समकालीन जनमत
कविता

रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताओं में मानवीय रिश्तों की मिठास और गर्माहट है

गणेश गनी


‘बिछोह में ही लिखे जाते हैं प्रेम-पत्र’

रुचि बहुगुणा उनियाल उत्तराखंड से सम्बद्ध हिंदी कवयित्री हैं। विभिन्न विषयों पर कविताएँ लिखने वाली रचनाकार ने प्रेम और प्रकृति पर अधिकतर कविताएँ लिखी हैं। रुचि पहाड़ों में रची-बसी रचनाकार हैं। उन्हें प्रकृति से बहुत प्रेम है। प्रकृति के करीब रहकर प्रेम कविताएँ लिखने की एक अलग ही अनुभूति होती है। यह कहा भी गया है कि प्रेम के स्पर्श से हर व्यक्ति कवि बन जाता है।

इस दौर में प्रेम कविताओं को लिखने पढ़ने का अधिक महत्त्व है। हमारा समय प्रेम के मामले में अब अधिक क्रूर और अमानवीय हुआ है। यह समय इसलिए भी असभ्य हुआ है कि हमने पढ़ने लिखने की परम्परा को भी भुलाना शुरू कर दिया है। मोबाइल ने कलम और कागज़ से हमें दूर किया है। आज युवा प्रेम पत्र लिखना तो दूर पढ़ना भी नहीं चाहते होंगे। रुचि ने प्रेम-पत्र कविता में प्रेम और पत्रों के मायने समझाए हैं :

कविताएँ लिखने वाले हाथ
महकते हैं बड़ी देर तलक!
और जब प्रेमिकाएं करती हैं
जज़्बातों को ख़तों में दर्ज़
तो डाकिए के हाथ
महकते हैं अरसे तलक
ख़तों को पहुँचाने के बाद!

‘दूरियों का महत्त्व’ कविता रुचि बहुगुणा उनियाल की एक और कविता है जिसमें चिट्ठियों का ज़िक्र केंद्र में है। हमारी पीढ़ी ने ख़ूब ख़त लिखे हैं। गाँव छोड़ने के बाद ख़त ही एकमात्र ज़रिया होते थे सम्वाद स्थापित करने के।

रुचि ने चिट्ठियों पर अलग अंदाज़ में कविताएँ लिखी हैं। ऐसा वही कवि कर सकता है जिसने स्वयं ऐसी परिस्थितियों का सामना किया हो। कविता का एक अंश पढ़ें :

दूरियों ने बताया कि…
कितनी ख़ूबसूरत थीं
चिठ्ठियाँ और उनका इंतज़ार!

प्रेम का महत्त्व कभी भी कम नहीं होगा। भले ही हम कितनी भी तरक्की क्यों न कर लें मगर संवेदना हमें मनुष्य बनाए रखती है। रुचि बहुगुणा उनियाल की यह किताब प्रेम, रिश्ते, सम्बन्ध, यादें, प्रकृति आदि से भरी हुई है। सरल कविताओं का अपना महत्त्व है। कभी-कभी सरल लिखना भी कठिन लगता है। हालांकि बहुत-सी कविताओं में सपाटबयानी भी है लेकिन उनमें भावनाओं का अपना स्थान है।

रुचि की एक और कविता ध्यान खींचती है। ‘ओ पहाड़ी लड़की’ कविता का एक अंश :

तुमने कहा
ओ पहाड़ी लड़की!
निर्झर, निर्मल, सरस, भोली!
और मैं तुम्हें बांध गई
अपनी चोटी पर बंधे रिबन से

‘झुमके’ कविता में नयापन है। इस गहने पर कुछ गीत भी चर्चित हुए हैं। रुचि की यह कविता पढ़ने का आग्रह करती है। ऐसी प्यारी कविताओं को पाठक पढ़ना चाहता है। विषय बेशक पुराने हों मगर ट्रीटमेंट में नयापन होना चाहिए :

वो कविताएँ जो कानों ने लिखीं
झुमकों से गालों पर
सबसे ज़्यादा चुंबनों को
सहेजे हुए थीं!

