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‘क्रान्तिरथी’ और ‘मैं 1857 बोल रहा हूं’ के रचनाकार कवि बी एन गौड़ नहीं रहे

 
लखनऊ, 3 जनवरी। ‘हर शोषण के उत्पीड़न के/हो विरुद्ध जो क्रान्ति वो सुन्दर है/धरती जब ज्वालामुखी बनती/तब जानो कि ज्वाला भी अन्दर है/इस भाँति की क्रान्ति से जो परिचालित/हो, वह ही सच्चा नर है’ जैसे क्रान्तिकारी भाव के रचनाकार ब्रहमनारायण गौड़ जो आमतौर पर बीएन गौड़ के नाम से जाने जाते थे उनका आज निधन हो गया। वे 87 साल के थे और कुछ समय से बीमार थे। उन्होंने आस्था अस्पताल में अन्तिम सांस ली। अपना शरीर दान कर रखा था। उनकी इस इच्छा के अनुसार पार्थिव शरीर मेडिकल काॅलेज को सौंप दिया गया। वे अपने पीछे बेटा आलोक के अलावा बहू अर्चना और आयुषी व अपूर्वा नामक दो पोतियों समेत भरा-पूरा परिवार छोड़ गये हैं।
अम्बेडकरनगर {तत्कालीन फैजाबाद} जिले के ऐतिहासिक परगना बिडहर के सुतहरपारा गांव में नौ जुलाई, 1934 को उनका जन्म हुआ। 1955 में बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित लंगट सिंह डिग्री कालेज से बीए कर ही रहे थे कि उन्हें रेलवे में नियुक्ति मिल गई। वे दक्षिण पूर्व रेलवे के कर्मचारी थे। वहां के संघर्ष में शामिल हुए। 1968 में ग्यारह दिनों के लिए तथा 1974 की ऐतिहासिक रेल हड़ताल के दौरान 46 दिनों तक जेल में रहे। इस संघर्ष ने उन्हें माक्र्सवादी बनाया। उनके जीवन की धारा ही बदल डाली।
आगे चलकर मार्क्सवाद  लेनिनवाद ही उनके जीवन का प्रकाशस्तम्भ बन गया तो कवि व लेखक के तौर पर उन्होंने जो रचनाएं कीं, उनमें ब्लादिमिर लेनिन के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित महाकाव्य ‘क्रांतिरथी’ को लेकर वे सबसे ज्यादा महत्वाकांक्षी थे। गद्य और पद्य की उनकी अन्य प्रमुख कृतियां हैं-‘अमर शहीद ऊधम सिंह’, ‘अर्धशती’, ‘आयेंगे उजले दिन जरूर’, ‘द्वापर द्वारिका द्रौपदी’, ‘मैं, मेरा भारत और मेरे जनगण’, ‘मैं 1857 बोल रहा हूं’, शब्दों को बाजार के हवाले नहीं करूंगा’ और ‘कुछ सीप कुछ मोती’।
1992 में 31 जुलाई को रेलवे की सेवा से निवृत्त होने के बाद वे पूरी तरह साहित्य और संस्कृति कर्म को समर्पित हो गये थे। आम या कि श्रमजीवी जनता से जुड़े आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक मुद्दों पर वाम नजरिये के लेखन व संघर्ष का उन्हें जुनून-सा था। वे अपने अंतिम दिनों तक जनसंस्कृति मंच व लेनिन पुस्तक केन्द्र की कार्यसमिति के सदस्य थे। भाकपा माले सहित कई अन्य राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं से भी उनका जुड़ाव था। जन संस्कृति मंच ने उनके 75 वें जन्मदिन पर ‘जन संस्कृति सम्मान’ से सम्मानित किया था तथा उनकी 80वीं वर्षगांठ पर बृहद कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें जसम के राष्ट्रीय अयक्ष जाने-माने कवि व आलोचक प्रो राजेन्द्र कुमार मुख्य अतिथि थे। उसमें फैजाबाद से लेखक व पत्रकार कृष्ण प्रताप व अन्य विद्वान शामिल हुए।
बी एन गौड़ ‘विप्लव बिड़हरी’ उपनाम से भी ख्यात थे। ‘बिड़हरी’ जहां उनकी मिट्टी की पहचान थी तो ‘विप्लव’ उनके विद्रोही चरित्र की। वे जब तक जिन्दा रहे, इस पहचान को बनाये रखा। ये बातें उनकी साहित्य सर्जना में साफ दिखती हैं। लेखन के पीछे क्या उद्देश्य है, इसे अपनी कविता में उन्होंने इस तरह बयान किया है – ‘मैं नहीं लिखता कि लूटूँ/वाह.वाही आपकी/लिख रहा हूँ क्योंकि दिल में/आग जलती है सदा/जी रहे हैं जो फफोलों की कसक मन में लिए/दर्द उनका हूँ, उन्हीं का स्वर, उन्हीं का हूँ पता’। और भी – ‘मेरी पसन्द क्या है/क्यों पूछते हैं आप/मैं ध्वसं चाहता हूँ/निर्माण के लिए/मैं चाहता हूँ आग लगे सारे विश्व में/निष्प्राण भी संघर्ष करें प्राण के लिए’।
जन संस्कृति मंच ने श्री गौड़ के निधन पर शोक व्यक्त किया है. जसम के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने अपने शोक संदेश में कहा कि बी एन गौड़ जैसे प्रतिबद्ध जनवादी कवि और गद्यकार का जाना साहित्य समाज में बड़ाअन्तराल पैदा करता जिसे भर पाना आसान नहीं। वे हमंशा याद आयेंगे और एक बेहतर व सुन्दर समाज निर्माण के संघर्ष को प्रेरित करते रहेंगे। हम गौड़ जी के परिवार के इस दुख में शामिल हैं। यह मात्र उनका नहीं हम सबका दुख है क्योंकि गौड़ जी का परिवार बड़ा था जिसमें उनके साथियों की तादाद बड़ी है।
श्रद्धांजलि सभा 5 जनवरी को
कवि  बी एन गौड़ की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन 5 जनवरी दिन रविवार को दोपहर तीन बजे से दुर्गा भाभी द्वारा स्थापित स्कूल लखनऊ मांटेसरी स्कूल के शहीद शोध संस्थान, पुराना किला, सदर मे किया गया है।

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