उत्तराखंड में भाजपा की त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व वाली सरकार आगामी मार्च में एक वर्ष पूरा कर लेगी.विधानसभा चुनाव में वोट मांगने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब देहरादून आये थे तो उन्होंने उत्तराखंड के इंजन को दिल्ली के इंजन से जोड़ते हुए डबल इंजन की सरकार बनाने का आह्वान लोगों से किया था.उत्तराखंड में डबल इंजन की सरकार बन भी गयी. साल भर में इस डबल इंजन की चाल-ढाल का अंदाजा, बीते कुछ दिनों में घटित घटनाओं से लगाया जा सकता है.
21 जनवरी को देहरादून में ई.टी.वी. के पत्रकार अवनीश पाल को शराब की दुकान पर काम करने वालों द्वारा बुरे तरीके से पीटे जाने की खबर आई.सोशल मीडिया में वायरल तस्वीरों को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उक्त पत्रकार को किस कदर बेरहमी से पीटा गया होगा.पत्रकार को अस्पताल में भर्ती किये जाने के बावजूद कई दिनों तक पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी.कोढ़ में खाज यह कि आबकारी मंत्री प्रकाश पन्त ने इस मामले में सवाल उठाये जाने पर शराब वालों द्वारा पत्रकार के खिलाफ करवाई गयी शिकायत ही ट्वीट कर दी.आबकारी मंत्री द्वारा किये गये इस ट्वीट से शराब और शराब कारोबारियों के प्रति सरकार के झुकाव की झलक देखी जा सकती है.
वैसे शराब और शराब वालों के प्रति उत्तराखंड सरकार का यह झुकाव नया नहीं है.शराब के खिलाफ उत्तराखंड में लोग संघर्ष करते रहे हैं.गत वर्ष जब शराब की दुकानों की राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य के राजमार्गों से दूरी को निर्धारित करने के सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया तो पूरे पहाड़ में शराब के खिलाफ एक जुझारू आन्दोलन उठ खड़ा हुआ.उत्तराखंड सरकार ने बयान दिया कि वह शराब की दुकानों को धीरे-धीरे कम करेगी.लेकिन प्रचंड आन्दोलन के बावजूद गढ़वाल मंडल के उन पांच जिलों जहाँ देसी शराब की बिक्री पर रोक थी ,वहां भी त्रिवेंद्र रावत की सरकार ने देसी शराब की दुकानों के लिए टेंडर आमंत्रित किये.जनता के आन्दोलन के दबाव में शराब की दुकानों के समय में तब फेरबदल जरुर किया गया था.लेकिन शराब की दुकानें खोलने के लिए राज्य के राजमार्गों को सरकार ने जिला मार्ग घोषित कर दिया.तमाम जगह पर शराब की दुकानों के खिलाफ चल रहे आन्दोलन को अनदेखा करके उत्तराखंड सरकार उच्चतम न्यायालय गयी ताकि राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे भी शराब की दुकानें खुलवाई जा सकें.इस तरह त्रिवेंद्र रावत सरकार ने अपने राज्य में शराब के खिलाफ लड़ने वालों पर मुकदमे दर्ज किये और शराब की दुकानें खुलवाने के लिए, उच्चतम न्यायालय में मुकदमा लड़ा.गाहे-बगाहे शराब और शराब वालों के पक्ष में फैसले लेने की खबरें अभी भी मिलती रहती हैं.
जिस डबल इंजन का दम,शराब वालों के पक्ष में खम ठोकता नजर आता है,उसकी दूसरे मामलों में क्या दृष्टि है ? यह भी देखते हैं. रोजगार का मामला राज्य के लिए बेहद अहम है.बेरोजगार नौजवान,हर सरकार की तरफ बड़ी आस से रोजगार के अवसरों के लिए देखते हैं.उत्तराखंड राज्य की मांग के साथ भी रोजगार का सवाल अहम रूप से जुड़ा हुआ था.लोगों को आस थी कि अपना राज्य मिलेगा तो बेहतर रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे.लेकिन बीते 18 सालों में यह आस धूमिल होती नजर आई है.जिन नौकरियों की परीक्षा हुई भी,उनमें भी प्रश्नपत्र लीक होने से लेकर अन्य अनियमितताओं की चर्चा भी साथ ही साथ चल पड़ती है.अपवादस्वरूप ही कोई ऐसी नियुक्ति होगी,जिसकी गडबडी का मामला हाई कोर्ट नहीं पहुँचा होगा.अधिकाँश नियुक्तियाँ ठेके पर या अस्थायी प्रकृति की हैं,जहाँ काम करने वालों को वेतन भी महीनों-महीनों नहीं मिलता है.
