भोजपुर के बड़हरा ब्लॉक में एगो गाँव बा मौजमपुर। एहिजा के रहलें एगो शिवनंदन कवि। उनकर एगो कविता बा जवना में पत्थल-पानी परला के चलते छान्ह-छप्पर आ रब्बी के फसल के भारी बरबादी के वर्णन बा। ई घटना 1941 के ह। कवि एह गीत में एकतालीस के जिकिरो कइले बा। एह गीत में घटना के साल के संगे-संगे कवि के नाव- गाँव के भी जिकिर बा। आ अतने ले ना, कवि ‘आत्म-छवि’ (आपन रंग-रूप) के भी उल्लेख कइले बा, आपन मजाक उड़ावे के शैली में। छान्ही प के खपड़ा-नरिया सब पत्थल के परकोप से चकनाचूर भ गइल रहे। गेहुम, मटर, तीसी, अरहर सब खेत- खरिहाने में रहि गइल रहे। ओह बर्बादी आ तबाही के बहुते सटीक आ सजीव वर्णन बा एह में।
ई गीत हम पहिला दफे एगो बरियात में नाच पार्टी में हरमुनिया (हारमोनियम) बजावे वाला से सुनलें रहीं। बहुत दिन बाद ई गीत हम कॉमरेड मनोहर जी से सुनलीं। मनोहर जी से मालूम भइल कि ई गीत शिवनंदन कवि के लिखल ह। हमरा बड़ा ताज्जुब भइल ई जान के। मनोहर जी से बातचीत आरा में भाकपा-माले के जिला ऑफिस जवन पूर्वी रेलवे गुमटी के लगे रहे, भइल रहे। मनोहर जी बतवलें कि शिवनंदन कवि कलकत्तो कुछ समय तक रहल रहलें। मनोहर जी के ई पूरा गीत इयाद रहे। हम गीत नोट क लिहले रहीं। कृपाशंकर प्रसाद जी के संपादन में निकले वाली पत्रिका ‘सूझ-बूझ’ खातिर हम भेज देले रहीं जवन ‘सूझ-बूझ’ के अंक 03-04 ( वर्ष 2013- 14) में छपल बा। गीत एह तरे बा-
सन एकतालीस साल अचके में आइल काल
छान्हे-छान्हे देले दरसनवा पथलवा
खपड़ा के चूर कइले नरिया के धूर कइले
मंगरा के लकड़ा बनवले पथलवा
रोई-रोई कहे तीसी हमरा के कवना खीसी
मटिया में ढठिया ते दिहले पथलवा
रहरी के ढेंढी में से बहरी निकाली देले
झँखिया के झँखुरी बनवले पथलवा
काबुली मटर जौ तोरा देखी गइले नव
अब जनी दरसन देखइहे रे पथलवा
ई त हाल नियरा के सुनीं हाल दियरा के
कँकरी के बियरा बिगड़ले रे पथलवा
कहे लें सीनन कवि कउवो ले गोर ह छवि
आरा जिला मउजमपुर मकान रे पथलवा।”
पत्थल के मार से तीसी के नन्ही-नन्ही ढेंढी माटी में छितरा गइल रहे। अइसन तब जादे होला जब ऊ पाक के तेयार हो जाला। एकरा के कवि जइसे लिख रहल बा तवन देखे जोग बा। माटी में जइसे कि पत्थल ओकरा के ढाठी दे देले होखे। ‘तीसी के ढाठी’ एह तरह के प्रयोग साइते कत्तौ देखे के मिली। बाढ़, सुखाड़, पत्थल-पानी के चलते जन-जीवन के तबाही के वर्णन भोजपुरी कविता के एगो खास विशेषता ह।
शिवनंदन कवि के एगो अउर गीत बा जवना में जनमानस प द्वितीय विश्वयुद्ध के ख़ौफ़ के साया के वर्णन बा। एह गीत में कुख्यात तानाशाह हिटलर के नाव आतंक के रूप में बा। लोगबाग युद्ध के खौफ से कलकत्ता से भाग रहल बा।
