( विषाणु विज्ञानी गगनदीप कांग से आर. प्रसाद की बातचीत पर आधारित यह लेख ‘द हिन्दू’ से साभार लिया गया है। ‘द हिन्दू’ में यह लेख लेख 8 जनवरी को प्रकाशित हुआ था। लेख का हिंदी अनुवाद दिनेश अस्थाना ने किया है )
नोवेल कोरोनावायरस के विस्फोट के एक साल हो चुके हैं और अबतक इसमें 18 लाख जानें जा चुकी हैं। इससे बचाव के निमित्त आपातकालीन प्रयोग के लिये विश्वभर के वैज्ञानिक, उत्पादक और औषधि नियंत्रक वैक्सीन के विकास, परीक्षण एवं अनुमति की समय सीमा जल्द से जल्द प्राप्त कर लेने की दौड़ में शामिल हैं। फाइजर, माॅडर्ना और एस्ट्राजेनिका की तीन वैक्सीन को सुरक्षित और पूर्णतः परीक्षित घोषित करके उनके इस्तेमाल को मंजूरी दी जा चुकी है।
भारत में हैदराबाद की भारत बायोटेक भी कोविड-19 की वैक्सीन, कोवैक्सीन के विकास एवं परीक्षण में जी-जान से जुटी है और वह समय-समय पर अभिप्रमाणित तरीके से (इनएक्टिवेटेड वैक्सीन प्लेटफाॅर्म पर) काम कर रही है परन्तु भारतीय औषधि नियंत्रक द्वारा इस वैक्सीन के प्रभावोें को लेकर आये किसी आंकड़े के बिना ही जल्दीबाजी में इसके प्रयोग की अनुमति दिया जाना स्वदेश में निर्मित जीवन-रक्षक औषधि की चमक को फीका कर देता है। हमने वैक्सीन अनुसंधान के क्षेत्र में गहन अनुभव रखनेवाली विषाणु विज्ञानी क्रिश्चिन मेडिकल काॅलेज की माइक्रोबाइलोजी की प्रोफेसर गगनदीप कांग से इस वैक्सीन के प्रभावोें को लेकर आये किसी आंकड़े के बिना ही जल्दीबाजी में इसके प्रयोग की अनुमति दिये जाने पर बात की।
डाॅ0 कांग का कहना है, ‘भारत बायोटेक ने इसका पशुओं पर अध्ययन किया है और उससे प्राप्त आंकड़े उत्साहवर्धक हैं, पर इससे यह नहीं मान लेना चाहिये कि वे मनुष्यों के लिये भी उतने ही प्रभावी हैं। भारत बायोटेक सुरक्षा और इम्यून उत्पादकता को लेकर फ़ेज़-1 और फे़ज़-2 के प्रतिभागियों के निरंतर सम्पर्क में है और उसके पास कुछ आंकड़े हो भी सकते हैं लेकिन वही काफी नहीं हैं। कम्पनी को वास्तव में फे़ज़-3 परीक्षण के आंकड़ों की भी आवश्यकता होगी और इसके लिये वह प्रतिभागी जुटाने, टीकाकरण करने और आंकड़े जमा करने की प्रक्रिया में है। पर अनुमति प्राप्त करने के लिये आवश्यक प्राथमिक आंकड़े प्राप्त करने में कुछ हफ्ते या महीने लग सकते हैं।
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को अनुमति दिये जाने पूरा श्रेय वैक्सीन निर्माताओं पर औषधि नियंत्रक की देख-रेख को जाता है। सितम्बर 2020 के परामर्श में स्पष्ट कहा गया है कि 50 प्रतिशत भी इस वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग की अनुमति देने के लिये स्वीकार्य होगी। परन्तु लगता है कि हमारी विशेषज्ञ समिति ने भी रूसी और चीनी नियंत्रकों का अनुसरण करते हुये अनुमति के लिये प्रभावोत्पादकता आंकड़ों की जरूरत को दरकिनार कर दिया है।’
इन्तज़ार करना ही बुद्धिमानी है
वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता आंकड़ों के बिना भी अनुमति दिये जाने की फौरी जरूरत तभी होती जब कोविड-19 संक्रमित लोगों में मृत्युदर बहुत अधिक होने से यह भयावह हो गयी होती जैसा कि इबोला या निपाह के मामले में था। उनका कहना है कि ‘‘ऐसा रोग जिसमें मृत्यु दर बहुत कम है और पूरी आबादी को वैक्सीन लगाये जाने की रणनीति बनायी जा रही हो, अधिक प्रभावी वैक्सीन के निर्माण तक इन्तज़ार करने में ही बुद्धिमानी है, बनिस्बत इसके कि ऐसी वैक्सीन पूरी आबादी को दे दिया जाय जो हो सकता है अप्रभावी हो।’’
अनुमति देते हुये नियंत्रक ने कहा था कि इस वैक्सीन का प्रयोग ‘ चिकित्सकीय परीक्षण की भाँति (क्लिनिकल ट्रायल मोड में)’ किया जायगा, मेरे द्वारा दी गयी किसी वैक्सीन की अनुमति में पहले कभी भी ऐसे जुमले का प्रयोग नहीं किया गया। डाॅ0 कांग कहती हैं, ‘‘मुझे वास्तव में यह समझ में नहीं आता कि अनुमति दे देने के बाद ‘चिकित्सकीय परीक्षण की भाँति’ जैसे जुमले का क्या मतलब रह जाता है। मुझे नहीं समझ में आता कि वैक्सीन लगा देने के बाद सहमति लेने की योजना क्या है और मुझे यह भी नहीं पता कि यदि इसके कोई प्रतिकूल प्रभाव होते हैं तो इन अध्ययनों और चिकित्सकीय व्ययों का जिम्मा किसका होगा, कम्पनी का या सरकार का। यदि यह कम्पनी के माथे आता है तो यह भी साफ नहीं है कि अपने अध्ययन को हजारों, लाखों या करोड़ों के माध्यम से परीक्षित कराने के बढ़े हुये खर्चे से कम्पनी को अपनी आधिकारिकता का लक्ष्य पाने में कितना फायदा मिलेगा।’’
डाॅ0 कांग आगे कहती हैं कि ‘‘कम्पनी का यह दावा कि प्रभावोत्पादकता के आंकड़ों के अभाव में भी कोवैक्सीन इस वायरस के दूसरे रूपों पर भी प्रभावी होगा, इस बात पर आधारित होगा वायरस का प्रयोग करनेवाले पूरे क्षेत्र को ही अक्रिय बना दिया जाय, इससे सुरक्षा में वृद्धि हो जायेगी। इसलिये यदि कोवैक्सीन किसी वायरस के किसी पुराने प्रतिरूप पर आधारित है, तो क्या यह कारगर होगा? इसे जानने के लिय हमें सिर्फ मानवों और प्रयोगशालाओं के नतीजों का इन्तजार करना होगा।’’
आत्मनिर्भरता पर मोदी के बहुत ज्यादा जोर देने से ही यह निष्कर्ष निकलता है कि यही वह वज़ह थी जिसके चलते नियंत्रक को बिना किसी प्रभावोत्पदकता आंकड़े के ही कोवैक्सीन के प्रयोग की अनुमति देनी पड़ी। डाॅ0 कांग का कहना है कि ‘‘ कोवैक्सीन, कोवीशील्ड और दूसरे कई वैक्सीन भारत में ही बने हैं और हमें अपनी वैक्सीन कम्पनियों पर गर्व करना चाहिये। पर अगर यह सवाल किया जाय कि- क्या भारतीय विज्ञान ने इन वैक्सीनों को परीक्षण में उतारा है और क्या भारतीय कम्पनियों ने इसे विकसित किया है, तो पहले हिस्से के कई जवाब हो सकते हैं पर दूसरे हिस्से का हर हाल में ‘ हाँ ’ ही होगा। कोवैक्सीन इस वायरस के भारतीय स्वरूप पर आधारित है और भारत बायोटेक ने दूसरे कई वैक्सीनों में किये गये अनुभवों द्वारा सिद्ध तकनीक से इसे