(समकालीन जनमत की प्रबन्ध संपादक और जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ उपाध्यक्ष मीना राय का जीवन लम्बे समय तक विविध साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक हलचलों का गवाह रहा है. एक अध्यापक और प्रधानाचार्य के रूप में ग्रामीण हिन्दुस्तान की शिक्षा-व्यवस्था की चुनौतियों से लेकर सांस्कृतिक संकुल प्रकाशन के संचालन, साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रूप से पुस्तक, पोस्टर प्रदर्शनी के आयोजन और देश-समाज-राजनीति की बहसों से सक्रिय सम्बद्धता के उनके अनुभवों के संस्मरणों की श्रृंखला हम समकालीन जनमत के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. -सं.)
जीवन के रंग, पार्टी के संग
इस सबके बीच दो तीन कामरेड घर पर आते ही रहते थे, जो एक दो दिन से ज्यादा नहीं रुकते थे। घर में ही रहते और कहीं बाहर नहीं जाते थे। केवल किताबें पढ़ते और आपस में बतियाते रहते थे। उन दिनों उन लोगों का नाम भी नहीं पूछते थे हमलोग। अभी 44-45 साल बाद उनमें से एक कामरेड हमें लखनऊ लेनिन पुस्तक केन्द्र पर पार्टी स्थापना दिवस वाले दिन मिले। रामजी राय ने बताया कि मीना राय जो 1977 में हमलोगों के यहां दो-तीन कामरेड आते थे उनमें से एक कामरेड ये भी थे। फिर कामरेड ने भी कहा कि मीना जी भी आई हैं क्या। कार्यक्रम के बाद कामरेड से बातचीत हुई। बहुत अच्छा लगा उनसे मिलकर। पुरानी बातें याद आने लगीं।
अगस्त 1981 में मेरी नौकरी लग गई। मेरा घर शुरु से ही पार्टी का शेल्टर रहा है। हर तरह की मीटिंग होती थी। जितने मकान बदले हर जगह मीटिंगें होती थीं। कटरा वाले घर में आने पर जब पार्टी की मीटिंग होती, तो अंदर वाले कमरे में नीचे दरी बिछा दिया जाता। 10-12 लोग आराम से बैठ जाते थे। एक कामरेड हमसे कहे कि सभी का जूता, चप्पल एक बोरी में भरकर कहीं आंगन में रख दीजिए। केवल दो चप्पल कमरे के बाहर बाथरुम जाने के लिए रखिएगा। ताकि किसी के आने पर ये न शक हो कि इतने लोग यहां क्यों आए हैं और अंदर क्या कर रहे हैं। मीटिंग एक दो दिन जब तक चले उसमें से कोई बाहर नहीं जाता था। बाहर से सामान लाने की जिम्मेदारी केवल उदय और अनिल अग्रवाल पर रहती थी। रामजी राय तो कभी भी पार्टी संबन्धी कोई बात मुझे नहीं बताते थे। घर में रहें तब भी नहीं बताते थे कि कल से यहां मीटिंग होगी। शाम में यहां के पार्टी इंचार्ज ही आते तो बताते कि कल से यहां मीटिंग है, खाने के लिए क्या क्या सामान लाना है। सब सामान रात में ही आ जाता। बाकी जरुरत के अनुसार बीच बीच में उदय लाते। फिर कोई रात में आता तो कोई सुबह, एक एक करके आते लोग। ज्यादातर लोग रात ही में आते और मीटिंग समाप्त होने के बाद रात ही में बारी बारी कोई आगे में रोड से तो कोई पीछे की गली से निकलते।