28 अक्टूबर, पटना
आज कोरस के सालाना कार्यक्रम ‘अजदिया भावेले’ की शृंखला में इस बार साहित्यकार, नाट्यकर्मी व एक्टिविस्ट रज़िया सज़्ज़ाद ज़हीर के जन्म-शती वर्ष पर उनकी कहानियों का पाठ एवं मंचन का आयोजन किया गया।
भारतीय उपमहाद्वीप में प्रगतिशील धारा के साहित्य पर कोई भी बातचीत रज़िया सज्जाद ज़हीर के बिना मुक़म्मल नहीं होगी।उनकी कहानियां अविभाजित भारत के साम्राज्यवाद-विरोधी व साम्प्रदायिकता-विरोधी मूल्यों को बढ़ानेवाली व आम जन के मार्मिक व संवेदनशील संदर्भ की हैं ।उनकी कहानियों में देश के विभाजन का दर्द मुखर होकर सामने आता है।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि कहानीकार एवं रंगकर्मी नूर ज़हीर ने शुरुआत में रज़िया जी के बारे में बताया,उन्होंने बताया कि रज़िया सज्जाद ज़हीर का जन्म 15 फरवरी , सन् 1917 को अजमेर (राजस्थान ) में हुआ और उनका निधन 18 दिसंबर 1979 मे हुआ।
आधुनिक उर्दू साहित्य में उनका महत्वपूर्ण स्थान है।उन्होंने कहानी और उपन्यास दोनों लिखे हैं और उर्दू में बाल-साहित्य की रचना भी की ।
उन्होंने कहा कि दकियानूसी व रूढ़िवादी जड़ता के दायरे की औरतों को उनको तोड़ते हुए प्रगतिशील विचारों के साथ जोड़ने का काम किया.
रज़िया जी के परिचय के बाद कोरस टीम ने उनकी कहानी ‘नमक’ की नाट्य प्रस्तुति किया। रज़िया सज्जाद की कहानी ‘नमक’ भारत-पाक के विभाजन के बाद सरहद के दोनों तरफ के विस्थापित पुनर्वासित जनों के दिलों को टटोलती एक मार्मिक कहानी है।जिसमें अंततः यह उम्मीद आती है कि राजनीतिक सरहदें एक दिन बेमानी हो जाएंगी। अगर सिख बीबी के लिए लाहौर अब तक उनका वतन है और पाकिस्तानी कस्टम ऑफिसर के लिए दिल्ली, तो रफ्ता-रफ्ता सब ठीक हो जाएगा ।
नाटक में मात्सी शरण, राजीव तिवारी, समता राय ने अभिनय किया,संगीत रिया ने दिया और निर्देशन समता राय ने किया.
उसके बाद ‘द स्ट्रगलर’ टीम द्वारा जनगीतों की प्रस्तुति हुई.उन्होंने,सरफ़रोशी की तम्मन्ना,सौ में सत्तर आदमी,हिलेले झकझोर दुनिया जैसे गीतों को विभिन्न वाद्ययंत्रों के साथ ऑर्केस्ट्रानुमा गा कर प्रस्तुति दी.
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि नूर ज़हीर ने रज़िया सज्जाद की कहानी ‘बड़ा सौदागर कौन ‘ कहानी का पाठ किया,जो एक बुज़ुर्ग दंपति की कहानी है.
कहानियों पर बातचीत का दौर शुरू हुआ. सबसे पहले डॉ. सत्यजीत सिंह ने अपना अनुभव शेयर किया और उन्होंने बताया कि कैसे पाकिस्तान में एक हिंदुस्तानी को कितना मान मिलता है.उन्होंने कहा कि हमें ही मिलकर इस बंटवारे को खत्म करना होगा.
प्रलेस के महासचिव राजेंद्र राजन ने रज़िया जी के विचारों को रखते हुए संस्मरण सुनाया कि कैसे जब आंदोलन के दौरान सज्जाद ज़हीर को जेल भेज दिया गया तो रज़िया जी ने कहा कि तुम एक सज़्ज़ाद मारोगे लेकिन मारने से पहले तीन-तीन सज़्ज़ाद पैदा हो गए हैं।नमक कहानी पर कहानीकार संतोष दीक्षित ने कहा कि ये सबकी पीड़ा है जन की पीड़ा है.आलोक धन्वा ने रज़िया जी की कहानी बड़ा सौदागर कौन पर बात रखते हुए कहा कि यह कहानी पति पत्नी के रिश्ते को अलग और सामान्य दोनों तौर पर व्यक्ख्यायित करती है।
दर्शकों में इनके अलावा समकालीन लोकयुद्ध के संपादक बृज बिहारी पाण्डेय , डॉ. विभा सिंह , सुमंत शरण , कवि रंजीत वर्मा , जेंडर एक्टिविस्ट रेश्मा प्रसाद,कवियित्री प्रतिभा,सामाजिक कार्यकर्ता ग़ालिब , जसम संयोजक राजेश कमल , युवा कवि शशांक मुकुट आदि उपस्थित थे.
कार्यक्रम का संचालन युवा कवियित्री व अंग्रेजी साहित्य की शिक्षिका ऋचा ने किया.
6 comments
Comments are closed.