समकालीन जनमत
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मुंशी प्रेमचंद जयंती और क्रांतिकारी उधम सिंह की शहादत के दिन भारत

जयप्रकाश नारायण 

जालियां वाले बाग के नरसंहार से व्यथित और आक्रोशित उधम सिंह ने लंदन जाकर जनरल डायर की हत्या  करके अपने भाई बंधुओं पर हुए अत्याचार का बदला लिया था। जिस कारण उन्हें 31 जुलाई को फांसी पर चढ़ा दिया गया। लेकिन हम भारत के सपूत महान क्रांतिकारी की सहादत के दिन उन्हें याद करते हैं और अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं।

31 जुलाई को ही महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का जन्म दिन है। जो भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के तूफानी काल में स्वतंत्रता संघर्ष के अंदर मौजूद विसंगतियों से जूझते हुए आजाद भारत का स्वरूप कैसा होगा और होना चाहिए।इसके श्रेष्ठतम शब्द शिल्पी  के रूप में उभरे थे।वे ऐसे रचनाकार हैं जो कलम और विचार के समायोजन से एक ऐसे भारत की परिकल्पना गढ़ रहे थे, जिसमें मनुष्य यानी आजाद भारत का नागरिक मनुष्य होने की संपूर्ण गरिमा के साथ स्वतंत्रता समता बंधुत्व और शोषण मुक्त जीवन का सर्वोच्च आनंद लेते हुए भारतीय होने के गर्व बोध से भरा होगा। वह ऐसा नागरिक होगा जो स्वत: स्वयं की योग्यता क्षमता का सर्वोच्च देय राष्ट्र और समाज सेवा के लिए समर्पित कर देगा।

यह गौरव बोध 31जुलाई के दिन अपने इन दोनों पूर्वजों को याद करते हुए हमें आह्लादित करता है। उधम सिंह का संदेश है अत्याचारी के खिलाफ लड़ने का साहस व समाज और देश के लिए खुद को बलिदान कर देने की उत्कृष्ट आकांक्षा और  मुंशी प्रेमचंद का योगदान ऐसे नागरिक का सृजन जो श्रेष्ठतम सांस्कृतिक मानवीय मूल्यों से युक्त हो।  किसी भी लोकतांत्रिक समाज के यह दो बुनियादी आधार हैं। जिस पर खड़ा होकर एक लोकतांत्रिक राष्ट्र अपनी गरिमामय  यात्रा शुरू करता है।

लेकिन इस वर्ष की 31 जुलाई 2023 भारत के वर्तमान के सबसे विद्रूप चेहरे के साथ हमारे समक्ष हाजिर है। हमारे शासक भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष को अमृत काल के बतौर व्याख्यायित करते हैं। मोदी राज के अमृत रस का आनंद मणिपुर से लेकर नूंह ( हरियाणा) तक भारत के आम जन ने 30 और 31 जुलाई को जिस तरह से चख रहा है, यह समझना हमारे लिए बड़ा सवाल है।

29 और 30 जुलाई में ‘इंडिया’ (अगर हम न भी कहे तो भारत के विपक्षी गठबंधन ) के 21 सांसद मणिपुर के जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए वहां गए थे। इन सांसदों के दल ने इंफाल घाटी में मेतेई विस्थापितों के  शिविरों और सबसे ज्यादा खूंरेजी के शिकार चूड़ाचांदपुर में कुकी जनजाति के शिविरों का दौरा किया। वहां इन लोगों ने जो देखा और महसूस किया और वे जिस निष्कर्ष पर पहुंचे उससे संबंधित  दो पेज का प्रतिवेदन इस दल ने मणिपुर के राज्यपाल को सौंपा । मणिपुर से लौटकर वहां के हालात पर उन्हें 31 जुलाई  को संसद और उसके बाहर देश से साझा करना था। लेकिन बड़े योजनाबद्ध ढंग से इंडिया के सांसदों के अनुभव और पीड़ा को भारतीय समाज में पहुंचने से रोकने के लिए नए षडयंत्र रच दिए गए।  जो कई क्षेत्रों में दंगे हिंसा और हत्या के रूप में दिखाई दिया।

