समकालीन जनमत
ज़ेर-ए-बहस

पुलिस, मुसलमान और हिंदी मीडिया

उत्तर भारत में प्रतिबंधित संगठनों में सिमी का नाम सर्वाधिक चर्चित है। आज भी रह रह कर किसी घटना के समय या सांप्रदायिक माहौल को धार देने के लिए सिमी के कार्यकर्ताओं का नाम हवा में तैरता सुनाई देता है। अमेरिका में 9/11 के नाम से मशहूर दुर्घटना के बाद भारत में सिमी को प्रतिबंधित कर दिया गया, जो आज तक जारी है। 2008 में दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस गीता मित्तल की कोर्ट ने सिमी पर लगे प्रतिबंध को यह मानते हुए समाप्त कर दिया था, कि यह संगठन किसी गैरकानूनी या असंवैधानिक गतिविधि में लिप्त नहीं है, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने इसके खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय में अपील दाखिल की और पुनः प्रतिबंध लगा दिया गया। आज भी यह मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। 25 अप्रैल 1977 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने सिमी का गठन इस उद्देश्य के साथ किया कि उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवानों में इस्लामिक मूल्यों और धर्म के प्रति आस्था कम होती जा रही है, अतः उन्हें धार्मिक मूल्यों और नैतिकता के प्रति आस्थावान बनाया जाए। इसके मानने वाले यह समझते हैं कि वर्तमान राज्य के कानून लोगों को गलत कामों से रोकने के लिए नाकाफी हैं, अतः उनके भीतर खुदा का खौफ होना जरूरी है। कुछ समय तक इस संगठन ने छात्रसंघ चुनावों में भागीदारी भी की, लेकिन बाद में यह मानते हुए कि इससे लोगों में एक अवसरवाद पैदा हो रहा है, उसे छोड़ दिया। हां, फीस बढ़ोतरी, रैगिंग आदि सवालों पर यह कैंपसों में सक्रिय रहा। सामाजिक मुद्दों या सांप्रदायिक घटनाओं में फैक्ट फाइंडिंग टीम बनाता और रिपोर्ट जारी करता था।
सिमी की गतिविधियां गैरकानूनी थीं या नहीं इस पर मामला न्यायालय में विचाराधीन है। लेकिन, जिस तरह से उसका उपयोग राज्य से लेकर मीडिया तक ने हर घटना के पीछे उसका हाथ बता कर करना शुरू किया और आज भी उसे लेकर जिस तरह एक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है, उसमें हमने इस संगठन की पड़ताल करने और हालिया घटनाओं को जांचने की कोशिश की। इसके लिए हमने 9/11 के बाद सिमी को प्रतिबंधित करने के समय इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे डॉक्टर शाहिद बद्र फलाही, (जिन्हें 28 सितम्बर 2001 को गिरफ्तार कर लिया गया था और फिर अप्रैल 2004 में वे रिहा हुए), से मुलाकात भी की और उन पर चल रहे मुकदमों, दस्तावेजों, घटनाक्रम से इस पूरे मामले को देखने की कोशिश भी की है। शाहिद बद्र फलाही आज़मगढ़ जिले के शहर कोतवाली के अंतर्गत आने वाले मनचोभा गांव के निवासी हैं। इनके पिता बदरे आलम की 40 साल से एक क्लीनिक है। डॉक्टर साहिब खुद भी एक शफ़ाखाना चलाते हैं। यह अलबद्र युनानी शफ़ाखाना के नाम से शहर के बदरका मोहल्ले में स्थित है। डॉक्टर शाहिद के दरवाजे रात में भी मरीजों के आवाज देने या दस्तक देने पर खुल जाते हैं, हालांकि मरीजों और जरूरतमंदों के अलावा पुलिस की दस्तक भी उनके दरवाजे पर लगी रहती है।-सं