रुचि बहुगुणा उनियाल संवेदनशील रचनाकार हैं। उनकी कविताओं में मानवीय रिश्तों की मिठास और गर्माहट हमेशा रहती है। अपनी बात को बेबाकी और मुखरता से कहने का साहस रुचि में है। स्थानीयता इनकी कविताओं की ख़ास पहचान है।

 

रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताएँ

 

1. ओ पहाड़ी लड़की

तुमने कहा
ओ पहाड़ी लड़की!
निर्झर, निर्मल, सरस, भोली!
और मैं तुम्हें बांध गई
अपनी चोटी पर बंधे रिबन से

तुमने कहा
ओ पहाड़ी लड़की!
तुम गहरी नदी
कहीं भागीरथी सी, कहीं झेलम सी
कहीं कोसी जैसी तो कहीं
टोंस की तरह
और मैं तुम्हें लहरों संग
बहा ले गयी!

तुमने कहा
ओ पहाड़ी लड़की!
तुम्हारी पहाड़ी झरने सी
कल-कल स्वर में हंसी!
और मैंने बिखेरे हंसी के मुक्तामणी

तुमने कहा
कि प्रेम में हो मेरे!
बस…. मैं
सुवासित हजारी के
पुष्प की भांति महकने लगी!
मेरी आँखों में देखी तुमने
पहाड़ी हिरण सी चंचलता
जिसमें विशुद्ध प्रेम की चमक थी
तब मैं महकी किसी
फ्योंली के फूल जैसी!
तब मैं लहकी किसी
बुरांश के फूल जैसी!
तब मैं तुम्हारे सुन्दरता के
मापदंडों पर उतरी खरी!
तब मैंने अनुभव किया खुद में
वो पहाड़ी भेड़ का बच्चा
कूदता_ फांदता
कुलाँचे भरकर उल्लसित हो
बुग्यालों में विचरण करता!
जब तुमने स्वीकार किया
कि तुम प्रेम में हो मेरे
तब…….
मैंने अनुभव किया
ज़बान पर काफल के स्वाद
की मिठास को!
तब लगा जैसे बांज के जंगलों की
जड़ों से फूट पड़ा हो
मीठे पानी का झरना!
तब मैंने अनुभव की सुगंधि
फूलों की घाटी के
अनगिनत पुष्पों की!
जब तुमने स्वीकार किया
कि मैं तुम्हारे हृदय की स्वामिनी हूँ
तब कानों में महसूस किया मैंने
जैसे कहीं किसी पहाड़ी चीड़ के
जंगल में बज रही हों
घंटियां स्यूंत की!
जैसे पईंयाँ के पेड़ों की छाँव में
चुपचाप दोपहर की बेला
विश्राम कर रही हो!
जब तुमने कहा
कि मैं तुम्हारे स्वप्नों की आभा हूँ
जो वास्तविकता के धरातल पर
उतर आयी हूँ तुम्हें पूर्ण करने
तब मुझे अनुभव हुआ
जैसे पहाड़ों की ठिठुरती रात्रि को
बाहर हो रहे हिमपात में
रसोई में चूल्हे की आग को
घेर कर बैठे हों हम!
और तब अनुभव किया मैंने
तुम्हारे मेरे घर के बीच
अदृश्य बाँध स्नेह का
उस पुराने लकड़ी के पुल पर
जो जोड़ता है तुम्हारे मैदान
और मेरे पहाड़ को इस विश्वास से
कि तुम मुझे कभी गिरने न दोगे
अविश्वास और टूटन की
गहरी खाई में
और बचा लोगे मुझे
पीड़ा की नदी में गिरने से!

 

2. झुमके

१)_
वो कविताएँ जो कानों ने लिखीं
झुमकों से गालों पर
सबसे ज़्यादा चुंबनों को
सहेजे हुए थीं!

२)_
प्रेयसी के झुमकों पर
जड़ा मामूली नग
हीरे _जवाहरात से भी
अनमोल रहा प्रेमी के लिए!

३)_
झुमकों ने वो बातें भी सुनीं
जो प्रेयसी को शब्दों में नहीं
बल्कि चुपचाप देखते हुए
कही थीं प्रेमी ने!

४)_
सबको लगता था कि
सोते हुए सबसे करीब रहा
तकिया प्रेमिका के
जबकि तकिया और गालों के
बीच जगह रही झुमके की!