घटना एक -जयपुर से मुंबई जा रही सुपरफास्ट एक्सप्रेस में आरपीएफ के जवान चेतन सिंह अपने ही प्लाटून के इंस्पेक्टर टीकाराम मीणा के साथ बहस के दौरान इतना उत्तेजित हो गया कि उसने इंस्पेक्टर की गोली मारकर हत्या कर दी। वह यहीं नहीं रुका। वह धर्म के जहरीले पागलपन से भरा रोबोट बन गया था। वह इस कदर नफरती जहर से भरा था कि बोगी में खोज कर दो मुस्लिम यात्रियों की हत्या कर बैठा। पागल उन्मत्त बेखौफ जानवर की तरह हथियार लेकर घूमता हुआ 5 बोगी पार कर एक मुस्लिम जैसा दिखने वाले यात्री की भी हत्या कर दिया। इनमें वह इंस्पेक्टर टीका राम के अलावा किसी को नहीं जानता था। उसकी किसी से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी।
यहां सवाल यह है कि वह इतना उन्मादी और हिंसक कैसे हो गया। क्या इस देश में कोई ऐसी संस्था या संगठित समूह है, जिसने हमारे देश के सुरक्षाबलों से लेकर नागरिकों तक के दिमाग में उन्माद और नफरत का जहर भर दिया है। जिससे पागल होकर ये लोग आत्मघाती कदम उठाकर दूसरों की जिंदगी ले रहे हैं। चेतन सिंह का चिल्लाते हुए यह कहना कि ‘भारत में रहना है तो मोदी-योगी को वोट देना होगा।’ स्पष्ट करता है कि उसके हिंसक उन्माद की जड़े कहां तक जाती हैं। स्पष्ट है इस बिषबेल का बीज बोने उसे खाद और पानी देने वाले हिंदुत्व की विचारधारा ही ऐसे मानव बमों को तैयार कर रही है। 2014 के बाद संघनीत भाजपा की मोदी सरकार आने के बाद इस ख़तरनाक धार्मिक विचार ने देश की सभी संस्थाओं , सार्वजनिक स्थलों और  अनुयायियों के मनोजगत में ऐसे मानव बमों को फिट कर रखा है। जो कहीं भी किसी के खिलाफ फट पड़ सकते हैं और किसी के भी साथ संवाद विमर्श के क्रम में हिंसक होकर उसका जीवन ले सकते हैं।

घटना दो-इस अमृत काल में संघी उन्मादियों के लिए शिव भक्ति का प्रदर्शन करने के लिए अतिरिक्त एक महीना और मिल गया है। बाबरी मस्जिद ढहा देने के बाद संघ के लिए राम जन्मभूमि के नाम पर उन्माद खड़ा करने का अवसर खत्म हो गया। इसलिए उन्होंने शिव नगरी को चुना। यह अकारण नहीं है कि 2002 के गुजरात नरसंहार के नायक  नरेंद्र मोदी 2014 में काशी से चुनाव लड़ने आए। यह एक  सुचिंतित योजना थी। भारतीय समाज और राजनीतिक गति विज्ञान पर नज़र रखने वाले यह बात पहले से ही कह रहे थे कि अयोध्या के बाद काशी की ज्ञानवापी मस्जिद भारत के हिंदूकरण का सबसे महत्वपूर्ण टारगेट बनेगा और हुआ भी वही। खैर इसे यही छोड़ते हैं ।

