Sunday, October 1, 2023
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लियो टॉलस्टॉय की कहानी: अलीयोश कुल्हड़

( उन्नीसवीं शताब्दी के महान रूसी उपन्यासकार व कहानी लेखक लियो टॉलस्टॉय द्वारा रचित यह कहानी जीवन के विविध आयाम को छूती है अत्यंत सरल, सहज व सादा शिल्प में यह कहानी एक बेहद भोले व्यक्ति अलीयोश के जीवन का चित्रण है, जिसके हालात हृदय में दया, करुणा और प्रेम जगाते हैं और लोभ और असंवेदनशीलता के विरुद्ध जुगुप्सा। अलीयोश के सादा व निष्कपट जीवन  में प्रेम का फूल खिलना दिखाता है कि प्रेम चाहे कैसी ही गंदी परिस्थितियों में जन्म क्यों न ले, ख़ुशबू ही बिखेरता है। कहानी भौतिकता की कोख से अनिवार्य रूप से जन्म लेने वाले लोभ, असंवेदनशीलता, कमर-तोड़ दरिद्रता और अमानवीयता का भी बोध कराती है। मृत्यु के प्रति अलीयोश की उदासीनता इस बात की द्योतक है कि प्रेमिका के बिना जीने की मजबूरी ने पहले ही उसे मृत्यु का स्वाद चखा दिया है और अभी वह केवल जीने की औपचारिकता निभा रहा था। लेकिन  कहानी का एक आयाम यह भी है कि  इसमें मृत्यु को आध्यात्मिक सहजता से स्वीकार कर लेने का दर्शन भी मौजूद है।  

मूल कहानी रूसी भाषा में है। प्रस्तुत कहानी एस.ए.कार्माक द्वारा किये गए अंग्रेज़ी अनुवाद का अनुवाद है, जिसे कोलंबिया विश्वविद्यालय में हिन्दी-उर्दू भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक  डॉक्टर आफ़ताब अहमद ने किया है।  डॉक्टर आफ़ताब अहमद ने उर्दू के महान हास्य लेखक मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी और पतरस बुख़ारी की रचनाओं का उर्दू से हिन्दी में अनुवाद किया है । सं .)

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अलीयोश घर में सबसे छोटा था। लोग उसे “कुल्हड़” कहते थे। हुआ यूँ कि एक बार उसकी माँ ने उसके हाथों पादरी की बीवी के लिए एक कुल्हड़ दूध भिजवाया। रास्ते में वह किसी चीज़ से  ठोकर खाकर गिर पड़ा और कुल्हड़ टूट गया। इस बात पर माँ ने उसकी जमकर पिटाई की और गाँव के लड़के उसको “कुल्हड़” कहकर चिढ़ाने लगे—“अलीयोश कुल्हड़।” फिर यह उसका पुकारू नाम हो गया।

अलीयोश दुबला-पतला और छोटे क़द का था। उसके कान मुड़े और बाहर को निकले हुए थे, जैसे चिड़िया के डैने। और उसकी नाक बहुत लम्बी थी। बच्चे उसकी नाक का भी हमेशा मज़ाक़ उड़ाते: “अलीयोश की नाक कैसी ? खम्भे पर लटकी लौकी जैसी! ”

अलीयोश के गाँव में एक स्कूल था जहाँ वह पढ़ने जाता था। लेकिन वह पढ़ने-लिखने में फिसड्डी था। एक वजह यह भी थी कि पढ़ाई-लिखाई के लिए उसके पास समय नहीं था। उसका बड़ा भाई क़स्बे में एक व्यापारी के यहाँ काम करता था, इसलिए अलीयोश ने बहुत कम उम्र से अपने बाप के काम में हाथ बँटाना शुरू कर दिया था। अभी वह मुश्किल से छह साल का होगा कि वह अपनी छोटी बहन के साथ गाँव की चरागाह में अपनी गाएँ और भेड़ें चराने जाने लगा। कुछ और बड़ा हुआ तो दिन-रात घोड़ों की देखभाल में लगा रहता। बारह साल की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते उसने खेत जोतना और बैलगाड़ी हाँकना सीख लिया था। इतने सारे काम करने की शक्ति उसमें नहीं थी, लेकिन उसके व्यवहार में एक ख़ास बात थी— वह हमेशा ख़ुश रहता। जब बच्चे उस पर हँसते तो वह चुप हो जाता या ख़ुद भी हँसने लगता। उसका बाप डाँटता तो वह खड़ा होकर चुपचाप सुन लेता। उसको चिढ़ा या डांट चुकने के बाद जब लोग उसको अनदेखा करते तो वह मुस्कुराकर अपने काम पर लग जाता।