५)_
असल में प्रेमी को हमेशा
डाह रही प्रेमिका के झुमकों से
कि उन्हें मिला
अधिक चुंबनों का अधिकार
प्रेमिका के सिंदूरी गालों पर!

 

3. प्रेमपत्र

१)_
कविताएँ लिखने वाले हाथ
महकते हैं बड़ी देर तलक!
और जब प्रेमिकाएं करती हैं
जज़्बातों को ख़तों में दर्ज़
तो डाकिए के हाथ
महकते हैं अरसे तलक
ख़तों को पहुँचाने के बाद!

२)_
प्रेमपत्र से ज़्यादा
वो ख़त होते हैं प्यार से लबालब
जिनमें शिकायतों की
एक लंबी फेहरिस्त होती है!

३)_
प्रेम में पड़े दो लोगों को
मिलन से ज़्यादा
बिछोह की यादें ताज़ा होती हैं
क्योंकि बिछोह में ही लिखी जाती हैं
प्रेम पत्रों की न भुलाई जाने वाली
एक लंबी शृंखला!

 

4. दूरियों का महत्व

१)_
लिखे गए इन दूरियों में
कितने ही
न भुलाए जाने वाले ख़त!
बांधी गईं
अनगिनत मन्नतों की डोरियाँ
हर देवालय की चौखट पर!
२)_
दूरियाँ कभी कोसी गईं
कभी सराही गईं
कि दूर रहकर ही
समझ आया कितना ज़रूरी है
एक दूसरे का साथ!
३)_
दूरियों ने बताया कि…
कितनी ख़ूबसूरत थीं
चिठ्ठियाँ और उनका इंतज़ार!
४)_
महकते ख़तों ने
भेजे गए तोहफों ने
और जल्दी न लौटने के लिए
दिए गए उलाहनों ने
बढ़ाया दूरियों का महत्व!


कवयित्री रुचि बहुगुणा उनियाल, जन्म 18-10-1983 को देहरादून में।

प्रकाशित पुस्तकें : प्रथम पुस्तक – मन को ठौर (बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित), प्रेम तुम रहना, प्रेम कविताओं का साझा संकलन (सर्व भाषा ट्रस्ट से प्रकाशित) वर्ष 2022 में दूसरा कविता संग्रह २ १/२ आखर की बात (प्रेम कविताएँ) न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन नई दिल्ली से प्रकाशित।

मलयालम, उड़िया, पंजाबी, बांग्ला, अंग्रेजी, मराठी, संस्कृत अन्य कई भारतीय भाषाओं में कविताएँ अनूदित।

सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं और प्रतिष्ठित वेब पत्रिकाओं में कविताएँ, संस्मरण व आलेख प्रकाशित।

संपर्क:
ईमेल: ruchitauniyalpg@gmail.com

मोबाइल नंबर – 9557796104

पत्र व्यवहार :न्यू उनियाल मेडिकल स्टोर नरेंद्र नगर, जिला टिहरी गढ़वाल, पिन कोड-249175

 

टिप्पणीकार टिप्पणीकार गणेश गनी का जन्म: 23 फरवरी 1972 को पांगी घाटी (चम्बा) हिमाचल प्रदेश में।
शिक्षाः पंजाब विश्वविद्यालय से एम.ए., एम.बी.ए., पी.जी.जे.एम.सी. (इग्नू), जम्मू विश्वविद्यालय से बी. एड.
सृजनः हिन्दी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित, साहित्य – संवाद की एक पुस्तक ‘किस्से चलते हैं बिल्ली के पाँव पर’ 2018 में प्रकाशित और हिंदी साहित्य जगत में चर्चित। कविता की पुस्तक ‘वह सांप-सीढ़ी नहीं खेलता’ 2019 में प्रकाशित और पाठकों में चर्चित।
सम्प्रतिः कुल्लू के ग्रामीण क्षेत्र में एक निजी पाठशाला ‘ग्लोबल विलेज स्कूल’ का संचालन।

सम्पर्कः एम.सी. भारद्वाज हाऊस, भुट्टी कॉलोनी, डाकघर शमशी, कुल्लू -175 126 (हिमाचल प्रदेश)
मोबाइलः 09736500069
ई-मेलः gurukulngo@gmail.com

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