30 तारीख को बरेली में कावरियों का एक समूह पूर्व निर्धारित मार्ग से अलग मुस्लिम बहुल इलाके में जाने के लिए अड गया। जैसी जानकारी मिलती है कि मुस्लिम समाज का कहना था कि नई परंपरा क्यों डाली जा रही है । बरेली के एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने मुस्लिम समाज को समझा-बुझाकर पीछे हटने के लिए मना लिया और तय हुआ कि कांवड़ अपने पुराने मार्ग से ही निकलेगी। लेकिन उत्तर प्रदेश में तो योगीराज है। यहां शिव भक्ति का चोला ओढ़े कांवरिये बेलगाम हो चुके हैं। वे उसी मार्ग से जाने के लिए जिद करने लगे। एसएसपी के नेतृत्व में प्रशासन  6 घंटे तक उन्हें समझाने बुझाने की कोशिश करता रहा। लेकिन वे अश्लील और भद्दे नारे  लगाते हुए एक मस्जिद के सामने अड़े रहे। तनाव और दंगे जैसे हालात को देखते हुए प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाया और बल प्रयोग करते हुए कांवरियों को पीछे धकेल दिया। फिर क्या था योगी सरकार अपने प्रिय अधिकारी से खफा हो गई। एसएससी शांति कायम करने के बाद अपने आवास भी नहीं लौट पाए थे, उनका स्थानांतरण पीएसी में कर दिया गया। साथ ही  थाना और चौकी प्रभारी को निलंबित कर दिया गया।

यह उत्तर प्रदेश की नौकरशाही को योगी सरकार का स्पष्ट संदेश है कि उन्मादी कांवरियों के गलत सही काम को प्रशासन महिमा मंडित करे, उन्हें संरक्षण दे। उन्हें हर तरह से विशेष नागरिक का दर्जा देकर उनके सेवा भाव में सरकारी धन का दुरुपयोग करे। एसएसपी प्रभाकर चौधरी को समझना चाहिए था कि इन दंगाई गिरोहों को नियंत्रित करना नहीं, उन्हें संरक्षण देना उनका कर्तव्य है। ऐसा न करके दंगा रोकना, शांति कायम करना राम राज्य में दंडनीय अपराध माना जाएगा।

तीसरी घटना- जिला नूंह हरियाणा की है, जो 31 तारीख को घटित हुई। मेवात का इलाका हरियाणा से राजस्थान तक फैला हुआ है।  जहां मोनू मानेसर बजरंग दल का कार्यकर्ता है। जो कुछ समय पहले दो मुस्लिम पशुपालकों की हत्या के बाद बहुचर्चित हुआ था । वे दोनों राजस्थान के थे । मेवात में पशुपालन कार्य एक बड़ा धंधा है, जिसमें मुस्लिम किसान व्यापारी, कारोबारी भी शामिल रहते हैं। बजरंग दल उस इलाके में गौ रक्षा के नाम पर रंगदारी वसूल करता है। इनका खौफ और आतंक बना रहे इसलिए कभी-कभी यह पशुपालको की पिटाई और हत्या तक कर देते हैं। बजरंग दल के मोनू मानेसर गिरोह ने दो मुस्लिम व्यापारियों का अपहरण करके कुछ समय पहले हत्या कर दी थी।

जब मोनू मानेसर के खिलाफ कार्यवाही हुई तो आरएसएस और बीजेपी द्वारा हरियाणा सरकार के संरक्षण में मेवात क्षेत्र में बड़ी-बड़ी पंचायतें हुईं। इसलिए उस क्षेत्र में तनाव पहले से ही मौजूद था। विश्व हिंदू परिषद ने नूंह से ब्रज मंडल क्षेत्र की शोभा यात्रा निकालने का फैसला किया। इसके लिए कई जिलों से भारी तादाद में बसों में भर कर लोगों को नूंह लाया गया और मुस्लिम बहुल इलाके से उत्तेजक नारों के साथ शोभायात्रा निकाली गई। इसके पहले मोनू मानेसर ने एक उत्तेजक और जहरीला वीडियो शेयर किया था। जो सोशल मीडिया पर चल रहा था। जिस कारण से नूंह में मुस्लिम समाज में आक्रोश था। परिणाम यह हुआ कि जब मुस्लिम बहुल कस्बे से यात्रा निकल रही थी तो टकराव हो गया। जिसमें कई दर्जन बसें फूंक दी गई है।

