समकालीन जनमत
कविता

पुष्पराग की कविताएँ संवेदना और पर्यावरण को सहेजने की कोशिश हैं

निरंजन श्रोत्रिय


 

पुष्पराग की कविताओं का मूल स्वर एक ऐसे युवा एक्टिविस्ट का वह तेवर है जो अपने परिवेश में व्याप्त विषमताओं को लेकर सदैव सत्ता तंत्र भिड़ने को तत्पर है। इनकी प्रकृति बाय डिफाल्ट प्रगतिशील और जनवादी है।

पुष्पराग की कविताओं में वह इतिहास बोध भी है जो हमें अपनी परम्परा और संस्कृति से जोड़े रखता है जिसे हम आम भाषा में अपनी जड़ों से जुड़ना कहते हैं। यही कारण है कि कवि की काव्य-भाषा हमें उस रस-गंध में रची-पगी लगती है जो दरअसल हमारा अपना पर्यावरण है। यहाँ सायास या आयातित जैसा आपको कुछ नहीं लगता। सब कुछ नैसिर्गिक और सहज है।

पहली कविता ‘पुरस्कार’ में वे बुन्देलखण्ड के ओरछा का इतिहास खंगालते हुए कवि केशव के जरिये राजदरबार का वह दृश्य रचते हैं जहाँ राजनर्तकी रायप्रवीण झूम कर नृत्य कर सभी को रसविभोर कर रही है। दिलचस्प यह कि इस नृत्य-संगीत समागम में ग्रामीण महिलाएँ भी शामिल हैं अपनी ढोलकों, हारमोनियम और मंजीरों के साथ। याने एक राजकीय महोत्सव अंततः अपनी प्रकृति में लोकधर्मी हो जाता है। ‘गाइड’ कविता में गाइड जो कि ऐतिहासिक इतिवृत्तात्मकता का आख्यान पर्यटकों के समक्ष रच रहा है, एक सावधान पर्यवेक्षक की भूमिका में है। वह अतीत को अपने समय में अवतरित करने का दुरूह कार्य तो करता है लेकिन अपने वृत्तांत में से वह सब हटा देता है जो इतिहास की कब्र में ही दफ़न कर दिये गये हैं फिर वो चाहे पत्थर चढ़ाने में दबे हम्मालों की संख्या हो या शानदार नक्काशियों के कारीगरों के कटे हुए हाथ!

‘पहली बारिश की गंध’ कविता में झमाझम बरसात हो रही है। बारिश के तमाम प्रीतिकर दृश्यों के बीच अचानक कवि को लहलहाती फसल और उसे देख कर बनिये की मुस्कुराहट चुभ जाती है। यहाँ बनिया उस अर्थ और सत्ता-तंत्र की दुरभिसंधि का प्रतीक है जो किसान के श्रम से उपजी फसल पर लालच दृष्टि गड़ाए है। ‘लड़की’ कविता में एक स्त्री विमर्श रचा गया है। यहाँ एक पारंपरिक ग्रामीण परिवेश की लड़की है लेकिन अपनी प्रकृति में अल्हड़ और शोख है। यहाँ शोखी स्त्री के स्वातंत्र्य का प्रतीक है। इस स्वतंत्रता और स्वायत्त सत्ता के बरक्स उसकी वे कथित भूमिकाएँ हैं जहाँ स्त्री को विभिन्न भूमिकाओं में कैद कर दिया जाता है फिर चाहे वह माँ, बहन, बेटी या पत्नी कुछ भी हो। कविता का क्लाईमेक्स औरत की उसी स्वतंत्र सत्ता की तलाश करता है जो इन भूमिकाओं में धुँधला कर रह जाती है। यह एक मार्मिक कविता है।

‘नदी माँ’ कविता में कवि की नदी से जुड़ी स्मृतियाँ है जिन्हें वह एक धरोहर की तरह संजो लेना चाहता है। इसमें विस्थापन का दर्द भी झलकता है-‘ आज जब नहाता हूँ/ बाथरूम में/ अपने शरीर से/ तुम्हारे धुल जाने का भय रहता है।’ पुष्पराग नदी को महज औपचारिकता या धार्मिक वजहों से माँ नहीं मानते, वाकई अपनी माँ की तरह उसकी देख-भाल और प्रेम भी करते हैं। मैंने कई सालों से शहर के जलाशयों के प्रति समर्पण भाव से उनका किया गया काम देखा है। दरअसल पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा हमारे अस्तित्व से तो जुड़ा ही है, हमारे संवेदनों का भी अविभाज्य हिस्सा है।