हालिया घटनाक्रमहाल ही में कश्मीर में धारा 370 खत्म हुई थी। डॉ. डॉक्टर शाहिद बद्र फलाही अपने घर के बाहर 5 सितंबर, 2019 शाम को गांव के ही कुछ लोगों के साथ बैठे थे कि गुजरात के नंबर प्लेट वाली एक गाड़ी आई और उसमे से 7-8 मुस्टंडो से दिखते अपराधियों के तौर तरीके वाले नंगी पिस्तौल लिये उतरे और शाहिद बद्र को घेर लिया। यह गुजरात पुलिस थी। ताकीद करने के बाद वे बोले कि साथ चलिए! शाहिद बद्र ने बताया कि देश-विदेश में कुछ घटता है तो पूछताछ पुलिस करती रहती है। कभी थाने बुलाकर, कभी घर आकर। लेकिन इस तरह से कभी नहीं हुआ। शाहिद बद्र अनौपचारिक कपड़ों में थे। उन्होंने कपड़े पहनने की बात की। गुजरात पुलिस ने उन्हें वहीं अपने कपड़े मंगवाने को कहा और वहीं पर उन्होंने अपने कपड़े बदले और गाड़ी में बैठ गये। डॉक्टर शाहिद बद्र को लेकर वे स्थानीय चौकी पहुंचे जहां सिर्फ दो सिपाही थे। डॉक्टर शाहिद बद्र को ये सिपाही जानते थे। गुजरात पुलिस ने इन सिपाहियों को सूचना दी कि इनको लेकर गुजरात जा रहे हैं। इस पर डॉक्टर शाहिद बद्र ने सिपाहियों से कहा कि वे शुगर के मरीज हैं तो दवाएं उनकी घर से मंगवा दें पर गुजरात पुलिस ने कहा कि दवा रास्ते में ले ली जाएगी। इस बात पर स्थानीय चौकी सिपाही बोले कि ऐसा नहीं होगा। एक तो आप लोग कोतवाली में या स्थानीय चौकी में बिना कोई सूचना दिए गांव में गए वह गलत था, दूसरे आप लोग सिर्फ सूचना देकर ले जा रहे हैं। इस पर सिपाहियों के बीच कहासुनी भी हुई और स्थानीय चौकी के सिपाही इस बात पर अड़ गये कि पहले इन्हें कोतवाली लेकर चलिये, फिर ले जाइएगा। तब तक गांव के लोग भी चौकी पहुंच गये। गुजरात पुलिस के तौर तरीके से वे सब आशंकित हो गये थे। गुजरात पुलिस को हार कर डॉ. शाहिद बद्र को कोतवाली लाना पड़ा। इतने समय में गांव के लोगों ने मोबाइल से और लोगों को यह सूचना दे दी। कोतवाली पहुंचने पर डॉक्टर साहब को जानने वाले काफी संख्या में जुट गए। तब तक डॉक्टर साहब ने अपने वकील को भी बुला लिया। अब तक उच्च प्रशासनिक अमला भी हरकत में आ चुका था। कोतवाल ने पहले तो इस बात पर नाराजगी जाहिर की, कि गुजरात पुलिस ने बिना सूचना के यह कार्रवाई क्यों की लेकिन फिर क्या बात हुई कि कोतवाल ने गुजरात पुलिस को शाहिद को ले जाने की अनुमति दे दी। वकील साहब ने गुजरात पुलिस से पूछा कि कैसे ले जाएंगे तो गुजरात पुलिस ने बताया कि जिस गाड़ी से लोग आए हैं, उसी से ले जाएंगे। फिर वकील ने पूछा कि कितने घंटे का रास्ता है। इस पर गुजरात पुलिस ने बताया कि 48 घंटे। वकील साहब ने कहा कि 24 घंटे से ऊपर की दूरी है, तो बिना सीजेएम के सामने हाजिर किये नहीं ले जा सकते। अब कोतवाल भी इस बात को मान गया। लेकिन, गुजरात पुलिस लगातार इस बात