अभी तक दो होमगार्ड एक कांस्टेबल सहित पांच लोगों के  मारे जाने की खबर आ रही है। दर्जनों लोग घायल हैं। चार जिले में इंटरनेट सेवा बंद है। धारा 144 लगा दी गई है। भारी तादात में अर्ध सुरक्षा बल बुलाए गए हैं। पूरे मेवात इलाके में तनाव फैलने की संभावना दिखाई दे रही है। एक अगस्त की शाम तक पलवल, फरीदाबाद और गुरुग्राम में भी मुस्लिम दुकानों को जलाना, पथराव आदि शुरू हो चुका है। नूंह में 2 दिन का कर्फ्यू लगाया गया है।

याद रखें! 2024 का चुनाव बहुत करीब है और हरियाणा का किसान आम नागरिक सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरा हुआ है। हरियाणा की पहलवान बेटियां जंतर मंतर पर घसीटी  जा चुकी हैं। उनका यौन शोषण करने वाला भाजपाई सांसद  इसी हरियाणा में महा पंचायतों में सम्मानित किया गया है। इसे मणिपुर की बेटियों के दर्द के साथ जोड़ कर देखिए और भारत के लोकतंत्र के भविष्य पर सोचना होगा।

और अंत में  महाराष्ट्र का पुणे- भीमा कोरेगांव में पेशवाई पर महार रेजीमेंट की अगुवाई में अंग्रेजों की विजय के उपलक्ष्य में एक स्मारक बना हुआ है। जहां प्रतिवर्ष 1 जनवरी को दलित अपने मुक्ति का उत्सव मनाते हैं। जब 2017 में एल्गार परिषद ने महार रेजिमेंट की जीत का समारोह  का आयोजन किया तो वहां हिंसा फैल गई। जिसमें एक दलित की हत्या कर दी गई और कई लोग घायल हुए थे। इस हिंसा के लिए जिम्मेदार संभाजी भिड़े के ऊपर एफआईआर दर्ज हुआ था। आज‌ तक वह सुरक्षित घूम रहा है। मोदी जी उसे अपना गुरु मानते हैं। यह संघ का नेता नफरत और हिंसा फैलाने के लिए मशहूर है। जिसमें दलितों और मुस्लिमों के खिलाफ नफरत का जहर भरा हुआ है।

भीमा कोरेगांव की हिंसा के षड्यंत्र के नाम पर केंद्र और भाजपा की महाराष्ट्र सरकार ने भारत के कई राज्यों से प्रगतिशील लेखकों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। उनके ऊपर हिंसा में शामिल होने और मोदी की हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया और इस हिंसा का मास्टर माइंड संभाजी भिडे एफआईआर दर्ज होने के बाद भी आज तक सुरक्षित घूम रहा है। इसी केस में रांची में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता 83 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी की जेल में मृत्यु हो गई। अभी 5 साल बाद जेल से अरुण परेरा और बेंजामिन गोंजावेल्स जमानत पर छूटे हैं।

वही संघी नेता संभाजी भिड़े ने गांधी जी के पूर्वजों को मुसलमान घोषित कर दिया है। संघियों का एक पुराना सुचिंतित अभियान रहा है कि धर्मनिरपेक्ष समन्वयवादी लोगों के तार किसी न किसी तरह से मुस्लिम समाज या पाकिस्तान से जोड़ा जाए। संघ के षड्यंत्रकारी प्रचारकों ने नेहरू जी के परिवार को तीन पीढ़ी पहले मुसलमान होना बता दिया था। अब वही गांधी जी के साथ भी हो रहा है। जिस पर महाराष्ट्र में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने संभाजी भिड़े पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया है। इस लिए पृथ्वीराज चौहान को जान से मारने की धमकी दी गई है। उन्हें भिड़े के खिलाफ बोलने के कारण दंडित करने का आवाहन किया जा रहा है।

भिड़े पर कई बार अफवाह फ़ैलाने और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के अभियोग लग चुके हैं। देवेंद्र फडणवीस से लेकर मोदी तक उसका चरण स्पर्श करते रहें हैं। इस समय महाराष्ट्र में भाजपा और संघ  खिसकते जनाधार को बचाने के लिए दंगाई माहौल और जगह-जगह तनाव पैदा कर रहा है।  क्योंकि भाजपा शिवसेना और एनसीपी से टूटे हुए अजित पवार गुट के सरकार  अपनी साख और एकबाल खो चुकी है । जनआक्रोश बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए महाराष्ट्र को दंगा और तनाव में झोंकने की कोशिश हो रही है।

