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बेगूसराय का चुनाव सबसे अलग है

इस चुनाव में पूरे देश के संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र बिहार का बेगूसराय है। जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और भाकपा के प्रत्याशी कन्हैया कुमार ने चुनाव के वास्तविक मुद्दे सबके सामने खड़े कर दिए हैं। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि वर्तमान भारत को एक साथ गांधी, भगत सिंह, अंबेडकर और लेनिन की जरूरत है। भारत की आत्मा को बचाए रखने का यह चुनाव है।

बेगूसराय का चुनाव एक असामान्य और साधारण चुनाव है। इतिहास के निर्माण के लिए, स्त्री, दलित, अल्पसंख्यक, किसान, मजदूर, बेरोजगार और युवाओं के भविष्य निर्माण के लिए है। कन्हैया कुमार अब एक प्रतीक हैं – संमता, समानता, बदलाव और मुखर विरोध का प्रतीक।

यह चुनाव बेगूसराय, बिहार और भारत सब के लिए महत्वपूर्ण है। यह भाषणबाजी के विरुद्ध विचार की राजनीति, जाति और मजहब के खिलाफ भाईचारे व मेल-मिलाप और गंगा जमुनी संस्कृति, झूठ के खिलाफ सत्य, पूंजीवाद के खिलाफ समाजवाद, कॉरर्पोरेट के खिलाफ सामान्य जन, धर्मधारा के खिलाफ विचारधारा, अनैतिकता के खिलाफ नैतिकता, अंध आस्था के खिलाफ तर्क और विवेक की प्रतिष्ठा और पुरानी भ्रष्ट राजनीति के खिलाफ युवा और विश्वसनीय राजनीति का चुनाव है।

कन्हैया कुमार ने अपने अकाट्य तर्कों, साक्ष्यों के साथ पिछले कुछ वर्षों में लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिस तरह कटघरे में खड़ा किया उतना किसी और ने नहीं। बेगूसराय का चुनाव राजनीतिक मूल्यों का है। यह आदर्श और यथार्थ के बीच का है। युवा और वृद्ध के बीच है। कन्हैया के पास धनबल बाहुबल नहीं है। वहां विचार बल, मूल्य बल और नैतिक बल है।

बेगूसराय का चुनावी संघर्ष त्रिकोणीय है। 66 वर्षीय भाजपा के गिरिराज सिंह अपने सांप्रदायिक और मुस्लिम विरोधी बयानों से जाने जाते हैं। हिंदुओं को अधिक बच्चे पैदा करने की सलाह और बहुतों को पाकिस्तान भेजने के उनके ‘रिमार्क’ समाप्त नहीं हुए हैं। अभी का उनका कथन है – अगर कब्र के लिए तीन हाथ जमीन चाहिए तो वंदे मातरम गाना होगा।

बेगूसराय में उनका प्रवेश नवादा के बाद हुआ है जहां से वे 2014 में सांसद बने थे और केंद्र में मंत्री भी बने। वे 2005 से 2013 तक बिहार में मंत्रिमंडल में भी थे। अपने विवादास्पद बयानों से अधिक चर्चित रहे है। राजद के प्रत्याशी तनवीर हसन 70 के दशक से राजनीति में सक्रिय हैं। पहले छात्र राजनीति में, बाद में मुख्यधारा की राजनीत में। लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी के छात्र संगठन समाजवादी युवजन सभा से आरंभ में जुड़े रहे और फर्नांडीज मधुलिमए, मधु दंडवत के मार्ग पर अग्रसर हुए। आपातकाल में जेल गए। समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी, लोक दल, जनता दल से राजद तक उनकी यात्रा रही है। मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा से अर्थशास्त्र में उन्होंने एम ए किया। बाद में पीएचडी की। उनकी पीएचडी ग्रामीण वित्त प्रबंधन (रूरल फाइनेंस) पर है। कर्पूरी ठाकुर के साथ रहे हैं। बेगूसराय के लखमीनिया में जन्मे तनवीर हसन को यादव और मुस्लिम के समर्थन की उम्मीद है।

इन दोनों उम्मीदवारों की तुलना में कन्हैया कुमार अनेक अर्थों में विशिष्ट है। पिता जयशंकर सिंह के पास मात्र एक एकड़ कृषि की जमीन है। मां मीना देवी आंगनवाड़ी सेविका हैं। छात्र जीवन से कन्हैया का जुड़ाव इप्टा से रहा है। कॉमर्स कॉलेज पटना से वे भूगोल में स्नातक हैं। प्रथम श्रेणी में नालंदा खुला विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में उन्होंने समाजशास्त्र में एम ए. किया है। जेएनयू में 2011 की प्रवेश परीक्षा में वह प्रथम रहे थे। 2015 में वहां वे छात्र संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।