अलीयोश जब उन्नीस साल का हुआ तो उसका भाई सेना में भर्ती हो गया। उसके बाप ने व्यापारी के परिवार में उसके भाई की जगह उसे नौकरी पर लगवा दिया। उसे भाई के पुराने जूते और बाप का पुराना कोट और हैट पहनाकर क़स्बा लाया गया। अलीयोश इन कपड़ों में बहुत ख़ुश था। लेकिन व्यापारी उसके हुलिए से संतुष्ट नहीं था।

“मैंने सोचा था कि तुम सिमियोन जैसा कोई नवजवान लाओगे,” व्यापारी ने अलीयोश को गौर से  देखते हुए कहा, “और तुम गोद में खिलाने लायक़ लड़का लेकर आए हो!  भला यह किस काम का है?”

“अरे नहीं साहब, यह सब कुछ कर सकता है— यह घोड़े की ज़ीन कस सकता है, और गाड़ी जोतकर आपको कहीं भी ले जा सकता है। यह बहुत मन से काम करता है। देखने में सींक जैसा ज़रूर है, लेकिन तार जैसा मज़बूत है।

“यह तो इसे देखने से ही स्पष्ट है। खैर, जल्द ही पता चल जाएगा।”

“सबसे बड़ी बात यह कि बहुत सीधा है और काम से जी नहीं चुराता।”

इस तरह अलीयोश व्यापारी के यहाँ रहने लगा।

व्यापारी का परिवार बड़ा नहीं था— व्यापारी की बीवी, उसकी बूढ़ी माँ और तीन बच्चे। उसका बड़ा और शादीशुदा बेटा प्राइमरी स्कूल तक पढ़कर अपने पिता के धंधे से लग गया था। उसका दूसरा बेटा, जो पढ़ाकू क़िस्म का था, हाई स्कूल के बाद कुछ दिनों यूनिवर्सिटी में भी पढ़ चुका था, लेकिन उसे वहाँ से निकाल दिया गया था, और अब वह घर पर रहता था। एक बेटी भी थी जो हाई स्कूल में पढ़ती थी।

***

शुरू में अलीयोश उन्हें ज़रा भी नहीं अच्छा लगा। वह भुच्चड़ किसान था। बहुत फूहड़ ढंग से कपड़े पहनता था। उठने-बैठने का भी कोई सलीक़ा न था और गँवार देहातियों की तरह सबसे बेतकल्लुफ़ी से बात करता था। लेकिन जल्द ही लोग उसके आदी हो गए। वह अपने भाई से भी बेहतर नौकर था और हमेशा ख़ुश-मिज़ाजी से बात करता। जिस काम पर भी उसे लगाया जाता, उसे वह जल्दी और ख़ुशी-ख़ुशी करता। एक काम निपटाकर बिना रुके वह दूसरे काम में लग जाता।  उसके अपने घर की तरह व्यापारी के परिवार में भी सारा काम उसके ज़िम्मे कर दिया गया था। वह जितना ज़्यादा काम करता, उतना ही ज़्यादा उसको काम के बोझ से लाद दिया जाता। घर की मालकिन और उसकी बूढ़ी सास, बेटी, छोटा बेटा, यहाँ तक कि क्लर्क और बावर्चिन—सभी उसको इधर-उधर, यहाँ से वहाँ दौड़ाते रहते और उसे हर तरह के काम का आदेश देते रहते।

अलीयोश के कानों में सिर्फ़ इस क़िस्म की आवाज़ें आतीं–“ यार अलीयोश, ज़रा दौड़कर यह काम कर आना!” या “अलीयोश, इसे अभी ठीक करो,” या “क्या तुम भूल गए, अलीयोश? देखो अलीयोश, भूलना मत!” सुबह से शाम तक यही होता रहता और अलीयोश यहाँ से वहाँ दौड़ता, चीज़ें ठीक करता, हर चीज़ को देखता, कुछ भी न भूलता, हर काम निपटाता और ये सब करते हुए हर समय मुस्कुराता रहता।