2024 के लिए अंतिम संदेश- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक अखबार से बात करते हुए कहा कि अगर ज्ञानब्यापी को मस्जिद कहा जाएगा तो  तनाव पैदा ही होगा। उन्होंने धमकी भरे लहजे में कहा कि यह अच्छा नहीं है। स्थितियां स्पष्ट है कि भाजपा 9 साल के अपने विकास के पाखंडी माॅडल के ढह जाने के बाद हताशा में है।

देश महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक संकट और कानून व्यवस्था के ध्वंस से जूझ रहा है। इसलिए संघ और भाजपा ने 2024 के चुनाव के लिए एजेंडा सेट करना प्रारंभ कर दिया है। देश में जगह-जगह मजहबी और जातीय तनाव, दंगा और एक दूसरे समूहों को टकराव में ले जाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।

चूंकि मणिपुर की घाटियों और पहाड़ियों के मध्य आरएसएस का विध्वंसक घोड़ा जाकर फँस गया है। बेटियों के साथ प्रशिक्षित संघी कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए क्रूर व जघन्यतम अपराध ने संघ भाजपा की महिला विरोधी चरित्र को नंगा कर दिया है। जिससे देश और‌ दुनिया में भारत के लोकतंत्र के भविष्य को लेकर आक्रोश और चिंता बढ़ रही है।

चूंकि विपक्षी दलों के गठबंधन के लगातार ठोस आकार लेते जाने से मोदी-शाह की जोड़ी चिंतित है। इसलिए अपना आधार बचाने के लिए वह चिर-परिचित पुराने रास्ते पर लौट आई है । जिस मार्ग से वह 90 के दशक के शुरुआत में बाबरी मस्जिद गिराकर, 2002 में गुजरात में नरसंहार रचाकर और 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दंगा और नरसंहार के रास्ते सत्ता पर पहुंचने में कामयाब हुई थी।

अब ‘इंडिया’ के सामने बड़ी चुनौती है, कि वह सड़कों से लेकर संसद तक मोदी सरकार और संघ के मिलीभगत से चलाए जा रहे विध्वंसक अभियान का कैसे मुकाबला करता है‌।

फासीवाद एक मानव विरोधी विचारधारा के साथ-साथ जन आंदोलन भी है। जिसने लाखों की तादात पर फुटसोल्जर तैयार कर रखे हैं। जिन्हें सड़कों पर उतार दिया गया है। जिनका कारनामा हम लोग बरेली, नूंह, चलती ट्रेनों और  मणिपुर की घाटियों, पहाड़ियों में देख रहे हैं। इसलिए यह यक्ष प्रश्न है कि ‘इंडिया’ 2024 में  भाजपा-संघ के इन विध्वंसक और उन्मादी धार्मिक दस्तों का जवाब कैसे देता है और सड़कों पर चल रहे लोकतंत्र विरोधी उन्मादी आंदोलन को शिकस्त दे पाता है या नहीं। इसी पर भारत के लोकतंत्र का भविष्य टिका है।

31 जुलाई को जब हम शहीद उधम सिंह का बलिदान दिवस और  मुंशी प्रेमचंद की जयंती मना रहे थे तो हमारे सामने हमारी विरासत के इसी साम्राज्यवाद विरोधी और साझा हितों के संघर्ष की लोकतांत्रिक परंपरा को बचाने का सवाल था। जिसे मीडिया और समाचार पत्रों से बाहर करते हुए 31 जुलाई 2023 के दिन ऐतिहासिक महत्व  को संघ परिवार  खून, आग, दंगे और धुआं की आड़ में दबा कर नफरती विमर्श खड़ा  करने का षड्यंत्र रच रहा था। इस वर्ष 31 जुलाई को इन महापुरुषों की विरासत को बचाने की बड़ी चुनौती हमारे समक्ष है। उम्मीद है इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी को भारत (इंडिया) जरूर स्वीकार करेगा!

फ़ीचर्ड इमेज गूगल से साभार

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