सौरभ यादव
दिल्ली के कन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित ‘ख़ौफ़ से आज़ादी’ नामक कार्यक्रम में शामिल होने आए जेएनयू के शोध छात्र और एक्टिविस्ट उमर खालिद पर एक पिस्टलधारी ने सोमवार को हमला कर दिया। स्वतंत्रता दिवस से ठीक दो दिन पहले कन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में हुए इस हमले से एक तरफ तो इस संवेदनशील इलाके की सुरक्षा का प्रश्न सामने आ रहा है वही दूसरी तरफ संसद मार्ग थाने पर दिल्ली पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने में की जा रही आनाकानी से इस हमले को सत्ता का संरक्षण मिलने की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है।
उमर खालिद ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि वह ‘ख़ौफ़ से आज़ादी’ नाम के एक कार्यक्रम में शामिल होने से पहले चाय पीने कन्स्टीटूयशन क्लब ऑफ इंडिया के बाहर निकले थे, इसी दौरान एक व्यक्ति ने उनके ऊपर हमला कर दिया और जिसके हाथ मे पिस्तौल थी, उन्होंने उसके हमले से बचने के लिए हमलवार का हाथ पकड़ा ही था कि वहां उपस्थित बाकी लोगो का ध्यान उनकी तरफ गया और जैसे ही वे लोग हमलावर की तरफ लपके वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ। यही नहीं जब लोगो ने कुछ दूर तक उसका पीछा किया तो उसने एक फायरिंग भी की और जब उसे लगा कि वह पकड़ा जाएगा तो वह पिस्टल वही फेंक कर भाग निकला। इस घटना के बाद उमर खालिद ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि, ‘‘देश में ख़ौफ़ का माहौल है और सरकार के ख़िलाफ़ बोलने वाले हर व्यक्ति को डराया-धमकाया जा रहा है।”
जेएनयू मामले में आरोपी छात्रों पर ये हमला पहली बार नही है, इससे पूर्व एक कार्यक्रम में शामिल होने लखनऊ पहुँचें कन्हैया के ऊपर भी भगवा बिग्रेड ने हमला किया था।
ये हमला भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ लिखने और बोलने वालों को चुप कराने के लिए किये जा रहे हमलों की निरंतरता में किया गया है। इस समय में देश के अंदर सरकार की आलोचना और उनकी नीतियों की मुखालफत करने वाले लोगो के साथ-साथ दलित, अल्पसंख्यक और आदिवासी हितों के लिए लड़ रहे लोगो पर सत्ता संरक्षण में लगातार हमले किये जा रहे हैं।
अभी कुछ दिन पहले बंधुआ मुक्ति मोर्चा के स्वामी अग्निवेश को झारखंड में भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने बुरी तरह से मारपीट की थी। इससे पहले नरेंद्र दाभोलकर, एम.एम. कलबुर्गी, गोविंद पानसरे और गौरी लंकेश की भी ऐसे ही हमले में हत्या की जा चुकी है।
दिल्ली का कन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया का इलाका राजधानी का सबसे संवेदनशील और सुरक्षित माना जाने वाला इलाका है क्योंकि इसके एक किलोमीटर के दायरे में संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, पीएमओ समेत दर्जनों मंत्रालय आते है। ऐसे में स्वतंत्रता दिवस से ठीक दो दिन पहले जब देश भर में सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद करने की बात की जा रही है तब राजधानी के इस अतिसुरक्षित इलाके में एक अज्ञात व्यक्ति खुलेआम पिस्टल से उमर खालिद पर हमला करना और आसानी से निकल भागना किसी आश्चर्य से कम नहीं है, लेकिन यह आश्चर्य तब नहीं रह जाता जब पुलिस द्वारा इस घटना की एफआईआर दर्ज करने में कोताही बरती जाती है और छानबीन करने के नाम और घटना पर लीपापोती की जाती है।
हमले के तुरन्त बाद बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी का थाने पहुँचना और पुलिस प्रशासन पर दबाब बनाना इस घटना के सत्ता संरक्षित होने का भी इशारा करता है। इससे पहले झारखंड में गौ हत्या के आरोप में एक व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या कर देने के मामले में जमानत पर छूटे आरोपियों का केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा द्वारा माल्यार्पण कर स्वागत करना, दादरी में गोमांस की अफवाह में हुई अखलाक की हत्या के आरोपियों के घर पर केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा का सांत्वना दर्ज कराने जाने समेत कई ऐसे मामले हुए है जिसमें पहले भी सरकार द्वारा अपनी राजनीतिक फायदे के लिये हत्यारों, दंगाइयों और अपराधियों को संरक्षित करने का मामला सामने आ चुका है।
उमर खालिद पर हुए इस हमले का सोशल मीडिया समेत जगह-जगह लोगो ने विरोध किया है और सरकार की मंशा ओर प्रश्न चिन्ह उठाये हैं। गुजरात के विधायक और दलित नेता जिग्नेश मेवानी ने ट्विटर पर दिल्ली पुलिस पर सवाल उठाते हुए लिखा कि “जब उनके साथ-साथ शेहला राशिद और उमर खालिद को लगातार धमकियाँ दी जा रही हैं इसके बावजूद पुलिस इनकी सुरक्षा की व्यवस्था क्यों नही कर रही ?” वही एक अन्य ट्वीट में उन्होंने इस हमले के लिए मीडिया को भी दोषी ठहराते हुए कहा कि “मीडिया लगातार कन्हैया कुमार, उमर खालिद, शेहला राशिद को ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ और ‘राष्ट्रद्रोही’ बताकर भाजपा को चुनावी फायदा पहुँचाने के मिशन में लगी है और आपका बिकाऊ होना किसी की जान ले सकता है.”
वही दूसरी तरफ इस हमले के ख़िलाफ़ जेएनयू में छात्रों ने मार्च निकाला और इस हमले की निंदा की। जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष गीता कुमारी ने कहा कि “मोदी सरकार में देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए लड़ रहे लोगो पर लगातार हमले किये जा रहे है और ये हमला मोदी सरकार के गोद मे बैठी मीडिया के कारण भी हुआ है जिसे देशद्रोही नारे वाले प्रकरण में पूरे जेएनयू के छात्रों पर देशद्रोही होने का टैग लगा दिया।”
[author] [author_image timthumb=’on’][/author_image] [author_info]सौरभ यादव दिल्ली विश्वविद्यालय में शोध छात्र हैं [/author_info] [/author]
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