जल्द ही उसके भाई के पुराने जूते घिस गए, और उसके मालिक ने इस बात पर उसको डांट पिलाई कि वह फटे जूतों में से पैर बाहर निकाले और चीथड़े पहने यहाँ-वहाँ आता जाता रहता है। उसने बाज़ार से उसको नया जूता ख़रीदने का हुक्म दिया। ये जूते वाक़ई नए थे और अलीयोश इन्हें पाकर बहुत ख़ुश हुआ। लेकिन फिर भी दिन भर की दौड़-धूप के बाद जब रात में उसके पैर बुरी तरह दुखने लगे, तो उसे अपने पैरों पर ग़ुस्सा आया। वह यह सोचकर डरा हुआ था कि जब उसका बाप उसकी मज़दूरी लेने क़स्बा आएगा और उसे पता चलेगा कि उसके मालिक ने जूते के दाम उसकी मज़दूरी से काट लिए हैं, तो उसे बहुत ग़ुस्सा आएगा।

सर्दियों में अलीयोश दिन निकलने से पहले उठ जाता, लकड़ी काटता, आँगन बुहारता, गायों और घोड़ों को दाना डालता और पानी पिलाता। बाद में चूल्हे जलाता, घर भर के लोगों के जूते और कोट साफ़ करता, समोवार को निकालकर चमकाता। फिर या तो क्लर्क उसे दुकान में बुलाकर सामान बाहर निकलवाता, या बावर्चिन उसको आटा गूंधने और बर्तन मांझने का आदेश देती। बाद में उसे क़स्बे भेजा जाता—कोई संदेश लेकर, या बेटी को स्कूल से घर लाने के लिए, या मिट्टी का तेल लाने के लिए, या मालिक की बूढ़ी माँ के लिए कुछ लाने के लिए। इधर से कोई कहता “कहाँ मटरगश्ती कर रहा था तू? निकम्मा कहीं का!” कोई उधर से कहता, “अरे नालायक, कहाँ मर गया था, इतनी देर क्यों हुई?” या आपस में वे एक दूसरे से कहते “तुम ख़ुद क्यों जा रहे हो? अलीयोश को भेज दो न। अलीयोश, अलीयोश!” और अलीयोश दौड़ता।

अलीयोश नाश्ता हमेशा काम करते हुए और दौड़ते हुए खाता और डिनर के लिए तो कभी समय पर पहुँचता ही नहीं था। सबके साथ खाना न खाने पर बावर्चिन उसे अक्सर डांटती, लेकिन उसके लिए दुखी भी होती, और हमेशा उसके लिए कुछ गर्म खाना रख देती।

त्योहारों से पहले और उनके दौरान अलीयोश का काम बढ़ जाता था। लेकिन त्योहारों में वह ज़्यादा ख़ुश रहता था क्योंकि तब हर कोई उसको बख्शिश देता था। बख्शिश ज़्यादा तो नहीं होती थी, बस आम तौर पर यही कोई साठ कोपेक। लेकिन यह उसका अपना पैसा था और वह इसे जैसे चाहता ख़र्च कर सकता था। अलीयोश को अपनी मज़दूरी से फूटी कौड़ी भी नहीं मिलती थी क्योंकि उसका बाप हमेशा आकर व्यापारी से उसकी सारी मज़दूरी ले जाता, और ऊपर से बड़े भाई के जूतों को इतनी जल्दी घिस डालने पर उसको उल्टी-सीधी सुनाता।

जब बख्शिश से उसके पास कुल दो रूबल जमा हो गए तो बावर्चिन के मशवरे पर उसने  अपने लिए एक लाल रंग का बुना हुआ स्वेटर ख़रीदा। उसने इसे पहली बार पहनकर ख़ुद को देखा तो ऐसा हैरान और ख़ुश हुआ कि देर तक रसोई में मुँह बाये खड़ा थूक गटकता रहा।

