समकालीन जनमत
स्मृति

‘खगेन्द्र ठाकुर सामाजिक सच्चाई और ज़मीनी यथार्थ से जुड़े विरल सरल व्यक्ति थे’

अवधेश प्रीत


खगेन्द्र ठाकुर एक आलोचक, प्रगतिशील आंदोलन के वाहक, वामपंथी कार्यकर्ता और हरदिल अज़ीज़ साहित्यकार और सामाजिक व्यक्ति थे। उनकी प्रेरक शक्ति उनका काव्य बोध और कवि मन था. एक कवि ही प्रेमी हो सकता है.

मनुष्यता का प्रेमी. ‘वे लेखक नहीं हैं’ और ‘हम काले हैं’ जैसी कविताएं उनकी काव्य चिंता और चिन्तन का उदाहरण हैं. गोर्बाचेव और हिन्दू हम बन जायेंगे कविताएं लाउड हैं हां, इनमें समाहित नाराज़गी और विरोध जायज़ हैं.

खगेन्द्र ठाकुर से मेरा संग सम्बन्ध तकरीबन तीस साल मुतवातिर बना रहा. कई यात्राएं साथ कीं. स्थानीय गोष्ठियों समारोहों में तो अमूमन भेंट होती ही. अख़बार के लिए जब भी लेख, टिप्पणी आदि की ज़रुरत होती, उन्हें आग्रह करता और वे राज़ी.

अख़बार में आमतौर पर फ़ौरी ज़रुरत होती है, इस दबाव में वे तारणहार होते. एक बार हम कई लेखक कवि किसी साहित्यिक कार्यक्रम में सीतामढ़ी गए थे. वहां से हम सभी नेपाल के जनकपुर गए. खगेन्द्र जी साथ थे. उन्होंने जनकपुर का आध्यात्मिक और भारत नेपाल के सम्बन्ध की कई महत्वपूर्ण जानकारी दी.

नेपाल आंदोलन के कई संस्मरण सुनाये. दिलचस्प यह कि लौटते हुए देर रात हम मुज़फ़्फ़रपुर-पटना का रास्ता भटक गए. फिर तो वह सारी राह उस इलाके के विधायक रमई राम के किस्से सुनाते रहे और हमारी भटकन का भय भागते रहे. वो पूरा रास्ता बीहड़ था. लूट, डकैती आम थी. लॉ एंड आर्डर ख़राब वाला ज़माना था. वह बोले कोई डाकू मिला तो बता देंगे हम रमई के आदमी हैं. वह रांची से निकलने वाली पत्रिका ‘कांची’का कहानी अंक सम्पादित कर रहे थे. मुझ से आग्रह करके कहानी मांगी. उसमें मेरी कहानी ‘कवच’छपी. उन्होंने उसकी खूब तारीफ़ की. तारीफ़ वह हर संभावनाशील युवा लेखक की करते थे. कोई कंजूसी नहीं. हां दृष्टि, सरोकार से कोई समझौता नहीं.

वह सोते हुए खर्राटा खूब लेते थे. हम सभी कहीं रात में ठहरते हुए उनके साथ रूम शेयर करने से कतराते थे. ये बात वो भी जान गये थे और इसे एन्जॉय करते थे. पिछले माह उनका फोन आया. उनकी सास का निधन हो गया था. वह श्राद्ध के दिन आने के लिए कह रहे थे.

वह एक कवि मित्र का नंबर मांग रहे थे, लेकिन उन्हें उसका नाम याद नहीं आ रहा था. शायद वह अब कुछ कुछ भूलने लगे थे. लेकिन उनकी स्मृति किस्सों, अनुभवों से भरी पड़ी थी. वे जब भी अपनी बात कहते देश विदेश के लेखकों, विचारकों के जीवन प्रसंगों का उदाहरण देते. बिहार के गांव देहात के किस्सों, कहावतों के ज़रिये अपनी बात आगे बढ़ाते. यानी वह जितने वैश्विक थे, उतने ही स्थानीय भी. वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के आजीवन सदस्य रहे, पूर्ण प्रतिबद्ध, लेकिन कट्टर नहीं.

हर वैचारिकता के प्रति सहिष्णु. हम जानते हैं कि वह धुर विरोधी विचारों वाले कवियों, लेखकों का भी वह सम्मान करते थे. ऊपर जिस कवि नंबर वह मांग रहे थे, वे भाजपाई वैचारिकता के निकट हैं. सामाजिक सच्चाई और ज़मीनी यथार्थ से जुड़े विरल सरल व्यक्ति थे.
एक अफ़सोस रह गया.

पिछले साल मैंने एक शाम कई लेखकों, कवियों को खाने पर आमंत्रित किया था. संयोग से उस दिन अचानक ऑटो वालों की हड़ताल हो गईं थी. देर शाम तक स्थिति नहीं बदली. खगेन्द्र जी जिस इलाके में थे वहां से दूरी भी बहुत थी और वह इलाका भी ज़्यादा कनेक्टिविटी से जुडा नहीं था. शेष मित्र तो पहुंच गये. वह नहीं आ पाए.

उन्होंने न पहुंच पाने के लिए क्षमा मांगी. तय हुआ हम फिर जुटेंगे. लेकिन वह जुटना संभव नहीं हो पाया और वह चले गये. हां, वह जाने से पहले अपने घर बुला कर हमें भोज करा गये. बेहद भावुक कर जाती हैं उनकी यादें. उस दिन खूब बातें हुई थीं.

यूं अचानक उनका जाना गो कि सत्य है लेकिन वह इतने वाइब्रेंट थे कि उनकी उपस्थिति बनी हुई है. उम्र 83वर्ष, सार्थक समर्पित जीवन, धोती कुर्ता में भारतीय कम्युनिस्ट.रक्त कमल परती पर उनका काव्य संग्रह चर्चित रहा. मेरे कहानी संग्रह, ‘नृशंस’का उन्होंने ही लोकार्पण किया था. कई रूपों में वे हम सबके प्रिय थे, आदरणीय थे, अभिभावक थे, आश्वस्ति थे.

(हिन्दी कहानी के लिए बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, अखिल भारतीय विजय वर्मा कथा सम्मान, सुरेन्द्र चौधरी कथा सम्मान और बिहार सरकार का फणीश्वरनाथ रेणु कथा सम्मान से सम्मानित कथाकार, व्यंग्य लेखक, कवि, समीक्षक अवधेश प्रीत की शिक्षा एम ए हिन्दी साहित्य, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल से, तीस वर्षों तक दैनिक हिंदुस्तान में विभिन्न पदों पर कार्य।)

 

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