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सत्ता से सवाल करने वाले पत्रकार थे विनोद दुआ

मशहूर पत्रकार विनोद दुआ का आज शाम निधन हो गया। उनकी बेटी मल्लिका दुआ ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम पर अपने पिता के निधन की सूचना दी। विनोद दुआ इस वर्ष कोविड से संक्रमित होने के बाद कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे। बीमार होने पर उन्हें पहले परमानंद अस्पताल और फिर अपोलो हास्पिटल में भर्ती कराया गया था।

विनोद दुआ की पत्नी पद्मावती (चिन्ना) दुआ का इसी वर्ष जून में कोविड संक्रमण से निधन हुआ था।  पिता के निधन पर मल्लिका दुआ ने एक भावुक पोस्ट लिखी है। इसमें उन्होंने कहा है-‘ हमारे निडर और असाधारण पिता विनोद दुआ का निधन हो गया है। उन्होंने एक अद्वितीय जीवन जिया। दिल्ली की शरणार्थी कालोनियों से 42 वर्षों तक वह पत्रकारिता की उत्कृष्टता के शिखर तक बढ़ते हुए हमेशा सच बोलते रहे। वह अब हमारी मां, उनकी प्यारी पत्नी चिन्ना के साथ स्वर्ग में हैं जहां वे गाना, खाना बनाना, यात्रा करना एक दूसरे के लिए जारी रखेंगे। ‘

67 वर्षीय विनोद दुआ अपनी निडरता और बेबाकी के लिए जाने जाते थे। उन्होंने सत्ता से सवाल करने वाली पत्रकारिता की राह चुनी और अंतिम समय तक उस पर अडिग रहे। मोदी सरकार की आलोचना के कारण हाल के दिनों पर उनके खिलाफ एक भाजपा नेता ने हिमाचल प्रदेश में देशद्रोह का केस दर्ज कराया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। उनके खिलाफ दिल्ली में भी एफआईआर दर्ज करायी गयी थी जिसमें उन्हें अंतरिम जमानत मिली थी।

वे दूरदर्शन, एनडीटीवी, द वायर, स्वराज टीवी सहित कई मीडिया संस्थानों में न्यूज एंकर, प्रस्तोता के बतौर जुड़े रहे। अंतिम दिनों में वे एचडब्ल्यू न्यूज नेटवर्क में सलाहकार संपादक के बतौर जुड़े थे और ‘ द विनोद दुआ शो ’ नाम से कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे थे। द वायर में उनका ‘ जन गण मन ’ कार्यक्रम काफी लोकप्रिय था।
दूरदर्शन में डाॅ प्रणय राय के साथ चुनाव परिणाम का विश्लेषण करते हुए उन्होंने अपनी ऐसी छाप छोड़ी जिसे लोग आज भी याद करते हैं। दूरदर्शन पर उनका ‘ जनवाणी ’ कार्यक्रम में वे मंत्रियों से जिस निडरता के साथ सवाल करते थे, वैसी पत्रकारिता अब दुर्लभ हो चुकी है। एनडीटीवी में उनका ‘ जायका इंडिया ’ कार्यक्रम भी अपने अनूठे प्रस्तुतिकरण के कारण काफी चर्चित हुआ था।

अपने सभी कार्यक्रमों में वे जनता के मुद्दों को बहुत प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करते थे और सत्ता से सवाल करते थे।

उन्हें 1996 में उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2008 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

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