‘ अपने जन्म के बारे में’ भी ममत्व से जुड़ी कविता है। युवा कवि ममत्व की उस आँच को न सिर्फ जानता-समझता है जो उसे अपनी माँ से मिली बल्कि वह उस ताप को सहेजे रखना चाहता है मानो वही उसकी पहचान हो। माँ की ममता का यह ताप ही जो मनुष्य के शरीर को अपनी आँच में पकाता है। ‘चिड़िया रानी’ एक बहुत ही छोटी लेकिन रोचक कविता है जिसे कवि ने खिलंदड़ी शैली में लिखा है। इसमें एक तंज़ भी है और व्यथा भी-‘एक जगह बैठ जाओ चिड़िया रानी/ मारी जाओगी।’ ‘न्यूज़ रीडर से’ भी एक छोटी कविता है जिसमें कवि टीवी समाचार वाचक से प्रश्न करता है कि ऐसी भयावह और अमानवीय खबरें पढ़ कर भी तुम अंत में मुस्कुरा कैसे लेते हो? यह बाज़ार और हमारे संवेदनों पर एक गहरी टिप्पणी भी है।

‘क्रान्ति’ कविता में मानो कवि की विचारधारा और प्रतिबद्धता एकदम मुखर हो उठती है। कवि की राजनीतिक दृष्टि और अर्थ-व्यापार के संसार की समझ बहुत साफ है। ‘हमारे उत्पाद ही हमारी मौत का सामान है’ जैसी काव्य पंक्ति इसका प्रमाण है। ‘एक अधपकी फसल’ उस किसान की दास्तान है जिसे हम कहते तो ‘अन्नदाता’ हैं लेकिन उसकी परेशानियों, संघर्ष और विवशता से हमारा कोई सरोकार नहीं होता, उल्टे अपनी वाजिब मांगों और आन्दोलन के जवाब में उसे खाईयां और कीलें मिलती हैं।

‘प्रेम बारिश’ एक छोटी प्रेम कविता है जिसमें एक प्यारा-सा स्वप्न है–दुनिया में प्रेम के रंग भरने का। यह दरअसल दुनिया को सुन्दर बनाने की एक प्रार्थना है। युवा कवि पुष्पराग की कविताओं में रचाव की बेहद संभावनाएँ हैं क्योंकि उनकी चिन्ता के मूल में मनुष्य, उसकी संवेदना और पर्यावरण हैं जिन्हें सहेजना आज की अनिवार्य प्राथमिकता है।

 

पुष्पराग की कविताएँ

1. पुरस्कार

राजनर्तकी रायप्रवीण और महाकवि केशव
रात-रात भर घूमते हैं ओरछा में
बेतवा में नहाकर बैठ जाते हैं चट्टान पर
छोटे-छोटे गड््ढों में भरे पानी में
हिलते हुुए छोटे-से आकाश को
निहारते हैं।
राम दरबार की आरती में गाते हैं केशव
और रायप्रवीण झूम-झूम जाती है
ढोलक की थाप है, हारमोनियम है
मंजीरे, चिमटे और ग्रामीण महिलाआंे का समूहगान है।

आनंद विभोर हुए
झूमते गाते केशव राजदरबार जाते हैं
झुक कर जुहार कर
एक कविता सुनाते हैं
और रायप्रवीण नृत्य की भंगिमाओं से
राजा को रिझाती है।

राजा कनखियों से देखता है दरबार
और मुस्कुराने लगता है

समय का कला-कौशल
उसके आगे
पानी भर रहा है।

 

2. गाइड

फर्राटेदार अंग्रेजी
और लच्छेदार हिन्दी में
बता रहा है गाइड
यह एक ऐतिहासिक धरोहर है

तमाम राजाओं के नाम गिनाते हुए
सन और संवतों के हवाले से
दीवाने खास, दीवाने आम
रनवासों की रानियाँ गिनाता है

अनगिनत कमरे दरवाजे महराबें
खिड़की बरामदे तहखाने
गली और चैक हैं इसमें
रानियों का प्रख्यात जौहर स्थल
बताते हुए पूछता है गाइड
एनी मोर क्वश्चन सर ?