के लिए दबाव बनाती रही कि सीजेएम के सामने पेश न करना पड़े। कुछ और वकील भी तब तक आ गए। कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक नेताओं की भी जुटान होने लगी और तब कोतवाल इस बात पर अड़ गया कि बिना सीजेएम के सामने हाजिर किए नहीं ले जाने देंगे। इस बीच कोतवाल के ऊपर लगातार दबाव बढ़ता रहा। तनाव के चलते कोतवाल की तबीयत भी खराब हो गई। अंततः गुजरात पुलिस अपने किसी लक्षित मंसूबे में नाकाम हुई। डॉक्टर शाहिद बद्र को सीजेएम के सामने पेश किया गया। सीजेएम ने जमानत दे दी, इस शर्त के साथ कि वह जमानत के पश्चात एक माह के अंदर प्रस्तुत प्रकरण से संबंधित न्यायालय के समक्ष हाजिर होगा। लेकिन मामला अभी खत्म नहीं हुआ था। गुजरात पुलिस शहर में डेरा डाले रही। लोग कयास लगाते रहे कि अब क्यों गुजरात पुलिस यहां रुकी हुई है। पता चला कि गुजरात पुलिस ने पुनर्विलोकन प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया है ट्रांजिट रिमांड के लिए, यह कहते हुए कि अभियुक्त का पूर्व में आपराधिक इतिहास रहा है। फिर से दबाव बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन सीजेएम ने ट्रांजिट रिमांड नहीं दी और 1 माह की दी गई अवधि को 7 दिवस के रूप में संशोधित भर कर दिया कि अभियुक्त दिनांक 13 सितंबर को संबंधित न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होगा। गुजरात पुलिस चाहे तो अभियुक्त के निवास स्थान से संबंधित न्यायालय तक जा सकती है। मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद भी गुजरात पुलिस शहर में टिकी रही। अब डिस्ट्रिक्ट जज के यहां 11 सितंबर को ट्रांजिट रिमांड की मांग की गई, जिस पर उनके वकील ने कोर्ट को बताया कि डा. शाहिद गुजरात चले गये हैं। डिस्ट्रिक्ट जज ने फैसला रोक लिया। इस बीच जरा इन तथ्यों को देख लेना भी शायद जरूरी है- सीजेएम जे. डी. सोलंकी की कोर्ट में 13 सितंबर 2019 को डॉक्टर शाहिद हाजिर हुए। सीजेएम ने वारंट की फोटोकॉपी को नहीं माना और इसके लिए गुजरात पुलिस को डांट भी लगाई। सीजेएम ने वारंट से संबंधित मूल दस्तावेज को खोजने के लिए कहा, लेकिन उससे संबंधित कोई भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं था। सीजेएम जे डी सोलंकी ने कहा कि जमानत की जरूरत नहीं है। एक बार जमानत हो गयी है, तो दोबारा जमानत की जरूरत नहीं। गुजरात पुलिस की ट्रांजिट रिमांड की प्रार्थना खारिज करते हुए जज ने कहा कि गुजरात पुलिस जो भी पूछताछ करनी है वह सुबह 11 बजे से 5 बजे के बीच कर सकती है। 14, 15, 16 सितंबर को 3 दिन गुजरात पुलिस ने डॉक्टर शाहिद बद्र को पूछताछ के लिए रोका। सीजेएम ने एक और मजेदार टिप्पणी गुजरात पुलिस पर की। वारंट की फोटो कॉपी ले कर आने पर पुलिस से उन्होंने कहा कि वारंट की मूल कॉपी लाइए। गुजरात पुलिस के पास मूल कॉपी थी ही नहीं इस पर सीजेएम ने कहा कि मैं रु.500 की फोटो कॉपी करा कर आपको देता हूं आप उस फोटोकॉपी से काम लीजिए!

