कृपया ध्यान दें, ‘देश के मरम्मत का कार्य चल रहा है, अतः लोकतंत्र का मार्ग बाधित है ’ या फिर ‘सावधान, ख़तरनाक, ख़तरा, पुलिस और सरकार से बचके रहिए’ या फिर ‘सरकार का विरोध सेहत के लिए ख़तरनाक हो सकता है’ जैसी चेतावनी गली कूचों, सड़कों, तिराहों, चौराहों और सरकारी अर्द्ध-सरकारी इमारतों पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखवा देना चाहिए। बता दें कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा सीएए-एनआरसी का विरोध करने वालों से बदला लेने और विरोध प्रदर्शन के दौरान सरकारी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई करने के आदेश के बाद यूपी पुलिस द्वारा प्रदेश के मुस्लिम समुदाय पर कहर बनकर टूटने के खिलाफ़ दिल्ली स्थित उत्तर प्रदेश भवन में 27 दिसंबर को बुलाए गए ‘यूपी भवन घेराव’ को जैसे दिल्ली पुलिस ने अपने नाक का सवाल बना लिया था।
‘ यूपी भवन घेराव’ को नाकाम करने के लिए दिल्ली पुलिस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। दिल्ली पुलिस की टुकड़ियां यूपी भवन को आने वाले हर रास्ते पर आधा किलोमीटर दूर से ही धर-पकड़ में लग गई। नतीजा ये हुआ कि यूपी भवन तक गिनती के लोग ही पहुंच सके वो भी अकेले-दुकेले और बिना पोस्टर बैनर के। इसके अलावा नजदीकी ‘लोक कल्याण मार्ग’ मेट्रो स्टेशन को सुबह से ही बंद करके रखा गया था।
दिल्ली पुलिस की नाकेबंदी
उत्तर प्रदेश भवन के गेट के ठीक समाने वॉटर कैनन वैन खड़ी थी। वॉटर कैनन वैन समेत पूरा यूपी भवन बैरीकेड्स से रूँधा हुआ था उसके आगे भारी मात्रा में कतार बद्ध होकर दिल्ली पुलिस और अर्द्धसैनिक बल खड़े थे।
कर्नाटक भवन से लेकर असम भवन के सामने की जगह दिल्ली पुलिस के जवानों से भरी हुई थी। जबकि पुलिस की दूसरी कतार यूपी भवन के सामने सड़क किनारे खड़ी होकर प्रोटेस्टर की हंटिंग के लिए तैयार खड़ी थी। सड़क की दूसरी तरफ भी अगर कोई पैदल दिख जाता था तो पुलिस की टीम दौड़कर उसे हिरासत में ले लेती थी। ऐसे ही एक व्यक्ति को पुलिस ने पकड़ा तो वो पहचान पत्र दिखाते हुए दिल्ली पुलिस के सामने गिड़गिड़ाया के मैं तो ऐसे ही रास्ते से गुज़र रहा था, मैं एक सामान्य राहगीर हूँ और मेरा इस प्रोटेस्ट कोई लेना-देना नहीं लेकिन दिल्ली पुलिस भी कहाँ मानने वाली उसे डिटेन कर लिया। ऐसे ही दो मीडिया पर्सन को भी पुलिस ने आंदोलनकारी समझकर घेर लिया और पकड़ कर पुलिस वैन तक ले गए। जबकि वो दोनो अपनी मीडियाकर्मी होने की दुहाई देते रहे।
दरअसल खाकी वर्दीधारी पुलिस वालों के अलावा यूपी भवन पर जो भी गैर-वर्दीधरी थे वो सब मीडियाकर्मी ही थे। जिनकी संख्या भी सौ के करीब थी।
वहीं कई पुलिस वैन सड़कों पर दौड़ रही थी और कहीं भी कोई प्रोटेस्टर दिखता तो दौड़ाकर पकड़ते और पुलिस वैन में बैठा लेते। बमुश्किल 50 लोग ही उत्तर प्रदेश भवन के सामने पहुँच पाए। जबकि दिल्ली पुलिस ने यूपी भवन के आधा किलोमीटर दूर के क्षेत्र से ही करीब 300 लोगों को हिरासत में लिया था। इस तरह कुल साढ़े तीन सौ लोगों को विरोध करने के आरोप में हिरासत में लेकर मंदिर मार्ग थाना और सी पी थाना में रखा गया था। और फिर रात में करीब 8 बजे सबको वहीं से छोड़ दिया गया।
मीडियाकर्मियों के हाथ आई निराशा
यूपी भवन में मौजूद 100 से अधिक मीडियाकर्मियों के हाथ निराशा लगी। इक्का दुक्का विरोध करने वाले लोग आते या दूर से ही आते दिखते और पुलिस दौड़कर उन्हें चारो ओर से घेर लेती और बिना एक भी सेकंड की देरी किए पहले से तैयार खडी पुलिस वैन में बिठाकर रवाना कर देते। फिर जैसे ही कोई दिखता पुलिस वालों के पीछे पीछे मीडिया वाले भी अपना कैमरा और माइक लेकर भागते। इसी तरह वो उन गिनती के प्रोटेस्टर के पीछे उनकी फोटो, वीडियो और स्टेटसमेंट के लिए वो दौड़ते रहे जो बिना कोई प्रोटेस्ट किए ही हिरासत में ले लिए जा रहे थे।