अलीयोश बहुत कम बोलता था और जब बोलता तो हमेशा किसी ज़रूरी बात के लिए। वह जल्दी-जल्दी और संक्षेप में बोलता। उससे कुछ करने को कहा जाता, या पूछा जाता कि क्या वह यह काम कर सकता है, तो वह तनिक भी झिझके बिना जवाब देता “हाँ कर सकता हूँ,” और तुरंत काम पर लग जाता।

अलीयोश को प्रार्थना करनी बिल्कुल नहीं आती थी। उसकी माँ ने उसे कुछ दुआएँ सिखाई थीं, लेकिन वह उन्हें बिल्कुल भूल चुका था। फिर भी वह हर सुबह और शाम को प्रार्थना करता था। बहुत सादगी से। बस अपने हाथों से सलीब (क्रॉस) बना लिया करता था।

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इस तरह वह लगभग डेढ़ साल तक रहा। लगभग दूसरे साल की समाप्ति पर उसको उसकी ज़िंदगी का सबसे अनोखा अनुभव हुआ। एक दिन उसे इल्हाम हुआ, और उसके लिए यह बहुत विस्मयकारी अनुभव था कि लोगों के बीच सम्बन्ध सिर्फ़ उनकी उपयोगिता के आधार पर नहीं होते। बल्कि लोगों के बीच एक दूसरा, बिल्कुल अलग प्रकार का और बेहद अनोखा सम्बन्ध भी होता है। यह वह सम्बन्ध नहीं जिसमें एक इंसान को दूसरे इंसान की ज़रुरत सिर्फ़ अपने जूते साफ़ करवाने, छोटे-मोटे काम पर भेजने और घोड़ों की काठी कसने के लिए होती है। बल्कि यह वह सम्बन्ध है जिसमें एक इंसान को दूसरे की ज़रुरत इस लिए होती है कि वह ख़ुद उस दूसरे इंसान की सेवा करना, उसका ख़याल रखना और उससे प्यार जताना चाहता है। अचानक अलीयोश को महसूस हुआ कि वह भी ऐसा ही इंसान है। उसे यह अनुभव बावर्चिन उस्तिन्जा द्वारा हुआ। उस्तिन्जा अनाथ थी, कमसिन थी और अलीयोश के जैसी मेहनती थी। वह अलीयोश से हमदर्दी महसूस करने लगी, और अलीयोश ने ज़िंदगी में पहली बार महसूस किया कि किसी दूसरे इंसान की ज़िन्दगी में उसकी ज़रुरत है—उसकी सेवाओं की नहीं, ख़ुद उसकी ज़रुरत। पहले जब उसकी माँ उसपर मेहरबान होती या उसके लिए दुखी होती तो वह इसे महसूस भी नहीं करता था क्योंकि उसको यह एक स्वाभाविक बात लगती थी। माँ का उसके लिए दुखी होना ऐसा ही था जैसे कि वह ख़ुद अपने लिए दुखी हो। लेकिन अचानक उसे एहसास हुआ कि उस्तिन्जा भी उसके लिए दुखी होती थी, हालाँकि वह बिल्कुल अजनबी थी। वह हमेशा उसके लिए बर्तन में मक्खन और काशा छोड़ देती और जब वह खाने बैठता तो वह भी उसके साथ बैठती और हथेली पर ठुड्डी रखे उसे देखा करती। जब वह उसको देखता तो वह मुस्कुरा देती। वह भी मुस्कुरा देता।

अलीयोश के लिए यह इतना नया और अजनबी अनुभव था कि पहले-पहल तो वह डर गया। उसने महसूस किया कि इससे उसके काम और उसकी सेवाओं में अड़चन पड़ती है। फिर भी वह बहुत ख़ुश था। जब उस्तिन्जा द्वारा रफ़ू किये हुए अपने पाजामे पर उसकी नज़र पड़ती तो वह सिर हिलाकर मुस्कुराता। काम करते समय या किसी काम के लिए बाहर जाते समय वह अक्सर उस्तिन्जा के बारे में सोचता रहता, और गर्मजोशी से बड़बड़ाता “उस्तिन्जा, कितनी प्यारी हो तुम!”