जेएनयू के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन में अफ्रीकी अध्ययन से उन्होंने ‘द प्रोसेस आफ डी कॉलोनाइजेशन एंड सोशल ट्रांसफॉरमेशन इन साउथ अफ्रीका – 1994-2015’ पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। अब वे भाकपा की राष्ट्रीय परिषद के 125 सदस्यों में है। फरवरी 2016 के बाद में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आए। उन पर आरोप मढ़े गए। राष्ट्रद्रोह का आरोप लगा। भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए और 120 बी के अधीन आरोप लगे। देश को टुकड़े टुकड़े करने का आरोप भी लगाया गया। जीभ काटने से गोली मारने तक की उन्हें धमकी दी गई। उन पर चार्जसीट फाइल नहीं की गई।

भारत के किसी भी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में बौद्धिकों, पत्रकारों, सक्रियतावादियों, संस्कृतिकर्मियों, फिल्म से जुड़े महत्वपूर्ण व्यक्तियों की उपस्थिति बेगूसराय की तरह नहीं रही है। जाति और धर्म की बेड़ियां बेगूसराय में टूट रही हैं। यहां बदलाव की हवा बह रही है। कन्हैया सामान्य परिवार के हैं। तनवीर हसन और गिरिराज सिंह की तरह साधन संपन्न नहीं है। उन्होंने चुनाव का स्वरूप और चरित्र बदल डाला है। चुनाव में स्वेच्छा से लोग पैसे दे रहे हैं। एक प्रकार से जनता चुनाव लड़ रही है। ऐसा दृश्य किसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में नहीं है। बेगूसराय का चुनाव लोकतंत्र और संविधान बचाने के लिए है।

पटना से 125 किलोमीटर पूरब के संसदीय क्षेत्र में पहली बार भाजपा 2014 में जीती। भोला सिंह सांसद बने जिनका निधन 20 अक्टूबर 2018 को हो गया। पहले वे कांग्रेस में थे। बाद में भाजपा में आए। उन्होंने 2014 के चुनाव में 39.73 मत प्राप्त हुए थे। तनवीर हसन 34.32 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर रहे और भाकपा के उम्मीदवार राजेंद्र प्रसाद को 17.8 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। कन्हैया कुमार को सभी वाम दलों का समर्थन है। 2014 में यहां 60.60 प्रतिशत मतदान हुआ था।

कन्हैया की लोकप्रियता के सामने गिरिराज सिंह और तनवीर हसन कहीं नहीं टिकते। बेगूसराय में कन्हैया के चुनाव प्रचार में बड़ी-बड़ी हस्तियां आई। जावेद अख्तर, शबाना आजमी, स्वरा भास्कर, जिग्नेश मेवाड़ी, योगेंद्र यादव आदि। देश का सारा ध्यान बेगूसराय पर इसलिए है कि यहां से भारतीय राजनीति का एक नया रूप प्रस्तुत होगा। कन्हैया मुद्दों की बात करते हैं। उनका भाषण कन्विंसिंग है।

मोदी, भाजपा और संघ जिस हिंदू मानस के निर्माण में सक्रिय हैं, उससे सर्वथा अलग यह युवक एक बौद्धिक, तार्किक और चिंतनशील मानस के निर्माण में लगा है। वे सवाल करने को प्रेरित उत्साहित करते हैं। उनकी लड़ाई ध्रवीकरण की राजनीति के विरुद्ध है। इस समय मोदी से पूरी निर्भीकता के साथ डटकर सवाल करने वाला केवल कन्हैया कुमार है। राहुल गांधी का स्थान इसके बाद है। कन्हैया ने चुनाव का रंग बदल दिया है।

तनवीर हसन 40 साल से राजनीति में है। बिहार में महागठबंधन में कन्हैया कुमार को अपना प्रत्याशी नहीं बनाया। भाजपा के पास आरोप है। कन्हैया के पास सवाल है। वह एक ‘फिनोमेना’ की तरह है। उनसे इंटरव्यू लेने कौन नहीं गया। अंग्रेजी पत्रकार गए। रवीश कुमार गए। आरफा आजमा शेरवानी गई। कन्हैया में पारदर्शिता है। जिसने चुनाव में आर्थिक सहयोग किया है, वह सब ऑनलाइन है। यह चुनाव झूठ के खिलाफ सच, अन्याय के खिलाफ न्याय और वादाखिलाफी के विरुद्ध है। यहां जनहित, लोकहित का प्रश्न यहां प्रमुख है।