“अब ना बाँची कलकत्ता, बिधाता सुन ल
हिटलर के नाव सुनि लोग घबड़ाता, बिधाता सुन ल
बम गिरे धमाधम जीतिए के धरी दम
खइला बिनु लोग मरि जाता, बिधाता सुन ल
जाति के बंगाली भाई छोड़ नगर, बाप -माई
संग में लुगाई ले पराता, बिधाता सुन ल
बड़े-बड़े मारवाड़ी छोड़ के दोकान बाड़ी
अपना मुलुक भागल जाता, बिधाता सुन ल
चटकल छोड़े कुली आगा अउरी काबुली
छोड़ि के भागेलें बही-खाता, बिधाता सुन ल
कतने हिंदुस्तानी छोड़ि के भागे दरबानी
कतनो समुझावे हित-नाता, बिधाता सुन ल
उड़िया ओ नेपाली छोड़ि के भागे भुजाली
धोबी छोड़े गदहा डोम छोड़े काता, बिधाता सुन ल
रोशनी हो गइल कम शहर में भइल तम
चोर-डाकू करे उतपाता, बिधाता सुन ल।”
युद्ध के विनाशकारी खौफ से हर वर्ग के लोग में अफरातफरी बा, भागपराह बा। आगा (अफगानी) भाग रहल बाड़न, काबुल के लोग भाग रहल बा। ई लोग आपन कारोबारी बही-खाता छोड़ के भाग रहल बा। अपने देश के शहर कलकत्ता से हिंदुस्तानियो भाग रहल बा लोग जेकर जमा हैसियत ओह बखत दरबान के रहे। ई ओह बखत के एगो कटु यथार्थ रहल बा।
एह दूनो गीत से शिवनंदन कवि के कवि-दृष्टि के जरूर समझल जा सकेला। दूनो अपना-अपना तरह के दूगो साँच ह अपना समय के। दूनो के बहुते सजीव आ प्रामाणिक वर्णन भइल बा। पहिलका प्राकृतिक परकोप ह त दुसरका आपन प्रभुताई खातिर मानुस-मस्तिष्क के रचना। युद्ध युद्धजनित संकट। जनभाषा के कवि दूगो घटना – एगो स्थानीय आ एगो वैश्विक के जवन आमजीवन प प्रभाव पड़ल रहे, ओकर वर्णन कइले बा। ई एक लेखे इतिहास-लेखन ह। युद्ध के दबाव में कलकत्ता से आपन कारोबार आ रोजी छोड़ कतना लोग भगलें, कतना लोग भूख से मुअलें, कतना नुकसान भइल, एकर ठीक आँकड़ा भले ना होखे, बाकी एकर जिकिर त जरूर बा। कतना लोग दरबानी करत रहे गोरा साहेब लोग किहाँ, गाँव के बूढ़-पुरनिया लोग सुनावत रहे। शिवननंदन जी ई काम गीत में कइलें। प्राकृतिक परकोप से होय वाला नुकसान के तसवीर देले बाड़न। 1934 में बिहार में आइल भूकम्प के बारे में भी लोग लिखले बा। बंगाल अकाल प वामिक जौनपुरी ‘भूखा है बंगाल’ लिखले बाड़न। जैनुल आबेदीन के चित्रन में भी एह अकाल के मार बा। अशोक भौमिक जैनुल आबेदीन के बारे में लिखले बाड़न। एह तरह के लेखन आ चित्रकारी के एगो आपन ऐतिहासिक महत्व एहू रूप में बा।
मनोहर जी जइसन लोग से बहुत कुछ सुने-समझे के मिल सकेला। मनोहर जी के रमता जी के बहुत नजदीक रहे के मौका मिलल बा। बहुत कुछ सुने के मिल सकेला मनोहर जी से, मनोहर जी जइसन वाम राजनीतिकर्मी लोग से।