क्या था मामला
भुज में 7 अप्रैल 2001 को एक कार्यक्रम था। कार्यक्रम की अनुमति प्रशासन से थी। जिसमें बतौर वक्ता डॉ. शाहिद बद्र भी बुलाए गए थे। कार्यक्रम के दौरान पुलिस द्वारा वीडियोग्राफी करने का कार्यक्रम के आयोजकों ने विरोध किया। इस दौरान पुलिस से झड़प हुई। 11 अप्रैल 2001 को 13 लोगों के खिलाफ इस मामले में सरकारी संपत्ति को नुकसान और सरकारी काम में दखल को लेकर एफआइआर हुआ। यह एफआइआर नामजद नहीं था। इसमें 13 लोगों की गिरफ्तारी हुई। 22 सितंबर 2001 को जस्टिस बी.जे. जोशी की कोर्ट से सारे लोग बरी हो गए। तब तक इसमें शाहिद बद्र का नाम नहीं था। 5 अक्टूबर 2012 को शाहिद के नाम से उसी मामले में वारंट जारी हुआ। इसी वारंट पर 5 सितंबर 2019 को उन्हें घर से उठाया गया। गुजरात पुलिस का कहना था कि शाहिद बद्र का पता गलत था, जिसके चलते 18 साल तक पुलिस उन तक नहीं पहुंच सकी। दरअसल, गुजरात पुलिस की पूरी कहानी इस मामले में झूठ पर टिकी थी। डॉक्टर शाहिद बद्र इस्लामिक छात्र संगठन पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस की सुनवाई में हाजिर होते हैं। एसआईएम पर जब प्रतिबंध लगा तब डॉक्टर शाहिद इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। पुलिस और न्यायालय के रिकॉर्ड में उनका पता दर्ज है। दरअसल गुजरात पुलिस एक खास मॉडल के तहत फंक्शन करती है, जिसमें वह सारे कानूनों से ऊपर होकर काम करती है। कम से कम, इस मामले में गुजरात पुलिस का यही सच सामने आया। लोग इस बात की चर्चा करते पाए गए कि नए गृह मंत्री के पद संभालने के बाद गुजरात पुलिस को असीमित और असंवैधानिक शक्तियां प्राप्त हो गई हैं। वह कहीं भी जा सकती है, किसी को भी उठा सकती है और उसे आतंकी, अपराधी, नक्सली घोषित कर सकती है। अब तक हम हिंदी बेल्ट के लोगों के लिए यह दूर की बात थी, लेकिन इस मामले में यह बिल्कुल नजदीक से दिखाई दिया और इस तरह की संस्थानिक प्रैक्टिस बिल्कुल पास से सुनाई पड़ने वाली फासिस्ट आहट है।

मुसलमान और हिंदी मीडिया
हिंदी मीडिया का सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी चरित्र थोड़ा देर से खुला लेकिन अब वह संघ भाजपा की राजनीतिक दुष्प्रचार और फाल्स रिपोर्टिंग के अभिन्न हिस्सेदार हो चुके हैं। पहले यह काम सिर्फ दैनिक जागरण जैसे एकाध अखबार करते थे लेकिन आज की तारीख में यह बताना मुश्किल है कि हिंदी का कौन सा अखबार इसमें शामिल नहीं है। शाहिद बद्र को जब ला एंड आर्डर के एक 18 साल पुराने मामले में गुजरात पुलिस ने आजमगढ़ से उठाया और स्थानीय पुलिस की सतर्कता से मनचाहा परिणाम न पा सका और सीजेएम की कोर्ट में पेश करना पड़ा तब मामला मीडिया के सामने आया और उसके बाद हिंदी अखबारों ने जो रिपोर्टिंग की वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के भी कान काटने वाली थी। हिंदी अखबार गुजरात पुलिस की झूठी कहानी के पक्षकार बन गए। हालांकि, हिंदी अखबार के स्थानीय पत्रकार थानों के दलाल तो पहले से हो चुके थे। जिस मामले में डॉक्टर शाहिद को उठाया गया, उस मामले में जो वारंट जारी हुआ था उसकी मूल कॉपी भी गुजरात पुलिस के पास नहीं थी और जिस कोर्ट से 2012 में वारंट जारी हुआ था उस कोर्ट में उसकी कोई फाईलिंग नहीं थी। वारंट की जो फोटोकॉपी थी, उसमें भी वह मामला