उस्तिन्जा से जितना हो सकता था उसकी मदद करती थी। वह भी उसकी मदद करता। उसने अलीयोश को अपने जीवन के बारे में सब कुछ बता दिया कि कैसे वह बहुत कम उम्र में अनाथ हो गई थी, कैसे उसकी बूढ़ी चाची ने उसे अपने घर में जगह दी थी, और फिर कैसे बाद में इसी चाची ने क़स्बे में उसे काम करने भेजा था, कैसे व्यापारी के बेटे ने उससे शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश की थी, और कैसे उसने उसका दिमाग ठीक किया था। उस्तिन्जा को बात करना बहुत पसंद था और अलीयोश को उसे सुनना बहुत ही भाता था। बहुत सी दूसरी बातों के अलावा उसने यह भी सुना था कि गाँव के जो किसान नवजवान क़स्बे के घरों में काम करने आते, वे अक्सर नौकरानियों से शादी कर लिया करते थे। एक बार उस्तिन्जा ने उससे पूछा कि क्या उसके माँ-बाप जल्दी कहीं उसकी शादी करने वाले हैं? उसने कहा, मुझे नहीं मालूम, और यह भी कहा कि मैं गाँव की किसी लड़की से शादी नहीं करना चाहता।

“तो क्या तुमने अपने लिए कोई लड़की देख रखी है?”

“हाँ, मैं तुम से शादी करूँगा। तुम करोगी न मुझसे शादी।”

“अरे कुल्हड़, मेरे प्यारे कुल्हड़, तुम बड़े चालू निकले। कितनी चालाकी से तुमने मेरा हाथ माँग लिया,” वह बोली और शोख़ी से उसकी पीठ पर करछुल से मारा।

पैनकेक दिवस पर अलीयोश का बूढ़ा बाप उसकी मज़दूरी लेने फिर क़स्बा आया। व्यापारी की बीवी के कानों तक यह बात पहुँच चुकी थी कि अलीयोश उस्तिन्जा से शादी करना चाहता है और वह इस बात से ख़ुश नहीं थी। “वह जल्दी ही गर्भवती हो जाएगी और फिर किसी काम की नहीं रह जाएगी!” उसने अपने पति से शिकायत की।

व्यापारी ने अलीयोश की मज़दूरी उसके बुड्ढे बाप को दी। “हमारा लड़का आपका काम ठीक से कर रहा है न?” बूढ़े ने पूछा।“ हम आपसे कहे थे कि वह बहुत सीधा है और आप जो कहेंगे वह करेगा।”

“सीधा हो या न हो, लेकिन उसने एक मूर्खता ज़रूर की है। उसके सिर पर बावर्चिन से शादी करने का भूत सवार हो गया है। लेकिन हम शादीशुदा लोगों को नौकरी पर नहीं रखते। यह हमारे धंधे के लिए ठीक नहीं है। उन्हें यहाँ से जाना पड़ेगा।”

“ओह, मूर्ख कहीं का! हम नहीं जानते थे कि इतना बड़ा मूर्ख है! भला यह सनक उसे सूझी कैसे!  लेकिन आप चिंता न करें। हम अभी उसके सिर से यह भूत उतारते हैं।”

बुड्ढा सीधे रसोई में गया, और मेज़ के पास बैठकर बेटे का इंतज़ार करने लगा। हमेशा की तरह अलीयोश किसी काम से बाहर गया था। लेकिन वह जल्द ही हाँफता हुआ वापस आया।

“हम समझते थे कि तुझमें कुछ बुद्धि है, लेकिन तेरी बुद्धि तो बिल्कुलै भ्रष्ट मालूम होती है। आखिर तेरे सिर में घुस क्या गया है।

“कुछ भी तो नहीं।”

“क्या मतलब है कुछ भी नहीं! सुना है तू ब्याह करना चाहता है। यह बात गाँठ बाँध ले कि जब समय होगा तब तेरा ब्याह हम खुद करेंगे, और जिससे हम चाहेंगे उससे ब्याह होगा, कस्बे की किसी रंडी से नहीं।

बुड्ढा देर तक इसी तरह बकता-झकता रहा। अलीयोश ख़ामोश खड़ा सुनता रहा और आहें भरता रहा।