टीवी के मीडियाकर्मी कई बार दिल्ली पुलिस से गिड़गिड़ाते के वैन में बैठाने के बाद कम से कम उनकी फोटो, और स्टेटमेंट तो ले लेने दो। फिर नतीजा ये हुआ कि जैसे ही कोई दिखता पहले उसे मीडिया के कैमरे घेरते उसके बाद में पुलिस। जो थोड़े वृद्ध या कम फुर्तीले मीडियाकर्मी थे वो यूपी भवन पर प्रोटेस्टर की कोई फोटो और स्टेटमेंट नहीं हासिल कर पाए।
कई मीडियाकर्मी तो ये भी बोल रहे थे कि- “ये क्या लगा रखा है इन्होंने, ऐसे भी कहीं होता है क्या। हम कब तक कैमरा उठाए एक एक प्रोटेस्टर के पीछे भागें।”
बिना विरोध किए ही जाने किस जुर्म में हिरासत में ले रही थी दिल्ली पुलिस
दिल्ली पुलिस का तर्क था कि यहाँ इस क्षेत्र में सीआरपीसी की धारा 144 लागू है और विरोध प्रदर्शन की अनुमति नहीं है। ठीक है, पर सवाल ये है कि, कोई आकर विरोध प्रदर्शन करता तब उसे दिल्ली पुलिस पकड़ती तो उनकी दलील भी समझ में आती लेकिन बिना कोई विरोध प्रदर्शन किए ही पुलिस उन्हें दूर से ही हिरासत में ले ले रही थी जबकि न तो वो नारे लगा रहे थे, न ही उनके हाथों में कोई पोस्टर बैनर था! दूसरी बात सीआरपीसी धारा 144 में ये है कि 4 या 4 से अधिक लोग एक जगह एकत्र नहीं हो सकते। लेकिन विशेषकर यूपी भवन से जितने भी लोगो को हिरासत में लिया गया वो संख्या में एक्का-दुक्का ही थे, यानि 4 की संख्या का मापदंड भी उन पर नहीं लागू होता था। क्या जनप्रतिरोध को भी सरकार और पुलिस अपने वर्चस्व, अपनी सत्ता, अपने अहम् के लिए चुनौती मानकर उसके जमीन पर उतरने से पहले उसका दमन कर रही है।
विरोध दर्ज़ कराने यूपी भवन पहुंचे लोगों की प्रतिक्रिया
पालिका कुटुंब बस स्टॉप के पास हमें कुछ विरोध प्रदर्शनकारी युवा और बुजुर्ग महिलाएं मिली। उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया दी।
ढाका यूनिवर्सिटी में एबीबीएस की पढ़ाई कर रहे अफनान कहते हैं- “हम अपनी बात भी न रखने पाए और वो हमें डिटेन कर लिए। हमारा शातिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का अधिकार है। लेकिन वो उसका भी दमन कर रहे हैं। जबकि भाजपा-आरएसएस के काउंटर प्रोटेस्ट के लिए धारा 144 हटा ली जाती है। क्या यही लोकतंत्र होता है। क्या ये नाइंसाफी नहीं।”
12 वीं कक्षा के छात्र अब्दुल रहीम कहते हैं- “हमने तो यही पढ़ा था कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे अच्छा जनतांत्रिक राज्य है, और यहाँ हर किसी को अपनी बात रखने, शांतिपूर्ण विरोध दर्ज़ करने का अधिकार है। लेकिन हमें 144 लगाकर डिटेन कर लिया जा रहा है। तो क्या किताबों हमने सब गलत और झूठ पढ़ा था?”
प्राइवेट जॉब करने वाले कुलदीप कहते हैं- “हम यहाँ यूपी पुलिस द्वारा उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाकर की गई तोड़-फोड़ हिसां और बर्बरता के खिलाफ़ अपना विरोध दर्ज़ कराने आए थे लेकिन यहां आकर पता चला कि दिल्ली पुलिस भी यूपी पुलिस के नक्श-ए-कदमों पर चल रही है।”
इशरत जहां कहती हैं- “देश का प्रधानमंत्री कुछ कहता है, गृहमंत्री कुछ, राष्ट्रपति कुछ और कहता है, सेना अध्यक्ष कुछ और। आखिर इस देश को चला कौन रहा है। गृहमंत्री सदन से लेकर चुनावी मंच तक हर जगह सीएए के जिक्र में एक ही धर्म का बॉयकाट किया है। सीएए के मसले पर ये घिर गए तो विरोध प्रदर्शन को ही कम्युनलाइज करके अपनी ‘डिवाइड एंड रूल’ की राजनीति पर लग गए हैं। ये अंग्रेजो की पोलिटिकल पोलिसी थी अब इन्होंने अपना ली है। ये दीमक की तरह देश और समाज से सांप्रदायिक सद्भाव, मोहब्बत और भाईचारे की मिट्टी को चाटने वाले लोग है। ये गद्दार हैं हमें इनका इतिहास पता है। इनके पूर्वजों ने चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की मौत को रास्ता दिखाया था। इनकी शाखा के पहले प्रधानमंत्री ने क्रांतिकारियों की निशानदेही की थी और लिखकर दिया था कि वो बलवे में शामिल नहीं बल्कि अंग्रेजों के प्रति वफादार हैं। इनके हिंदू नायक सावरकर ने माफीनामा लिखकर अंग्रेजों के प्रति वफादारी की प्रतीज्ञा ली थी। इस मुल्क की आज़ादी इसकी तरक्क्की में सबसे बड़ी बाधा तो खुद यही लोग थे। और आज यही लोग सत्ता में पहुंचे तो कोतवाल बनकर सबकी नागरिकता पर शक़-ओ-शुबह पैदा कर रहे हैं।”