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साहित्य-संस्कृति

रणेन्द्र को श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान

विनय सौरभ


5 दिसम्बर का दिन कुछ खास रहा।
दोपहर के बाद दो सकारात्मक खबरें एक साथ आयीं। झारखंड में निवास करने वाले लेखक रणेन्द्र को श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान और हिंदी के बेहद लोकप्रिय जनकवि बल्ली सिंह चीमा को पंजाब का सर्वोच्च साहित्य सम्मान साहित्य शिरोमणि प्रदान किए जाने की घोषणा ने गहरी प्रसन्नता दी।

अपने पहले ही उपन्यास ‘ग्लोबल गांव’ के देवता ‘ से रणेन्द्र ने एक ऐसे समाज और संस्कृति से हमारा परिचय कराया जो हमारे लिए अबूझ और एक मिथक था। सौ पृष्ठों के इस उपन्यास में अतीत की एक ताकतवर जनजाति असुरों के संघर्ष की पृष्ठभूमि उसकी सभ्यता, संस्कृति, साम्राज्यवाद राष्ट्र और विकास संबंधी अवधारणाओं को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। इस गंभीर उपन्यास को पाठकों के बीच भारी लोकप्रियता मिली और यह सत्य भी सामने आया कि श्रम, धैर्य, अनुसंधान और गहरी तल्लीनता के बाद का लेखन अंतत: पहचाना ही जाता है।

रणेन्द्र नौकरी के सिलसिले में चेरो, खरवार, मुंडा नगेशिया, बिरहोर, असूर, विरिजिया जैसे अनेक आदिवासी समुदायों के बीच घुले मिले। नजदीक से उनके जीवन और को देखा।

वैश्विक अर्थव्यवस्था का उनके जीवन पर पड़ते प्रभाव का अध्ययन किया। और शायद यह एक बड़ी वजह रही कि इतने गहरे सानिध्य और प्रेम की वजह से ‘ ग्लोबल गाँव के देवता ‘ जैसा उपन्यास हिंदी में आ पाया।

2005 में ‘रात बाक़ी’ जैसी लंबी कहानी लिखकर रणेन्द्र ने अपनी वैचारिक और लेखकीय प्रतिबद्धता स्पष्ट कर दी थी।
इंडिया टुडे के एक सर्वे के मुताबिक़ “गायब होता देश” पिछले 30 सालों में हिंदी का सबसे चर्चित उपन्यास रहा है।

वरिष्ठ कथाकार संजीव ने लिखा है-
महान आलोचक बाख्तीन की बहूध्वन्यात्मकता को चरितार्थ करता यह उपन्यास मुंडाओं के वर्तमान, अतीत और सांस्कृतिक मिथक के प्रस्थान बिंदु लेमुरिया से लेकर विविध रूपों से हमारा परिचय कराता है। सतत संघर्षरत बुद्धिजीवी सोमेश्वर मुंडा, नीरज पाहन, सोनमनी दी ही नहीं शक्ति स्वरूपा अनूजा पाहन के द्वारा भी, जिनका रंग भी अलग है और ढंग भी, ढ़ब भी, छवि भी- मिथकीय अंतर्विरोध को ध्वस्त करती नारी ….मेगालिथ पत्थर भी जिस से जुड़ी ऐतिहासिकता को ससनदिरी, विद्दिरी तथा इक्यूनिक्स के माध्यम से उपन्यासकार आदिवासी जीवन दर्शन की रोचक व्याख्या करता है।

साम्राज्यवादी ताकतें जिस तरह से जल -जंगल- जमीन – पहचान को और ट्रैफिकिंग द्वारा बेटियों को हजम कर रही है, उसके विरुद्ध यह उपन्यास एक विशद आख्यान है।

एक कविता संग्रह, दो कहानी संग्रह और तीन उपन्यासों के लेखक रणेन्द्र इन दिनों राँची में रामदयाल मुंडा शोध संस्थान के निदेशक हैं।

उन्हें इस महत्वपूर्ण सम्मान के लिए बधाई।

 

{टिप्पणीकार प्रसिद्ध युवा कवि विनय सौरभ हैं। देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके कवि विनय सौरभ अपनी ‘ज़िल्दसाज़’ और ‘बख्तियारपुर’ जैसी कविताओं के लिए काफ़ी चर्चित हुए। वे दुमका, झारखंड के एक कस्बे नोनीहाट के रहने वाले हैं। 

सम्प्रति: सहकारिता विभाग, गोड्डा, झारखंड में अधिकारी।

संपर्क: 7004433479

ई मेल: nonihatkakavi@gmail.com}

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