विकसित किया है परन्तु इसमें उन सहायक अवयवों का भी प्रयोग किया गया है जिन्हें अमेरिका में विकसित किया गया था। कोवीशील्ड में वायरस की गति नियंत्रक अवयव का निर्माण एवं विकास ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा किया गया और इसे एस्ट्राजेनेका के माध्यम से भारत लाया गया। इसलिये ये दोनों ही आत्मनिर्भरता के उदाहरण तो हैं परन्तु इनमें एक अभारतीय अवयव भी है- और मेरे हिसाब से यह अच्छा ही है।’’
वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट
डाॅ0 कांग सावधान करते हुये कहती हैं कि ‘‘ बिना किसी प्रभावोत्पदकता आंकड़े के ही कोवैक्सीन के प्रयोग की अनुमति जिस अपारदर्शी तरीके से दी गयी उसके चलते वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट एक वास्तविक ख़तरा है। चाहे वैक्सीन के विकास में किसी चरण की अनदेखी नहीं भी की गयी हो पर हमारे पास भ्रामक जानकारियाँ तो हैं ही और चिन्ता का कोई भी आधार होने पर किसी बड़ी साज़िश की गंध महसूस किया जाना स्वाभाविक है। हममें वैक्सीन को लेकर वैसी हिचकिचाहट नहीं है जैसी कि पश्चिम में है लेकिन हमारे सामने बढ़ती समस्यायें हैं। पर हम अपने तईं इस पर आँखें बन्द कर लेते हैं। वैक्सीनों के प्रति घटता भरोसा मृत्युदर कम करने और इसके प्रसार को रोकने के हमारे सार्वजनिक स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त करने में रोड़ा अटका सकता है।’’
यह जानते हुये कि इनएक्टिवेटेड वैक्सीन प्लेटफाॅर्म काल-प्रमाणित है और इस प्लेटफाॅर्म का प्रयोग करके भारत बायोटेक ने पहले भी कई वैक्सीन विकसित किये हैं, इस वैक्सीन के पशुओं पर परीक्षण यह सुनिश्चित करते हैं कि यह सुरक्षित भी है, क्या प्रभावोत्पादकता आंकड़ों के अभाव में भी डाॅ0 कांग यह वैक्सीन लेना चाहेंगी? इस सवाल के जवाब में डाॅ0 कांग का कहना है कि, ‘‘ कोवैक्सीन के परीक्षण के लिये स्वयं को प्रस्तुत करने में मुझे कोई समस्या नहीं है क्योंकि मेरे ख्याल से इसमें एक अच्छी वैक्सीन होने की पूरी सम्भावना है पर दुर्भाग्यवश सी0वी0सी0 वेल्लोर इसका केन्द्र नहीं है। मुझे एक स्वयंसेविका होने की पूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा, तभी मैं यह वैक्सीन या प्रायोगिक औषधि ले पाऊँगी और वह मेरे लिये सुखद होगा क्योंकि यह वैज्ञानिक आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया में मेरा योगदान होगा और इसके विकास में सहायक होगा। परन्तु यदि मुझे यह वैक्सीन ‘पूरी सावधानी के साथ’ ‘चिकित्सकीय परीक्षण मोड’ में ‘प्रतिबन्धित प्रयोग’ के रूप में प्रभावोत्पादकता आंकड़ों के बिना ही दी जाय तो मैं इसे लेने से इन्कार कर दूँगी क्योंकि मेरे लिये इसका कोई मतलब नहीं होगा। एक बार चिकित्सकीय प्रभावोत्पादकता आंकड़े मिल जाँय और नियंत्रक उनकी परीक्षा कर लें तो मुझे यह वैक्सीन लेने में कोई समस्या नहीं होगी।’’