समकालीन जनमत
तस्वीर-एनडीटीवी से साभार
जनमत

एक सैनिक की मौत एक नागरिक की ही मौत है

शशांक मुकुट शेखर

“हमारे बहादुर सैनिकों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी.”- पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद सत्ताधारी सहित देश के तमाम नेताओं ने यह वाक्य जरूर कहा है. देशभक्त नेता हर आतंकी हमले के बाद यह वाक्य जरूर कहते हैं. न्यूज चैनलों वाले तड़क-भड़क स्टूडियो में बैठकर देश की सैनिकों की शहादत का बदला लेने के लिए स्टूडियो से ही युद्ध का ऐलान कर रहे होते हैं.
मगर सैनिकों पर ऐसे हमले क्यों हो जाते हैं ? 2-4 दिन माहौल गरम रहने के बाद अगली बार तक के बहसों में सैनिकों की सुरक्षा पर कितनी बात होती है ? न्यूज़ वाले जवाबदारों से कितना सवाल पूछते हैं ? कितने पत्रकारों ने (अपवादों को छोड़कर) सरकार से ऐसे हमलों पर जबाब माँगकर सरकार को कटघरे में खड़ा किया है ? हां सोशल मीडिया आने से सरकार को ज्यादा कटघरे में खड़ा किया जा रहा है. सवाल पूछे जा रहे हैं ?
इसी न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि अभी कल ही पाकिस्तान पर परमाणु हमला कर एक-एक सैनिकों की मौत का चुन-चुन कर बदला लिया जाएगा. पाकिस्तान को बर्बाद कर दिया जाएगा/जाना चाहिए. इस वक़्त देशभक्ति को उफान पर लाकर उसे भुनाने की जोर-शोर से कोशिश की जाती है. मगर युद्ध के लिए बस तैयार हो रहे नेताओं और पत्रकारों और सरकार के प्रवक्ताओं और देशभक्तों को सैनिकों की मौत पर संवेदनशीलता होती भी है क्या ?
सर्जिकल स्ट्राइक पर भी बात हो रही है. ‘घर में घुसकर मारेंगे’ के जोशीले नारों से माहौल को गरमाया जा रहा है. पाकिस्तान के साथ कश्मीर के लोगों को भी उड़ा देने का का जोश भरा जा रहा है. परंतु देशभक्त सरकार के पास सिर्फ पैलेट गन चलवाने औऱ युद्ध की स्थिति बनाने वाले भाषणों से अशांति और डर फैलाने में महारथ हासिल है. क्या पाकिस्तान या दूसरे देश(परमाणु हथियार संपन्न या कोई और देश) से युद्ध करने पर कोई राजनेता मरेगा ? क्या प्रधानमंत्री की छाती अपने देश की रक्षा करते हुए गोली खाएगी ? क्या पाकिस्तान को उड़ा देने की बात करने वाले देशभक्त उस बम के साथ उड़कर बदला लेने पहुंचेंगे ?
सरकार सेना को देशभक्ति साबित कर देश-दुनिया में भड़काऊ माहौल बनाने के किए इस्तेमाल भर करती है. देशभक्त जनता सेना को अपनी रक्षा से ज्यादा दुश्मनों को मारने और उसमें खुद मर जाने के लिए इस्तेमाल में आने वाली जमात समझती है. उन्हें इंसान के बजाय बदला लेने वाले कातिलों और हत्यारों की एक्सपर्ट फौज के रूप में पेश किया जाता है. किसी की हत्या करने से देशभक्ति कैसे साबित की जा सकती है ? सैनिक भी देश का एक नागरिक ही है. अपने देश के एक नागरिक द्वारा दूसरे देश के एक नागरिक को मारने पर कैसे खुश हुआ जा सकता है. आखिरकार मारे सैनिक ही जाते हैं, देश का एक नागरिक ही. सैनिक की मौत एक नागरिक की ही मौत है.
सरकारों द्वारा सेना को राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय हित साधने के लिए इस्तेमाल कर हत्याओं का दौर खत्म किया जाना चाहिए. इस तरह की तमाम सरकारों को बर्खास्त कर देना चाहिए. हथियारों का उपयोग मनुष्य और समाज के अधिकारों की प्राप्ति में बाधक ताकतों के खिलाफ होना चाहिए.ऐसी सरकारों के खिलाफ होना चाहिए. इन नेताओं के खिलाफ होना चाहिए. और हथियार जनता उठाए, देशभक्ति के नाम पर और राजनीतिक हित के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली वर्दीधारी सेना नहीं.

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