‘जीवन का बुत बनाना/काम नहीं है शिल्पकार का/उसका काम है पत्थर को जीवन देना/मत हिचको/वो शब्दों के जादूगर!/जो जैसा है, वैसा कह दो/ताकि वह दिल को छू ले’ –
उन्होंने विपुल साहित्य लेखन किया। दर्जन से ऊपर तो उनके कविता संकलन हैं। अनेक भाषाओं में उनकी कविताओं का अनुवाद हुआ। हिन्दी में ‘साहस गाथा’ नाम से उनका कविता संग्रह आया। उनकी अनेक आलोचना कृतियां हैं। उन्होंने अनुवाद का काम किया। अखबारों के लिए स्तंभ लेखन किया। वर्तमान में वे आधुनिक तेलुगू साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकार हैं। भारत के प्रगतिशील व जनवादी साहित्य समाज में उनकी प्रतिष्ठा है।
सरकार काव्य लेखन, साहित्य सृजन, बौद्धिक व लोकतांत्रिक क्रियाकलाप आदि को अनुकूलित करने में लगी है। उसे असहमति व आलोचना बरदाश्त नहीं है। जो विरोध में है, उनका दमन-उत्पीड़न सामान्य सी बात है। आज ऐसे लोगों की लंबी फेहरिश्त बनाई जा सकती है जिन्हें शिकार बनाया गया है या बनाया जा रहा है। बुलडोजर दमन का प्रतीक बन गया है।
अदालत के आदेश में कहा गया है कि कवि अपने घर हैदराबाद वापस नहीं जा सकता। उनकी तीन बेटियां हैं – सहजा, अनला और पवना। वे हैदराबाद में रहती हैं। वहां उनका परिवार है। वरवर राव की उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए उनकी देखभाल के लिए बेटियों का साथ रहना जरूरी है। कोर्ट का आदेश ऐसा है जिसमें वे मुंबई नहीं छोड़ सकते। फलस्वरूप उन्हें मुम्बई में ही रहना पड़ रहा है। उनके साथ पत्नी पी हेमलता जी हैं जो उनका ख्याल रखती हैं। उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेने की मनाही है। वे प्रेस, इलेक्ट्रानिक व सोशल मीडिया पर बयान नहीं दे सकते हैं।
बातचीत के क्रम में हमने बताया कि फादर स्टेन स्वामी की न्यायिक हिरासत में हुई मौत पर भी संग्रह में कविता है। उन्होंने सुनने की इच्छा व्यक्त की। इसे हेमलता जी ने रिकार्ड भी किया। कविता कुछ इस प्रकार थी –
विमल किशोर ने कोरोना काल की विभीषिका और सरकारी उपेक्षा को सामने लाने वाली कविता ‘त्रासदी जीवन की’ का पाठ किया।
आज के इस फासीवादी दौर में लेखकों व बुद्धिजीवियों की क्या भूमिका हो? हमारे विचार-विमर्श का यह भी विषय था। उन्होंने लंबा समय जेल में गुजारा। अभी भी हालत ऐसी है जिसमें वे लोगों से मिल नहीं सकते हैं। गिने-चुने ही मिलने आते हैं। ऐसे में क्या संदेश है? उनकी ओर से संदेश जैसा कुछ नहीं था पर जोर देकर कहा – एकता, एकता, एकता….मोर्चा, मोर्चा, मोर्चा। कहना था कि जिस तरह पिछली सदी में जब दुनिया में फासीवाद का उभार हुआ था, हमारे यहां के लेखकों ने फासीवाद मोर्चा बनाया था। उसी तरह का मोर्चा बने। उसी दिशा में पहल ली जानी चाहिए। यह भी कहना था कि लेखकों के अनेक संगठन हैं। इनके होते हुए भी मोर्चा बन सकता है। उनकी राय थी कि वे जो कर रहे हैं, वे करते रहें। उनका अस्तित्व बना रहे। इसके बाद भी उनके बीच फासीवाद विरोधी संयुक्त मोर्चा बन सकता है और बने। संघर्ष और एकजुटता से ही राह निकलेगी।
वरवर राव जी और हेमलता जी के साथ की यह हमारी बेहतरीन शाम थी, ऊर्जस्वित कर देने वाली। हमने उन्हें अपनी रचनाएं सुनाकर बोर किया था। दिली इच्छा उनसे सुनने की थी। हमारे अनुरोध को वे मुस्कुरा कर टाल गए। ऐसे में उनकी कविता का पाठ हमने किया। यह बेंजामिन मोलाइस को फांसी दिए जाने के बाद उन्होंने लिखी थी। यह काफी लोकप्रिय भी है –
तमाम विपरीतताओं के बीच वरवर राव का कवि अपने गीतों में जीता है जहां एक बेहतर दुनिया और जनमुक्ति का स्वप्न है। उसका संघर्ष इसी स्वप्न को सच्चाई में बदल देने के लिए है।