समकालीन जनमत

Tag : समकालीन हिंदी कविता

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चित्रा पँवार की कविताएँ कातर स्त्री मन से बूंद-बूंद रिसती ध्वनियाँ हैं

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अणु शक्ति सिंह मैं चित्रा पँवार की कविताएँ पढ़ रही थी। उन कविताओं को पढ़ते हुए कई बार खयाल आया कि इन कविताओं का एक...
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उज़्मा सरवत की कविताएँ व्यवस्था द्वारा निर्मित यथार्थ का आईना हैं।

मेहजबीं उज़्मा सरवत की कविताएँ समकालीन समय की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक परिस्थितियों और पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा निर्मित यथार्थ का आईना हैं। बहुत नपे-तुले शब्दों में...
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मनीष यादव की कविताएँ स्त्रियों के पक्ष में एक कवि का आर्तनाद हैं

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आदित्य शुक्ल मनीष यादव की कविताएँ भारतीय समाज में स्त्रियों के पक्ष को खोलती हुई जादू रचती हैं। ये कविताएँ स्त्रियों के पक्ष में मुनादी...
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हिमांशु जमदग्नि की कविताएँ जीवन के विस्तृत आयामों को स्पर्श करती हैं।

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देवेश पथ सारिया युवा कवि हिमांशु जमदग्नि एक गाँव से आते हैं और एक महानगर में पढ़ाई करते हैं। उनकी कविताओं का फलक कम उम्र...
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मधु सक्सेना की कविताएँ प्रतिकूलता का डटकर सामना करती हैं।

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ख़ुदेजा ख़ान मधु सक्सेना की कविताओं का मूल स्वर भले ही स्त्री केंद्रित है तथापि इसमें सामाजिक संदर्भों की एक वृहत्तर शृंखला दिखलाई पड़ती है...
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ज्ञान प्रकाश की कविताएँ बड़े मार्मिक ढंग से हमारी सुप्त अनुभूतियों को झकझोरती हैं।

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शालिनी सिंह एक कवि होना इतना भर तो नहीं कि उसकी रचनाएँ हर महत्वपूर्ण जगह प्रकाशित होने की लालसा से भरी हों.. न ही मानवीय...
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पवन करण की कविताएँ साहस एवं सजगता का प्रतीक हैं

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अंकिता रासुरी पवन करण की कविताओं में मौजूदा समाज एवं उसकी विडंबनाएँ मौजूद हैं। कैसे समाज बिखर रहा है बल्कि ऐसा जानबूझकर किया जा रहा...
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अजय ‘दुर्ज्ञेय’ की कविताएँ जातिवाद के ख़िलाफ़ प्रतिरोध की मुखर आवाज़ बनकर उभरती हैं

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जावेद आलम ख़ान युवा कवियों में अजय ‘दुर्ज्ञेय’ प्रतिरोध की मुखर आवाज बनकर उभरे हैं। इनकी कविताओं में धर्म, सत्ता और पूंजी के गठजोड़ पर...
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आँशी अग्निहोत्री की कविताएँ एक अंतर्मुखी प्रकृति प्रेमी स्त्री की स्वतंत्रता का आख्यान हैं

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देवेश पथ सारिया युवा कवयित्री आँशी अग्निहोत्री की कविताएँ पढ़ते हुए तीन मुख्य बिंदु रेखांकित किए जा सकते हैं— (i) यह युवा कवयित्री अंतर्मुखी है...
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नाज़िश अंसारी की कविताएँ लैंगिक और धार्मिक मर्यादाओं से युद्धरत हैं

विपिन चौधरी   बहरहाल.. गाय-वाय-स्त्री-विस्त्री-योनि-वोनि कुछ नहीं होना मुझे मुझे मेरे होने से छुट्टी चाहिए (मुझे छुट्टी चाहिए) नाज़िश अंसारी की कविताएँ उस युवा सोच...
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संदीप नाईक की कविताएँ स्मृतियों को बचाए रखने की कोशिशें हैं

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पुरु मालव समस्त कलाएँ और विधाएँ परस्पर भिन्न होते हुए भी एक दूसरे के क्षेत्र का अतिक्रमण करती हैं क्योंकि अभिव्यक्ति का मूल तत्व इन...
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महादेव टोप्पो की कविताएँ आदिवासियत बचाने का संकल्प हैं

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प्रज्ञा गुप्ता महादेव टोप्पो साहित्य में आदिवासी विमर्श के प्रमुख स्वरों में एक हैं। महादेव टोप्पो स्पष्ट सोच एवं संवेदना के साथ अपनी अनुभूतियों को...
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सौम्य मालवीय की कविताएँ प्रतिरोधी चेतना से संपन्न हैं।

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ललन चतुर्वेदी सौम्य की कविताओं को पढ़ते हुए पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि उनकी कविताओं की प्रतिरोधी चेतना में एक न‌ई धार आयी...
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आदित्य शुक्ल की कविताएँ सर्जनात्मकता की आँच में तप कर निखरी हैं

निरंजन श्रोत्रिय विद्रूपताओं के प्रति हर गुस्सा यूँ तो जायज है लेकिन यदि उसे सर्जनात्मक आँच में और तपा दिया जाए तो फिर वह सार्थक...
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ब्रज श्रीवास्तव की कविताएँ समकालीन बोध से संपृक्त हैं

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ख़ुदेजा ख़ान   समय बदलता है और बदल जाता है हमारे आसपास का परिवेश, वातावरण, पर्यावरण, संबंध और सामाजिक सरोकार इतना ही नहीं आर्थिक, राजनीतिक...
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शोभा अक्षर की कविताएँ मानवता के पक्ष में मज़बूती से खड़ी होती हैं

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प्रज्ञा गुप्ता वस्तुतः सौंदर्य एवं प्रेम की रक्षा के लिए हम संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं। जिस कवि में सौंदर्य की भावना जितनी...
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प्रज्ञा गुप्ता की कविताएँ जीवन के हर्ष और विलाप को समझने का उद्यम हैं

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विपिन चौधरी प्रज्ञा गुप्ता की कविताओं के उर्वर-प्रदेश में स्मृतियाँ, सपने, प्रेम, रिश्ते-नाते, स्त्रियों के दैनिक संघर्ष जैसे कई पक्ष आवाजाही करते हैं. उनकी कविताओं...
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विजया सिंह की कविताएँ मानवता के पक्ष में युद्धरत हैं

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निरंजन श्रोत्रिय मुझे संवेदनों की महीनता और दृष्टि की व्यापकता में व्युत्क्रमानुपाती संबंध लगता है। संवेदन जितने महीन होंगे दृष्टि या विज़न उतनी ही व्यापक...
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सत्येंद्र कुमार रघुवंशी की कविताएँ सामाजिक संरचना की परख हैं

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ख़ुदेजा ख़ान कवि सत्येंद्र कुमार रघुवंशी को पढ़ते हुए कहा जा सकता है कि कोई भी कविता या रचना का पाठ संवेदना के स्तर पर...
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मनोज चौहान की कविताएँ समाज के संवेदनशील विषयों की पड़ताल करती हैं।

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गणेश गनी कवियों की भीड़ में मनोज चौहान निरन्तर क्रियाशील हैं और सजग भी। बाजारवाद के इस युग में कविता का भी बाजारीकरण हुआ है।...
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