कोर्ट और कानून के अंतर्गत जमानत के योग्य था। इसके अलावा यह मामला शाहिद बद्र को किसी आतंकी संबंध या गतिविधि का आरोपी बनाने वाला नहीं था। और, ना ही इसको लेकर पुलिस के पास उनकी कोई हिस्ट्री थी। अगर होती तो वह 18 साल पुराने मामले को नया रंग देने की कोशिश न करती। लेकिन, हिंदी अखबारों ने जो रिपोर्टिंग की उसमें लगातार शाहिद को आतंकी बताने और पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से संबंध होने की रिपोर्टिंग की। इतना ही नहीं गलत तथ्यात्मक जानकारियों को भी अखबारों ने बड़े आत्मविश्वास से छापा। अखबार डॉक्टर शाहिद को लगातार सिमी का संस्थापक सदस्य लिखता रहा और इससे संबंधित हेडिंग भी लगायी। जबकि, तथ्य यह है कि जब सिमी की स्थापना हुई उस समय शाहिद बद्र की अवस्था मात्र 6 साल की थी। उन अखबारों में यह बात लगातार की जाती रही कि शाहिद फरार चल रहा था, उसने गलत पता लिखवाया था, जिससे पुलिस उसे खोज नहीं पा रही थी। फिर गूगल की मदद से उस पते से मिलती-जुलती जगह खोजी गई और पुलिस उस तक पहुंच पायी। यह पूरी बात गुजरात पुलिस का बनाया गया झूठ था, जिसे हिन्दी मीडिया पालतू की तरह जस का तस छापती रही। जबकि, तथ्य यह है कि भारत सरकार के पास शाहिद बद्र की सारी जानकारियां 2001 से ही मौजूद हैं। वे ही सिमी पर लगे प्रतिबंध का केस लड़ते हैं और हर सुनवाई में कोर्ट में हाजिर रहते हैं। वे देश की सबसे पुरानी प्रतिष्ठित अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के 7-8 साल तक छात्र रहे हैं, वहां भी उनका पता मौजूद है। जहां तक भुज की सभा का मामला है, उसमें पुलिस ने उनसे पूछ कर पता दर्ज नहीं किया था, बल्कि सभा में मौजूद श्रोताओं की सूचना और एलआईयू की रिपोर्ट के आधार पर पता दर्ज किया था। एक और तथ्य यह भी है, कि भुज मामले में 11 साल तक कोई वारंट उनके नाम से जारी नहीं हुआ और 2012 में जब जारी हुआ तो वह वारंट हाजिर न होने पर हर 15 दिन में नवीनीकृत होता है। भुज के सीजेएम कोर्ट में हाजिर होने के बाद मजिस्ट्रेट ने रिकॉर्ड खोजवाया जिसमें उस वारंट को लेकर किसी फाइलिंग का रिकॉर्ड मौजूद नहीं था। अर्थात, गुजरात पुलिस कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद भुज मामले को एक नया रंग देना चाह रही थी, जिसके लिए वह नए झूठ गढ़ती रही और हिंदी अखबार इसे ही रिपोर्टिंग का आधार बनाते रहे। जबकि, मजिस्ट्रेट के आदेश और टिप्पणियों को अखबारों ने कोई जगह नहीं दी। इतना ही नहीं, जब भुज में सीजेएम ने गुजरात पुलिस पर टिप्पणी की और डॉक्टर शाहिद को आजमगढ़ सी जे एम द्वारा दी गई जमानत को ही मान लिया और कहा कि फिर से जमानत की जरूरत नहीं है, तो इस पर अखबार मौन रहे। लौटने के बाद किसी अखबार ने रिपोर्ट नहीं लगाई और ना ही डॉक्टर शाहिद से कोई बात करने की जहमत उठाई जबकि इससे पहले वे लिखते रहे कि क्या है ‘आजादगढ़’ का रहस्य… फरार चल रहा था डॉक्टर शाहिद।…शाहिद पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से संपर्क कर नए संगठन बनाने की फिराक में है… आदि। लेकिन, जब लौटने के बाद उन्होंने अखबारों में फोन किया तो उनका फोन किसी अखबार ने नहीं उठाया।
(समकालीन जनमत,प्रिंट से सााभार ।)

फीचर्ड इमेज गूगल से साभार 

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