मेहजबीं उज़्मा सरवत की कविताएँ समकालीन समय की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक परिस्थितियों और पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा निर्मित यथार्थ का आईना हैं। बहुत नपे-तुले शब्दों में...
विपिन चौधरी बहरहाल.. गाय-वाय-स्त्री-विस्त्री-योनि-वोनि कुछ नहीं होना मुझे मुझे मेरे होने से छुट्टी चाहिए (मुझे छुट्टी चाहिए) नाज़िश अंसारी की कविताएँ उस युवा सोच...
विपिन चौधरी प्रज्ञा गुप्ता की कविताओं के उर्वर-प्रदेश में स्मृतियाँ, सपने, प्रेम, रिश्ते-नाते, स्त्रियों के दैनिक संघर्ष जैसे कई पक्ष आवाजाही करते हैं. उनकी कविताओं...
निरंजन श्रोत्रिय मुझे संवेदनों की महीनता और दृष्टि की व्यापकता में व्युत्क्रमानुपाती संबंध लगता है। संवेदन जितने महीन होंगे दृष्टि या विज़न उतनी ही व्यापक...