समकालीन जनमत
जनमत

आलोचना की विश्वसनीयता की चिंता करने वाले लेखक थे रामनिहाल गुंजन

रामनिहाल गुंजन स्मृति आयोजन

रेडक्रॉस सभागार, आरा में 22 अप्रैल 2023 को जन संस्कृति मंच की ओर से जसम बिहार के पूर्व अध्यक्ष कवि-आलोचक रामनिहाल गुंजन की स्मृति में आयोजन किया गया। विगत 19 अप्रैल को उनका प्रथम स्मृति दिवस था। इस मौके पर एक प्रतिबद्ध प्रगतिशील-जनवादी आलोचक, कवि, संपादक और अनुवादक के रूप में गुंजन जी की भूमिका को याद किया गया तथा ‘वर्तमान रचनाशीलता और आज की आलोचना की चुनौतियां’ विषय पर संगोष्ठी की गयी। अध्यक्षता जितेंद्र कुमार, जनार्दन मिश्र, अरुण शीतांश और यतींद्रनाथ सिंह ने की। संचालन कवि सुमन कुमार सिंह ने किया।

जसम के बिहार राज्य अध्यक्ष कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने कहा कि गुंजन जी ने इस यकीन को कायम रखा कि साहित्य समाज को दिशा देता है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि गुंजन जी उन्हें समीक्षा लिखने को प्रेरित नहीं करते, तो वे समीक्षक न होते। वे नये लोगों की हौसला अफजाई करते थे। उन्होंने कहा कि दृष्टि और दृष्टिकोण में अंतर होता है। सबका दृष्टिकोण एक नहीं हो सकता। जैसे राजा के लिए करुणा, संवेदना और दया का दृष्टिकोण कोई अहमियत नहीं रखता। रचना भी सभ्यता की आलोचना ही होती है।

संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन कवि करते हुए कवि सिद्धार्थ वल्लभ ने कहा कि हमारे समय की आलोचना का संकट यह है कि वह किसी रचनाकार की समग्र रचनाओं को आधार बनाकर अपने निष्कर्ष नहीं प्रस्तुत करती। आलोचनात्मक निर्णय प्रायः पूर्वाग्रह-दुराग्रह या अवसरवाद या रचनाओं के छिछले अध्ययन के आधार पर किये जा रहे हैं। आलोचक का मुंहदेखापन भी एक समस्या है। उन्होंने कहा कि जितना विचलन लेखकों के जीवन में है उतना ही विचलन उनकी रचनाओं में भी उपस्थित नजर आ रहा है। आलोचना भी रचना ही है और संक्रमण के किसी भी दौर में साहित्यिक-सांस्कृतिक हस्तक्षेप और उसकी भूमिकाओं को समझने परखने के लिए गहरी समीक्षात्मक और आलोचकीय दृष्टि जरूरी होती है। वल्लभ ने कहा कि नई स्थापना कोई आलोचक नहीं दे रहा है। मार्क्सवादी आलोचना में भी पुराने टुल्स को आधार बनाया जा रहा है, जबकि पिछले साठ-सत्तर साल में कई तरह के प्रवृत्तिगत बदलाव आए हैं। दूसरी ओर आलोचना को कोई बर्दास्त करने को भी तैयार नहीं है। इस समय हिन्दी आलोचना में अच्छी आलोचना का सुखाड़ है।

विमर्श को आगे बढ़ाते हुए साहित्यकार हरेराम सिंह ने कहा कि आलोचना अपने आप में साहित्यिक-राजनीतिक दृष्टि है। गुंजन जी के पास एक स्पष्ट राजनीतिक दृष्टि थी। वे आलोचना की विश्वसनीयता की चिंता करते थे। आज भी बहुत अच्छा लिखा जा रहा है, पर उसकी नोटिस लेने वाले आलोचक कम हैं। यदि आपके पास कोई दर्शन नहीं है, तो कोई प्रतिमान खड़े नहीं कर सकते। कोई भी रचना किसके लिए लिखी गयी है, रचनाकार उसके माध्यम से कैसा समाज बनाना चाहता है, आलोचक को इसका विश्लेषण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आलोचना निष्पक्ष होती ही नहीं है। हिन्दी आलोचना में जिस तरह का भाई-भतीजावाद, जातिवाद और सत्ता से गहरा रिश्ता है, वह भी गहरा संकट है।

