्सा और अनुसंधान परिषद (ICMR) ने किट निर्माताओं को अपनी कीमतें उद्धृत करने के लिए आमंत्रित किया है। साथ ही उन्हें COVID-19 परीक्षण किटों के लिए उपलब्ध आपूर्ति समयसीमा और क्षमता के बारे में भी पूछा है जो ICMR या USFDA और EUA जैसे अंतर्राष्ट्रीय अधिकारियों द्वारा अनुमोदित हैं। साथ ही इस बात को जोड़ा गया है कि सैंपल 26 मार्च को आईसीएमआर तक पहुंचने चाहिए। परीक्षण किटों के लिए आपूर्ति स्थान डिब्रूगढ़, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, भोपाल और दिल्ली हैं। आईसीएमआर का जोर है कि आपूर्ति जल्द से जल्द सुनिश्चित की जाए।

आईसीएमआर ने यह भी संकेत दिया है कि यह समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए एक से अधिक विक्रेताओं के समानांतर अनुबंधों के लिए जा सकता है।

27 की शाम 4 बजे कोरोनावायरस पर प्रेस ब्रीफिंग में ICMR के एपीडिमियओलॉजी और कम्युनिकेबल डिसीज के हेड रमन आर गंगाखेडकर ने कहा है कि नेशनल ‘इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पुणे’ इंडीजिनस डायग्नोस्टिक्स पर काम कर रहा है। उन्होंने आगे कहा कि भारत डेंगू, चिकेनगुनिया और मलेरिया के लिए डायग्नोस्टिक किट की विश्व भर में सप्लाई करने वाला अग्रणी देश रहा है। हमारा पूरा प्रयास नोवल कोरोनावायरस के लिए बिल्कुल वैसा ही किट जल्द से जल्द तैयार करके देने पर है।  उन्होंने कहा कि हमारा सारा फोकस कोविड-19 -फास्ट टेस्टिंग किट बनाने पर है ताकि संदेहास्पद केसों को तेजी से ट्रैक किया जा सके।

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