उत्तराखंड सरकार का बेरोजगारों के प्रति क्या रवैया है,यह पिछले दिनों दो मंत्रियों के बयानों और व्यवहार से समझ सकते हैं.परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने बीते दिनों बयान दिया कि सरकार को चूँकि कई मदों में पैसा खर्च करना पड़ता है,इसलिए उसके पास रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए पैसा नहीं है.लिहाजा आगे से सरकारी नौकरियां नहीं मिलेंगी.एक अन्य मंत्री सुबोध उनियाल का विडियो तो एन.डी.टी.वी. में रवीश कुमार के प्राइम टाइम में भी चला.इस विडियो में वे बेरोजगारों और संविदा कर्मियों की बात सुनने से साफ़ इंकार करते हुए नजर आ रहे हैं.साथ ही आन्दोलन करने के लिए उनियाल हड़का रहे हैं और कह रहे हैं कि “मुझे विधायक तुमने नहीं बनाया.”
एक मंत्री कह रहा है कि अब सरकार रोजगार नहीं देगी,दूसरा बेरोजगारों को खुलेआम धमका रहा है,इससे बेरोजगारों और अर्द्ध-बेरोजगारों के प्रति उत्तराखंड सरकार की संवेदनहीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है.और यह भी देखिये कि ये दोनों मंत्री कौन हैं?ये दोनों ही महानुभाव-कांग्रेस से दलबदल कर भाजपा में आये हुए हैं.अपनी विधायकी और मंत्री पद का रोजगार पक्का करने के लिए,जो सुबह-शाम पार्टियाँ बदलने में गुरेज नहीं करते,वे सरकारी खजाने पर बोझ के नाम पर रोजगार न देने की बात कहें,बेरोजगारों को आन्दोलन करने के लिए धमकाएं,यह भी अपने तरह की उलटबांसी है.
वैसे उत्तराखंड की भाजपा सरकार का नारा-भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस-का भी है.पर इस नारे को पलीता लगाने के लिए इनके मंत्रियों के कारनामे ही काफी हैं.इस सरकार में महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री हैं-रेखा आर्य.ये मोहतरमा भाजपा से कांग्रेस और फिर कांग्रेस से भाजपा का सफर तय करके मंत्री पद तक पहुंची हैं.पहले इनके पति गिरधारी लाल साहू पर अपने एक कर्मचारी की किडनी धोखाधड़ी से निकालने का आरोप लगा.अभी कुछ दिनों पहले कतिपय पत्र-पत्रिकाओं ने इनके विरुद्ध अपने यहाँ काम करने वाले एक व्यक्ति के नाम पर बेनामी संपत्ति खरीदने और उक्त व्यक्ति को बंधक बनाने का आरोप लगाया.आश्चर्यजनक यह है कि इसे गंभीर आरोप पर न तो मंत्री महोदया ने मुंह खोला और ना ही प्रदेश सरकार ने कुछ बोला.लगता है भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस तो नारा मात्र है,बाकी तो इसके प्रति टॉलरेंस ही टॉलरेंस है.
एक आर.टी.आई. आवेदन से ज्ञात हुआ कि बीते ग्यारह महीनों में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के कार्यालय में अड़सठ लाख रुपये की चाय पी गयी.डबल इंजन की सरकार के मुखिया का चाय का बिल ही इतना बड़ा है तो तेल-पानी के खर्चे का आलम क्या होगा !
जब स्वयं पार्टी ही चंदा वसूली पर लगी हो तो बाकी क्या कहिये.भाजपा उत्तराखंड में आजकल आजीवन सहयोग निधि जमा कर रही है.किसके लिए आजीवन,किसका सहयोग और किसके लिए निधि,अभी पता नहीं. पर मंत्रियों,विधायकों तक को टारगेट दिया गया है कि वे आजीवन सहयोग के लिए पैसा इकठ्ठा करें.प्रति विधायक यह धनराशि-चालीस लाख रूपया बतायी गयी है.कांग्रेस से भाजपा में गये पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को चालीस लाख रूपये का चेक देते हुए फोटो खिंचवा कर अखबारों में छपवा चुके हैं.जब चंदा उगाही का लक्ष्य ऊपर से तय है तो जाहिर सी बात है कि पार्टी भी आजीवन उसी के हक में खड़ी रहेगी जो आजीवन सहयोग निधि का घड़ा भरेगा.
स्वास्थ्य,शिक्षा,पलायन,रोजगार,पहाड़ों में बन्दर,सूअर,बाघ,भालू की मार झेलते लोगों के बारे में उत्तराखंड सरकार के पास क्या फार्मूला है? अभी तक कुछ दिख तो नहीं रहा है.हाँ एक आदेश मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव ओमप्रकश की तरफ से 1 फरवरी को सचिवालय कर्मियों के लिए निकला था कि वे 2 फरवरी को देहरादून में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हो रहे प्रवचन में स्वामी हरि चैतन्य पुरी महाराज की वाणी से “लाभान्वित होने हेतु उपस्थित रहें.”
जर्मन कवि ब्रेख्त लिखते हैं-
“ बेड़ा गर्क देश का करके
हमको शिक्षा देते हैं
तेरे बस की बात नहीं
हम राज करें, तुम राम भजो.”
उत्तराखंड की डबल इंजन वाली सरकार ब्रेख्त के लिखे से थोडा आगे बढ़ गयी है.राज करने के साथ राम भजने का बंदोबस्त भी वह अपनी सदारत में करवा रही है.
ग्यारह महीनों से, यही गर्द-ओ-गुबार है जो डबल इंजन से निकल रहा है.
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