समकालीन जनमत
साभार: द क्विन्ट
जनमतव्यंग्य

उत्तर प्रदेश को आज़ादी मुबारक!

लोकेश मालती प्रकाश


उत्तर प्रदेश के लोगों को बधाई! आपके मुख्यमंत्री ने आपको वह तोहफ़ा दे दिया है जो कश्मीर के लोगों को दशकों लड़-लड़ कर भी नहीं मिल पाया है।

एक झटके में आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को भारतीय गणराज्य और उसके संविधान से अलग कर लिया। संघी कश्मीर के लिए चिल्लाते थे कि एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे लेकिन आदित्यनाथ ने उनको ठेंगा दिखाते हुए प्रदेश को भारतीय गणराज्य की संवैधानिक व्यवस्था से अलग करने वाला पहला कदम उठा लिया है। मुझे उम्मीद है कि ज़्यादा देर नहीं करते हुए वे जल्द ही प्रदेश के लिए नए संविधान की भी घोषणा कर सकते हैं।

नया संविधान कैसा होगा इसके लिए लोग चाहे तो अपनी राय दे सकते हैं। हालाँकि इस मामले में लोगों के कहने-सुनने की यूपी सरकार को न तो गरज है न दरकार। वैसे भी चूँकि उत्तर प्रदेश में रामराम आ चुका है इसलिए राजा जो भी कहे उसे ही संविधान का दर्जा दे देना चाहिए।

खैर। इससे पहले कि लोग इस मामले में किसी कंफ़्यूज़न के शिकार हो मामले को थोड़ा साफ़ करना ज़रूरी है।

सूबे के मुख्यमंत्री ने हाल ही में घोषणा की कि यूपी में “आज़ादी” के नारे लगाना राजद्रोह माना जाएगा।

संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि हर नागरिक के लिए आज़ादी, न्याय और बराबरी हासिल करना भारतीय गणराज्य के उद्देश्यों में से एक होगा।

इसके अलावा अनुच्छेद 19 से 22 में तमाम तरह की आज़ादियाँ नागरिकों का मौलिक अधिकार मानी गई हैं। अनुच्छेद 22 में जीवन के अधिकार के साथ निजी जीवन में आज़ादी का अधिकार भी दिया गया है।

यह सही है कि देश की सम्प्रभुता, एकता-अखण्डता और कानून-व्यवस्था आदि के नाम पर इन अधिकारों पर कुछ पाबन्दियाँ लगाई गई हैं। लेकिन इन पाबन्दियों के तार्किक होने की शर्त भी है। यानी सरकार अपनी मनमर्ज़ी से किसी भी तरह की पाबन्दी नहीं लगा सकती। ऐसा करना देश के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

अगर आज़ादी देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हिस्सा है तो “आज़ादी” बोलना राजद्रोह कैसे हो सकता है? ऐसा तभी सम्भव है जब सरकार संविधान को मानने से इंकार कर दे।

आदित्यनाथ की इस घोषणा को यूपी के भारतीय गणराज्य से अलग होने की घोषणा माना जाना चाहिए।

यह सरकारी कार्यवाही से आए दिन होने वाले मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामलों जैसा मामला नहीं है। इस देश में संविधान व मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता रहता है। ऐसी बातों को कोई बहुत सीरियसली नहीं लेता। संविधान में लिखा है कि क़ानून के सामने सभी एक हैं। ऐसा लिखने से चाय वाला और अम्बानी-अडानी एक थोड़े हो गए। चाय वाला कुछ भी उखाड़ ले, मालिक तो मालिक ही रहेंगे।

मगर यह मामला ज़्यादा गम्भीर है। यहाँ तो सूबे के मुखिया ने घोषणा कर दी है कि संविधान में जिस चीज़ की गारंटी नागरिकों को मिली है उसकी बात तक करना राजद्रोह है। यानी एक तरह से संविधान की बात करना राजद्रोह है। यह सीधे-सीधे संविधान से बग़ावत है।

सरकारों ने संविधान की धज्जियाँ पहले भी उड़ाई हैं। लेकिन किसी ने ऐसी घोषणा शायद ही पहले कभी की हो। संविधान का उल्लंघन करना एक बात है और संविधान को चुनौती देना एक अलग बात है। आदित्यनाथ ने सार्वजनिक रूप से संविधान के पालन की शपथ ली है। (निजी तौर पर वे कुछ भी पालन करते रहे हों यह दीगर बात है)। लेकिन अब वे उस शपथ को बाकायदे घोषणा कर के तोड़ रहे हैं।

केन्द्र सरकार को इस घोषणा को हल्के में नहीं लेना चाहिए। उधर मोदी-शाह जी कश्मीर में संविधान की पाई-पाई लगवाने के लिए इतना बड़ा रिस्क लिए। एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया है। इधर आदित्यनाथ खुल्लम-खुल्ला अपने सूबे को संविधान से अलगाने की तरफ़ बढ़ रहे हैं।

अब सवाल उठता है कि लोग संविधान की बात नहीं करें तो किसकी बात करें? लोगों को संविधान के वायरस से बचाने के लिए कुछ करना होगा।

मेरी सलाह है कि यूपी सरकार को इस बाबत कोई आदेश निकालना चाहिए। सबसे पहले तो स्कूलों-कॉलेजों में संविधान की पढ़ाई पर तत्काल पाबन्दी लगा देनी चाहिए। अधिकार वग़ैरह की बात पढ़ कर अहमकों का दिमाग़ ख़राब हुआ जा रहा है। वैसे भी, जो किताब आज़ादी जैसी ख़तरनाक चीज़ का हक़ देती हो वह राष्ट्रद्रोही किताब है। उसे पढ़ना-पढ़ाना संगीन अपराध है। ऐसा करने वालों को यूपी से देश निकाला मिलना चाहिए।

संविधान की बजाय आदित्यनाथ के मुख-कमल से निकले अनमोल वचनों का एक संकलन बनवा कर उसे ही सभी को पढ़ना कानूनन अनिवार्य कर देना चाहिए। मुख्यमंत्री समय-समय पर इतनी अच्छी बातें करते हैं। वह सब पढ़ कर प्रदेश के लोगों की बुद्धि सही रास्ते पर आ जाएगी। हिन्दुस्तान तो विश्व गुरु बनने की राह में है लेकिन यूपी उससे पहले विश्व गुरु बन जाएगा।

नया यूपी चूँकि रामराज्य वाला होगा इसलिए वहाँ, गणतन्त्र-लोकतन्त्र वग़ैरह की ज़रूरत नहीं होगी। इन सबसे जनता को बड़ी परेशानी होती है। गाहे-बगाहे वोट डालने के लिए तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जनता को इस परेशानी से बचाने के लिए करुण हृदय आदित्यनाथ चुनाव वग़ैरह की व्यवस्था ख़त्म करके चाहे तो ख़ुद को यूपी की सल्तनत का परमानेन्ट सरग़ना घोषित कर सकते हैं।

और भी बहुत कुछ हो सकता है लेकिन फ़िलहाल तो उत्तर प्रदेश को उसकी आज़ादी मुबारक!

(फीचर्ड इमेज ‘द क्विंट’ से साभार ।) 

 

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