उसका बाप चुप हुआ तो वह मुस्कुराया।

“ठीक है, हम ब्याह नहीं करेंगे” उसने कहा।

“यही बेहतर होगा,” बूढ़े ने जाते-जाते रुखाई से कहा।

उस्तिन्जा दरवाज़े के पीछे खड़ी बुड्ढे की बातें सुन रही थी। उसके जाने के बाद जब अलीयोश उस्तिन्जा के साथ अकेले रह गया, तो उसने कहा: “हमारा ब्याह नहीं हो सकता। तुमने सुना नहीं? मेरा बाप बहुत ग़ुस्से में था। हमें ब्याह नहीं करने देगा।”

उस्तिन्जा अपने एप्रन में मुँह छिपाकर आहिस्ता-आहिस्ता रोने लगी।

अलीयोश ने मुँह से “च, च” की आवाज़ निकालते हुए कहा: “हम भला उसकी बात मानने से कैसे मना कर सकते हैं? देखो, हमें ब्याह के बारे में भूल जाना चाहिए।”

शाम को जब व्यापारी की बीवी ने अलीयोशा को शटर बंद करने के लिए बुलाया, तो पूछा: “तो क्या तुम अपने बाप की बात मान लोगे और शादी की सनक छोड़ दोगे।”

“हाँ, हाँ ज़रूर। हम ब्याह का विचार छोड़ चुके हैं।” अलीयोश ने जल्दी से कहा, फिर मुस्कुराया और फिर तुरंत रोने लगा।

***

उस दिन से उसने उस्तिन्जा से कभी शादी की बात नहीं की और पहले की तरह रहने लगा।

लेंट के चालीसे के दौरान एक सुबह क्लर्क ने अलीयोश को छत से बर्फ़ हटाने को कहा। वह  छत पर चढ़ा, फावड़े से बर्फ़ साफ़ की, और नाली के पास जमी बर्फ़ को तोड़ने लगा। तभी उसका पैर फिसला और वह फावड़ा लिए सिर के बल गिर पड़ा। दुर्भाग्य से वह बर्फ़ में गिरने के बजाय लोहे की रेलिंग वाले फाटक पर गिरा। उस्तिन्जा दौड़ती हुई उसके पास आई। पीछे-पीछे व्यापारी की बेटी भी  पहुँची।

“तुम्हें चोट तो नहीं आई, अलीयोश?”

“हाँ आई तो, लेकिन कोई बात नहीं। कोई बात नहीं।”

उसने उठने की कोशिश कि तो उठ न सका, और मुस्कुराने लगा। दूसरे लोग भी पहुँच गए और उसे उठाकर व्यापारी के लॉज में ले गए। अस्पताल से एक कम्पाउण्डर ने आकर उसकी जाँच की और पूछा क्या कहीं दर्द है।”

“पूरे शरीर में दर्द है,” उसने जवाब दिया। “लेकिन कोई बात नहीं। कोई बात नहीं। मुझे चिंता है कि कहीं मालिक गुस्सा न हों”। मेरे बाप को खबर कर देनी चाहिए ।”

अलीयोश पूरे दो दिन तक बिस्तर में पड़ा रहा। फिर तीसरे दिन उसकी हालत बिगड़ गई तो  पादरी को बुलवाया गया।

“तुम मरोगे तो नहीं, न?” उस्तिन्जा ने पूछा।

“अरे, एक दिन तो हम सबको मरना है। कभी-न-कभी वह दिन तो आना ही था।” वह हमेशा की तरह जल्दी-जल्दी बोला। “प्यारी उस्तिन्जा, तुम्हारा बहुत शुक्रिया! मेरे लिए दुखी होने के लिए। देखो, अच्छा ही हुआ कि उन्होंने हमारी शादी न होने दी! इससे हमारे जीवन में कुछ अच्छा थोड़ी हो जाता? अभी सब अच्छा है।”

उसने पादरी के साथ प्रार्थना की, लेकिन सिर्फ़ अपने हाथों से और अपने हृदय से। अपने हृदय में उसने महसूस किया कि अगर वह यहाँ अच्छा रहा है, अगर उसने यहाँ सबका कहा माना है और किसी का दिल नहीं दुखाया है, तो वहाँ भी सब अच्छा ही होगा।

वह ज़्यादा नहीं बोला; उसने सिर्फ़ कुछ पीने को माँगा और विस्मय से मुस्कुराया। फिर किसी बात पर विस्मयमग्न दिखा। फिर अंगड़ाई ली, और मर गया।

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