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नौशाद की याद में

अभिषेक मिश्रा


“रंग नया है लेकिन घर ये पुराना है
ये कूचा मेरा जाना पहचाना है
क्या जाने क्यूं उड़ गए पंछी पेड़ों से

भरी बहारों में गुलशन वीराना है”

सुप्रसिद्ध संगीतकार नौशाद (25 दिसम्बर1919- 5 मई 2006) एक उत्कृष्ट शायर भी थे। उनका दीवान ‘आठवां सुर’ नाम से प्रकाशित हुआ था।

नौशाद का जन्म 25 दिसम्बर 1919 को लखनऊ में मुंशी वाहिद अली के परिवार में हुआ था। वह 18 साल की उम्र में ही संगीत के क्षेत्र में अपना भाग्य आजमाने के लिए मुंबई चले गए थे। शुरुआती संघर्षपूर्ण दिनों में उन्हें उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां, उस्ताद झण्डे खां और पंडित खेम चन्द्र प्रकाश जैसे गुणी उस्तादों से संगीत के गुर सीखने का अवसर प्राप्त हुआ।
पहले जब फिल्मों में संगीत जुड़ा नहीं होता था स्थानीय गायक/संगीतकार थियेटर में ही बैठ गानों को अभिव्यक्ति देते थे। नौशाद की संगीतयात्रा की शुरुआत भी ऐसे ही हुई। अन्य स्थानीय संगीतकारों के साथ लखनऊ के रॉयल सिनेमा हाल में लड्डन मियाँ हारमोनियम बजाते थे। यहीं से नौशाद साहब का संगीत प्रेम परवान चढ़ा जिसने आगे हिन्दी फिल्मों के संगीत को भी एक नई ऊंचाई दी।

‘प्रेमनगर’ से शुरू कैरियर को पहली बड़ी सफलता ‘रतन’ से मिली। चूँकि उन दिनों फिल्मों में काम करना अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था, इन्होंने घरवालों को बता रखा था कि वो ‘बम्बई’ में दर्जी का काम करते हैं। विडम्बना ही थी कि उनकी शादी में बैंड वाले ‘रतन’ के गाने बजा रहे थे और वो बता भी नहीं सकते थे कि यह उनकी ही रचना है।
64 साल के संगीतमय कैरियर में उन्होंने मात्र 67 फिल्मों में संगीत दिया पर अपने गीतों की मधुरता से वो आज भी श्रोताओं की स्मृतियों में ताजा हैं। उनके द्वारा संगीत निर्देशित प्रमुख फिल्मों में अंदाज, आन, मदर इंडिया, अनमोल घड़ी, बैजू बावरा, अमर, स्टेशन मास्टर, शारदा, कोहिनूर, उड़न खटोला, दीवाना, दिल्लगी, दर्द, दास्तान, शबाब, बाबुल, मुग़ल-ए-आज़म, दुलारी, शाहजहां, लीडर, संघर्ष, मेरे महबूब, साज और आवाज, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, गंगा जमुना, आदमी, गंवार, साथी, तांगेवाला, पालकी, आईना, धर्म कांटा, पाक़ीज़ा (उस्ताद गुलाम मोहम्मद के साथ संयुक्त रूप से), सन ऑफ इंडिया, लव एंड गॉड आदि शामिल हैं। उनकी संगीत से सजी अंतिम फिल्म अक़बर खान की ‘ताज़महल’ थी।

शास्त्रीय और लोकसंगीत का सम्मिश्रण उनके संगीत की मुख्य खासियत थी।
उन्होंने छोटे पर्दे के लिए ‘द सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ और ‘अकबर द ग्रेट’ जैसे धारावाहिकों में भी स्मरणीय संगीत दे उन्हें एक खास ऊंचाई दी।
नौशाद साहब एक संगीतकार, शायर के साथ कहानीकार भी थे। दिलीप कुमार, नरगिस और निम्मी अभिनीत फ़िल्म ‘दीदार’ की कहानी उन्होंने ही लिखी थी। ‘बैजूबावरा’ पर फ़िल्म बनाने का मुख्य विचार भी उन्हीं का था।
उड़नखटोला फिल्म के संगीतकार ही नहीं बल्कि निर्माता भी नौशाद ही थे। फिल्म में एक हवाई जहाज का क्रैश होता है और नायक इसमें से एक ऐसे टापू पर जा पहुंचता है जिसका प्रशासन एक स्त्री के हाथ में है। 1955 में एक फिल्म में यह कल्पना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है, और एक प्रोड्यूसर के रूप में साहसिक भी।

महान गायक कुंदनलाल सहगल ने अपना अंतिम यादगार गीत ‘जब दिल ही टूट गया अब जी कर क्या करेंगे’ नौशाद साहब के ही संगीत निर्देशन में गाया था। कहते हैं इसी दौरान नौशाद ने उनके स्वास्थ्य पर शराब के दुष्प्रभाव के प्रति उन्हें आगाह किया था परंतु सहगल ने कहा तुम्हारे जैसे सच्चे शुभचिंतक के आते काफी देर हो चुकी है।
पांच मई, 2006 को इस दुनिया को अलविदा कह गए नौशाद साहब अपने कर्णप्रिय और अमर सुमधुर गीतों की विरासत के साथ अपने श्रोताओं के दिलों में सदा सर्वदा आबाद रहेंगे…

(अभिषेक कुमार मिश्र भूवैज्ञानिक और विज्ञान लेखक हैं. साहित्य, कला-संस्कृति, फ़िल्म, विरासत आदि में भी रुचि. विरासत पर आधारित ब्लॉग ‘ धरोहर ’ और गांधी जी के विचारों पर केंद्रित ब्लॉग ‘ गांधीजी ’  का संचालन. मुख्य रूप से हिंदी विज्ञान लेख, विज्ञान कथाएं और हमारी विरासत के बारे में लेखन)

Email: abhi.dhr@gmail.com , ब्लॉग का पता -ourdharohar.blogspot.com

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