कवि राजेश कमल ने कहा कि बेशक आज का समय निराश करने वाला है, पर ऐसा नहीं है कि बेहतर काम नहीं हो रहा है। इसी समय में रचना के क्षेत्र में बेहतर काम हो रहा है। स्त्रियों, दलितों और मुस्लिम समुदाय के भीतर से बड़े पैमाने पर कवि सामने आए हैं, जो अच्छी कविताएं लिख रहे हैं। लेकिन आलोचना को दोस्ती-दुश्मनी और खारिज करने या स्थापित करने के बजाए वस्तुपरक मूल्यांकन करना होगा। कवि प्रशांत विप्लवी ने कहा कि जिसे देखिए उसे कवि बनना है और किताबें छपवानी हैं। जबकि ईमानदार पाठक कम होते जा रहे हैं। ऐसे पाठकों की संख्या कैसे बढ़े यह भी एक चुनौती है, क्योंकि इस पाठक की समझ कई बार रचनाकार से अधिक होती है।

कवि सुनील श्रीवास्तव ने कहा कि जो जीवन का संकट है, वही रचना-आलोचना का भी संकट है। जीवन को ही कहां समग्रता में देखा जा रहा है! बाजार बहुत बड़ा संकट है। लेखकों का आपस में मिलना और संवाद करना जरूरी है।

कवि संतोष श्रेयांश ने कहा कि सोशल मीडिया के इस दौर में रचनाकारों के भीतर आत्मप्रचार की प्रवृत्ति बढ़ी है। जबकि रचनाएं उतनी तन्मयता और संवेदनशीलता से पढ़ी नहीं जा रही है। नये लोग जो अच्छा लिख रहे हैं, उन पर बात कम होती है। पत्रिकाओं को खरीदकर कोई पढ़ना नहीं चाहता। गुटबाजी-खेमबाजी एक बड़ी समस्या है। किसी एक आधार पर किसी को खारिज नहीं किया जा सकता। यदि कोई गांव पर नहीं लिखता, बल्कि शहर में रहने के कारण शहर की विसंगतियों पर ही लिख सकता है, तो क्या उसकी रचना को आलोचना महत्त्व नहीं देगी?

वरिष्ठ कवि जर्नादन मिश्र ने कहा गुंजन जी ने रचना-आलोचना के क्षेत्र में ईमानदारी से काम किया। वे साहित्यकारों के लिए स्कूल ऑफ लर्निंग थे। ऐसे साहित्यकार किसी शहर या क्षेत्र की पहचान बन जाते हैं। गुंजन जी भी आरा के ऐसे ही आलोचक थे।

कवि ओमप्रकाश मिश्र का मानना था कि वर्तमान रचनाशीलता संतोषप्रद है, पाठकीय रुचि का संकट जरूर है। कोई भी रचना दृष्टिविहीन नहीं होती।

कवि अरुण शीतांश ने कहा कि गुंजन जी ने उन्हें दृश्यबोध और दृष्टिबोध के फर्क को समझाया था। वे ऐसे आलोचक थे जो नये रचनाकारों से अपने अंतःकरण से लगाव रखते थे। अरुण शीतांश ने भी इससे असहमति जताई कि इस समय अच्छे आलोचक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस समय कम से कम ऐसे चालीस आलोचक हैं, जो अच्छी आलोचना लिख रहे हैं।