बेगूसराय लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत 7 विधानसभा क्षेत्र हैं – चेरिया बरियारपुर, बछवाड़ा, तेघड़ा, मटिहानी, साहबपुर कमाल, बेगूसराय और बखरी। तनवीर हसन बेगूसराय के लक्ष्मीनिया के हैं। गिरिराज सिंह बेगूसराय के नहीं हैं। वे लखीसराय जिला के बड़हिया के हैं और कन्हैया कुमार बीहट के। कन्हैया कुमार के चुनाव में नए ढ़ंग के नारे हैं – नेता नहीं बेटा है, नया जमाना आएगा-कमाने वाला खाएगा-लूटने वाला जाएगा। देश में किसी भी उम्मीदवार को ऐसा बौद्धिक समर्थन नहीं मिला है।

बेगूसराय का बेटा कैसा हो, कन्हैया कुमार जैसा हो – जैसे नारे ने बेगूसराय को एक नया रंग प्रदान किया है। बेगूसराय को एक समय लेनिनग्राड कहा जाता था। 40 वर्ष तक तेघड़ा विधानसभा क्षेत्र से वामपंथी प्रत्याशी ही जीतते रहे। चंद्रशेखर सिंह पहले विधायक वामपंथी 1962 में बने। भाकपा के योगेंद्र शर्मा 1967 में सांसद बने।

1952 से अब तक बेगूसराय से कांग्रेस 8 बार – 1952, 1964, 1962, 1971, 1980, 1984, 1991 और 1998 जीती है। जदयू दो बार – 2004 व 2009। राजद एक बार, 1999 में। स्वतंत्र एक बार 1996 में। जनता पार्टी एक बार 1977 में। जनता दल एक बार 1989 में। भाकपा एक बार 1967 और भाजपा एक बार 2014 जीती है। इस बार की त्रिकोणीय संघर्ष में राजद, भाकपा और भाजपा के उम्मीदवार हैं। बड़ी बात यह है कि जो भी जीतेगा वह दूसरी बार इस क्षेत्र में जीतेगा।

1967 में भाजपा के योगेंद्र शर्मा बेगूसराय से विजई रहे थे। 4 वर्ष के भीतर ही कन्हैया कुमार ने राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी पहचान कायम की है। कन्हैया की जीत से बेगूसराय से एक नई साफ-सुथरी राजनीति की शुरुआत होगी। चुनावी समीकरण और अंकगणित के भी बदलने की संभावना है। इस संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक मतदाता भूमिहार हैं। यहां से 9 बार भूमिहार प्रत्याशी जीते है। कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह की जाति एक है पर कन्हैया का चुनाव जाति और धर्म की राजनीति के विरुद्ध है।

दिनकर ने ‘रश्मि रथी’ में कर्ण से कहलाया है कि जाति की बात पाखंडी करते हैं – ‘जाति जाति रटते, जिनकी पूंजी केवल पाखंड’। प्रत्येक जाति में सबका मिजाज एक समान नहीं होता। उन्नीसवीं सदी के अन्तिम वर्षों, 1896 के भुवनेश्वर मिश्र के उपन्यास ‘बलवंत भूमिहार’ के दो जमींदार बलवंत सिंह और रनपाल सिंह का स्वभाव और मिजाज समान नहीं है। बलवंत सिंह कहीं अधिक उदार और स्वाभिमानी हैं। बेगूसराय में मुस्लिम मतदाता ढाई लाख, यादव 80000 और अति पिछड़ी जाति एक लाख है।

बेगूसराय के चुनाव में जातिगत समीकरण टूटेंगे और यह पूरे देश की राजनीति के लिए एक बड़ी बात होगी। स्वस्थ राजनीति का श्रीगणेश बेगूसराय के मतदाताओं पर है। बेगूसराय में चुनाव 29 अप्रैल को है और यहां से भारतीय राजनीति के चरित्र के बदलने की संभावना है। भारतीय राजनीति में कन्हैया ने निर्भीकता, सत्यता और पारदर्शिता को स्थापित करने की कोशिश की है। बेगूसराय के मतदाताओं का महत्व इसलिए है कि वे इस चुनाव में राजनीतिक मूल्यों का चयन करेंगे।

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