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कविता

रूपम मिश्र का कविता पाठ : कविता जीवन के आवेग से पैदा होती है

इलाहाबाद। जन संस्कृति मंच, इलाहाबाद द्वारा तीन मार्च को मेयो हाॅल के पास स्थित अंजुमन-रूह-ए-अदब के हॉल में कविता पाठ और परिचर्चा का आयोजन हुआ। इसमें  हिंदी कविता में युवा स्त्री  स्वर रूपम मिश्र अपनी कविताओं के साथ उपस्थित थीं। रूपम मिश्र ने अपनी चुनिंदा कविताओं का पाठ किया। पाठ के बाद उनकी कविता पर बातचीत का सत्र हुआ। रूपम मिश्र का पहला कविता संग्रह ‘एक जीवन अलग से’ हाल ही में लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। उन्होंने ‘अभी हम’, ‘मेरा जन्म वहाँ हुआ’, ‘हम ठगे गए’, ‘वे सब मेरी ही जाति से थी’ सहित कई कविताओं का प्रभावशाली पाठ किया।

काव्यपाठ के पहले रूपम मिश्र की कविताओं के बारे में बोलते हुए कवि बसन्त त्रिपाठी ने कहा कि रूपम की कविता में ग्रामीण स्त्री का जीवन उसके द्वंद्व व दुःख का जितना विपुल संसार दिखता है, वह हिंदी की कविता में लगभग नहीं के बराबर है। पितृसत्ता की इतनी अर्थ-छायाएं उनकी कविता में आती है कि हम चौंक उठते हैं कि यह कहीं हमारे भीतर भी नजर आ रहा है। उनकी कविता में प्रेम ही केवल रोमांटिक नहीं बल्कि वह उसकी तहों में जाकर भी पितृसत्ता की पहचान करती है। उनकी भाषा में ठेठ अवधी शब्दों की भरमार है, लेकिन वे अलंकरण के रूप में नहीं आते। कवि इसको लेकर बहुत सतर्क है, वरना इसके खतरे भी बहुत हैं।

वरिष्ठ कवि हरीश्चंद्र पांडे स्त्री जीवन को उनकी कविताओं के केंद्र में मानते हैं, लेकिन वे उसकी विशिष्टता की पहचान भी करते हैं, कि यह केवल स्त्री जीवन की कथा नहीं है, बल्कि वे जिस-जिस से जुड़ती है, देश-गाँव-समाज उन सबसे मिलकर एक बड़े वृत्त का निर्माण करती है।

कथाकार प्रियदर्शन मालवीय ने रूपम को उनके संग्रह के लिए बधाई देते हुए कहा कि उनकी कविताओं में स्त्री विमर्श भी नया है और उसकी भाषा भी ताजगी का अहसास कराती है।

सदारत कर रहे वरिष्ठ आलोचक और कवि राजेन्द्र कुमार ने कहा कि रूपम अपनी बात करने के लिए अपना नया शिल्प और नयी भाषा गढ़ती हैं। उनके यहाँ विशेषण बहुत आते हैं किंतु ये नई अर्थवत्ता लेकर उपस्थित होते हैं जैसे ‘खुरदरे दुख’। विवरण कविताओं में जरूर लम्बे हैं लेकिन वे कविता को बोझिल नहीं, बल्कि व्यंजक बन कर आते हैं। कवि के पास दुःख और करुणा है, उसकी कई परतें हैं लेकिन यह दुख तोड़ता नहीं, बल्कि उससे संघर्ष का आत्मविश्वास देता है। रूपम की कविता फार्मूला कविता नहीं, बल्कि वह जीवन के यथार्थ और उसके आवेग से पैदा होती है। इसीलिए, वह कविता को जिम्मेदारी का काम मानती हैं।

कार्यक्रम का संचालन हिन्दी की शोधार्थी शिवानी ने किया। इस अवसर पर शहर के कई प्रमुख बौद्धिक, कवि, लेखक मौजूद रहे। इसमें हिमांशु रंजन, प्रणय कृष्ण, सुरेंद्र राही, सीमा आज़ाद, विनोद तिवारी, रामप्यारे राय, दिनेश अस्थाना, विवेक तिवारी, मनोज सिंह समेत विश्वविद्यालय के अध्यापक जनार्दन , लक्ष्मण, अमितेश के अलावा सुशील मानव, के.के पांडेय सहित अच्छी संख्या में युवा श्रोता मौजूद थे।

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