कवयित्री अर्चना कुमारी ने गुंजन जी की कविता ‘इतिहास बनते लोग’ के साथ अपनी भी एक कविता का पाठ किया। बोकारो से आए कवि आरपी वर्मा ने कहा कि काश, उनके यहां भी गुंजन जी जैसी कोई शख्सियत होती।

यतींद्रनाथ सिंह ने कहा कि उन्होंने एक बार गुंजन जी से एक सवाल पूछा कि आलोचना कैसे लिखी जाए तो उन्होंने कहा कि किसी भी रचना को लेकर अपनी सहमति और असहमति के विंदुओं को लिखकर व्यवस्थित करना ही आलोचना के आरंभ के लिए जरूरी है। बिहटा से आए कवि विनोद यादव ने कहा कि दो प्रकार के रचनाकार होते हैं एक रागदरबारी गाते हैं और दूसरे जनता के बुनियादी सवाल को उठाते हैं। सच्चा लेखक हमेशा सत्ता के विरोध में होता है। आलोचना का मतलब है गलत को गलत कहना और सही को सही कहना। हालांकि आज आलोचना करने पर सत्ता के हमले झेलने पड़ते हैं। लेकिन शरीर नश्वर है, इतिहास नश्वर नहीं है। इतिहास में सही रचना-आलोचना दोनो का आकलन होता है, होता रहेगा।

संचालक सुमन कुमार सिंह ने चिंता जाहिर की, कि रचना के क्षेत्र में निजताएं बढ़ी हैं। गिने चुने लोग हैं जो किसानों और छात्र-नौजवानों के सवालों पर लिख रहे हैं। दलित विमर्श ने जरूर अनुभवों के एक नये संसार को हिन्दी आलोचकों और पाठकों के समक्ष रखा है।

सुधीर सुमन ने इस मौके पर यह कहा कि गुंजन जी ने भोजपुर और बिहार के रचनाकारों के साथ-साथ देश-दुनिया के प्रगतिशील-जनवादी कवियों-कथाकारों के बेमिसाल योगदान का मूल्यांकन किया। साठ से अधिक साल के सक्रिय रचनात्मक जीवन में उन्होंने रचनात्मक प्रवृत्तियों में होने वाले नये बदलावों पर भी ध्यान रखा। नये लोगों पर लिखा। अपने जीवन और लेखन के बारे में उन्होंने बहुत ही कम लिखा। आज की पीढ़ी का फर्ज है कि वह उनके योगदान का मूल्यांकन करे। वे वितंडावादी आलोचक नहीं थे। मुक्तिबोध उनके प्रिय आलोचक थे। उनकी आलोचना में वैसा ही संतुलन है। वे बिहार के आलोचकों की उस पीढ़ी के आखिरी व्यक्ति थे, जिनके लिए आलोचनात्मक लेखन मुख्य कार्यभार था। आलोचनात्मक लेखन को उसी शिद्दत से गति प्रदान करना उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

धन्यवाद ज्ञापन युवानीति के रंगकर्मी सूर्यप्रकाश ने किया। इस मौके पर गीतकार राजाराम प्रियदर्शी, गीतकार का. जितेंद्र, कवि सुनील श्रीवास्तव, कवि रविशंकर सिंह, कवयित्री रिंकी सोनी, रंगकर्मी किशोर कुमार, अमित मेहता, चित्रकार विजय मेहता, संजीव सिन्हा, सुमन कुशवाहा, किरण देवी, आशुतोष कुमार पांडेय, दिलराज प्रीतम, रोशन कुशवाहा, अनिरुद्ध सिंह, विक्रांत कुमार, योगेश मुरारी आदि मौजूद थे।

इस मौके पर सभागार में रामनिहाल गुंजन की काव्य-पंक्तियों और आलोचनात्मक लेखों के उद्धरणों पर आधारित पोस्टर लगाए गए थे, जिन पर रविशंकर सिंह ने रेखांकन बनाया था।

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion