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उत्तराखंड की संघर्षशील ताकतें एकजुट होंगी ऑल इंडिया पीपल्स फोरम में

वागेश्वर (उत्तराखंड). उत्तराखंड आन्दोलनों की जमीन है. जहां एक तरफ सत्ता निरंतर जनविरोधी नीतियाँ लोगों पर थोपती है तो वहीं उसके खिलाफ निरंतर संघर्ष में भी लोग उतरते हैं. विभिन्न सवालों पर संघर्षरत व्यक्तियों,संगठनों, पार्टियों की एकजुटता की जरूरत निरंतर महसूस की जाती रही है. विभिन्न संघर्षों की एकजुटता के लिए 15 जनवरी 2019 को वागेश्वर में उत्तराखंड के विभिन्न संघर्षों से जुड़े व्यक्तियों, संगठनों, पार्टियों की बैठक हुई,जिसमें तय हुआ कि जनसंघर्षों के देशव्यापी साझा मंच ए.आई.पी.एफ. में उत्तराखंड की संघर्षशील ताकतों को एक जुट किया जाएगा.

बागेश्वर में आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए ए.आई.पी.एफ. के राष्ट्रीय संयोजक गिरिजा पाठक ने 2015 में ए.आई.पी.एफ. के गठन से लेकर अब तक की यात्रा का ब्यौरा दिया तथा देश के विभिन्न राज्यों में ए.आई.पी.एफ. की महत्वपूर्ण पहलकदमियों का भी विवरण दिया. उन्होने कहा कि देश में जिस तरह का जनविरोधी, फासीवादी निजाम 2014 में काबिज हुआ,उसके विरुद्ध साझा तौर पर लड़ने की जरूरत है. कामरेड गिरिजा पाठक ने कहा कि ए.आई.पी.एफ. एक सिटीजन चार्टर तैयार कर रहा है और 16-17 फरवरी को दिल्ली में एक राष्ट्रीय कन्वेंशन में यह सिटीजन चार्टर जारी किया जाएगा.

वरिष्ठ पत्रकार और गैरसैण राजधानी संघर्ष समिति के संयोजक चारु तिवारी ने कहा कि स्थानीय मुद्दों का भी एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य होता है. जैसे उत्तराखंड में शिक्षा,स्वास्थ्य की बदहाली है तो राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसा ही है. जमीन हड़पने का अभियान यदि उत्तराखंड में हम देख रहे हैं तो देश के स्तर पर भी इसे देखा जा सकता है. उत्तराखंड के सवालों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने के लिए ए.आई.पी.एफ. जैसे मंच से जुड़ना महत्वपूर्ण है. उन्होने कहा कि आंदोलनों की एकजुटता न केवल बातचीत के स्तर पर बल्कि कार्यवाही के स्तर पर भी जरूरी है. उत्तराखंड के किसी भी इलाके में होने वाले छोटे-बड़े संघर्षों में सब को शामिल होना चाहिए.उन्होने कहा कि “2 फरवरी को नशा नहीं रोजगार दो” आंदोलन की वर्षगांठ, 26 जनवरी को गैरसैण में झण्डा फहराने की आंदोलनकारियों की योजना,जैसे कार्यक्रमों को व्यापक बनाया जाना चाहिए.

अमर उजाला और हिंदुस्तान के पूर्व संपादक दिनेश जुयाल ने कहा कि जनपक्षधर ताकतों का मुक़ाबला भाजपा-कांग्रेस जैसे दो बड़े दैत्यों से है. इसलिए संघर्षशील ताकतों को एकजुटता का बड़ा “अम्ब्रेला” बनाने की जरूरत है ताकि अधिक से अधिक लोगों को उसके नीचे लाया जा सके.उन्होने कहा कि हिमालय और उसके निवासियों पर इस समय बड़ा हमला नीतियों के स्तर पर हो रहा है. उसके खिलाफ लड़ना जरूरी है.

वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट ने कहा कि प्रदेश में चल रहे आंदोलनों और जनता से जुड़े मुद्दों का एक डाटाबेस बनाए जाने की आवश्यकता है. उन्होने कहा कि जनविरोधी ताकतों को आंदोलनों के साथ ही राजनीतिक रूप से चुनौती देने की जरूरत है.उन्होने कहा कि किसी भी मुद्दे पर चलने वाले आंदोलन को लेकर आंदोलनकारियों के बीच जो पूर्वाग्रह पनपते हैं,उनसे मुक्त होने की जरूरत है.

नैनीताल समाचार के संपादक और उत्तराखंड लोकवाहिनी के कार्यकारी अध्यक्ष राजीव लोचन साह ने कहा कि सामूहिक रूप से जनविरोधी नीतियों का प्रतिकार किया जाना आवश्यक है.जनपक्षधर ताकतों की एकता बनाते हुए प्रतिकार का  कार्यवाही के रूप में नजर आना जरूरी है.

उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पी.सी. तिवारी ने कहा कि प्रदेश में ज़मीनों को लूटने का अभियान भाजपा और उससे पहले की सरकार ने चलाया,उसके खिलाफ लड़ना जरूरी है. उन्होने कहा कि आंदोलनों में कहीं भी दमनात्म्क कार्यवाही होती है तो उसके विरुद्ध प्रदेश भर में आंदोलनकारी ताक़तें उतरती हैं. इस एकजुटता को और व्यापक बनाए जाने की जरूरत है.

वन पंचायत विकास मोर्चा के ईश्वर जोशी ने ए.आई.पी.एफ. के बहाने आंदोलनकारी ताकतों की एकजुटता की पहल का स्वागत किया.

बैठक को बागेश्वर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष गोविंद सिंह भण्डारी, पत्रकार व आंदोलनकारी रमेश कृषक, संस्कृति कर्मी जयदीप सकलानी,पत्रकार त्रिलोचन भट्ट आदि ने भी संबोधित किया.

बैठक में ए.आई.पी.एफ. की सात सदसीय संयोजन समिति का चुनाव हुआ,जिसमें चारु तिवारी,राजीव लोचन साह, पी.सी.तिवारी इन्द्रेश मैखुरी,ईश्वर जोशी और प्रदीप सती शामिल किए गए.

बैठक की शुरुआत संस्कृतिकर्मी सतीश धौलाखंडी द्वारा गाये जनगीत- “मैं तुमको विश्वास दूँ,तुम मुझको विश्वास दो” से हुई.

बैठक के पश्चात बागेश्वर में जनगीत गाते हुए सभी साथी सरयू तट पर विकास प्राधिकरण विरोधी मोर्चा द्वारा आयोजित सभा में शामिल हुए. 1921 में कुमाऊँ केसरी बद्री दत्त पांडे के नेतृत्व में कुली बेगार के रजिस्टर सरयू में बहा कर एक उत्पीड़नकारी प्रथा का अंत किया गया था. उसी तरह विकास प्राधिकरण के सरकारी गज़ट को आंदोलनकारियों ने सरयू में बहा दिया.

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