समकालीन जनमत

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कविता

कुमार अरुण की कविताओं की भाषा के तिलिस्म में छुपा यथार्थ 

समकालीन जनमत
कुमार मुकुल माँ को समन्दर देखने की बड़ी इच्छा कि आखिर कितना बड़ा होता होगा अरे बड़ा कितना जितना हमारे पैसों और जरूरतों के बीच...
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