गाइड नहीं बताता
कारीगरों के नाम
मजदूरों की फेहरिस्त
पत्थर चढ़ाने में दबे हम्मालों की संख्या
और वह स्थान
जहाँ गड़े हैं
कारीगरों के कटे हाथ।

 

3. पहली बारिश की गंध

पहली बारिश की गंध
उलबाती का संगीत
और बिजली के तारों पर
दो बूँदों का मिलन
मुझे अच्छा लगा

मुझे अच्छी लगी
भुट्टों के सिकने की गंध
तालाब की घास
मेंढकी के बच्चे और
वर्षा के बाद की
थोड़ी-सी धूप

मुझे अच्छा लगा
एक लहलहाता खेत
हँसता हुआ किसान
और बिजूका भी

पर फसल को देखकर
बनिये की मुस्कुराहट
मैं समझ नहीं सका।

 

4. लड़की

इस घर में एक लड़की है
मैली कुचैली लड़की
अल्हड़ और शोख

सुर्ख रंगों में घाघरा चुन्नी है
रंग-बिरंगे गोटे और जरी से कढ़े

लड़की की नाक में
मोटी और बड़ी नथ है
लड़की नाज से भरे कुठले से
गेहूँ निकालती है गीत गाती है
और मोटे पाटों वाली चक्की से
मनों गेहूँ पीस आटा सकेलती है

दीवार और जमीन लीपती हुई
छुई से ढकौना लगाती है
एक चित्र बनाती है

ब्याह कर
अपने/ पराये घर जाती है
ढेरों बच्चे जनती है
अच्छी बेटी, बहन, पत्नी
अच्छी माँ होती है
यह लड़की
इतना ही कुछ कर पाती है
अपने एक जीवन में।

 

5. नदी माँ

हे नदी माँ
जब से तुम्हें
तुम्हारे किनारे
और गाँव को छोड़ा है
ये कहाँ आ गया हूँ मैं

अजीब से सन्नाटे के बीच
मुझे याद है
तुम मेरे साथ सोती थी
हम साथ-साथ जगते थे
कुल्ला, दातून, स्नान
सभी साथ-साथ

मैंने तुम्हें
अपने आप में
अपने रोम-रोम में पाया है
तुम्हारे बदन की खुशबू
अपने शरीर में
हमेशा महसूसी है
अपने चारों ओर पाया है तुम्हें

आज जब नहाता हूँ
बाथरूम में
अपने शरीर से
तुम्हारे धुल जाने का भय रहता है।

 

6. अपने जन्म के बारे में

मेरा जन्म हुआ था ननिहाल में
उस दिन
हरियाली मावस थी
माँ को तो होश नहीं था
पर सावन के महीने का
वह सर्वाधिक कीमती क्षण था
और बाहर रिमझिम-रिमझिम
हो रही थी बारिश

कुछ दिन बाद
हम नाना की बग्घी में घर आए थे
बारिश बढ़ गई थी
मैं खा रहा था बग्घी में हिचकोले
माँ भीग-भीग जाती थी
हवा की हिलोरों से

माँ की गोद में
शाल में लिपटा था

मेरे जन्म के बारे में यह सब बताया माँ ने
यदि कुछ और पूछना हो आपको मेरे जन्म के बारे में
बताएगी माँ

मैं तो बता सकता हूँ आपको
उस ताप के बारे में
जो माँ की गोद में शाल में लिपटे हुए मुझे मिला
और उसकी बदौलत
खड़ा हूँ आपके सामने इतना बड़ा
बातें करता।

 

7. चिड़िया रानी

प्यारी चिड़िया रानी
तुम्हीं हार मान जाओ
पंखा चल रहा है
उड़ो मत

वे आराम कर रहे हैं
पंखा बंद नहीं करेंगे

एक जगह बैठ जाओ चिड़िया रानी
वरना मारी जाओगी।

 

8. न्यूज़ रीडर से

हम टुकुर-टुकुर देखते हैं
दूर दर्शन
और तुम गट्ट-गट्ट पढ़ते जाते हो
समाचार

समाचार के अंत में
मुस्कुरा कैसे पाते हो
मेरे भाई।

 

9. क्रान्ति

वे योजनाएँ बना रहे हैं
बहुत लोग सृजन कर रहे हैं
और बाकी खट रहे हैं

तार-तार कर रहे हैं मानवता को
और मानते हैं सब कुछ मुनाफे के लिए है

वे निर्माता हैं
और बाकी दुनिया
कूड़ेदान या मार्केट

हम चाहते हैं
उत्पादन के साधनों का सामाजीकरण हो
एक ऐसा समाज बने
जिसमें व्यक्ति का स्वतंत्र विकास
समाज के विकास की शर्त पर हो

हमारे पास अपना पसीना है बेचने को
और सारा बाजार
हमारी बूँद-बूँद से बना है

हम जानते हैं
हमारे उत्पादन का
सबसे पहला उत्पाद
हमारी ही मौत का सामान है।

 

10. एक अधपकी फसल

एक अधपकी फसल और
बूढ़़े किसान की आँखों में
पकता मोतिया बिन्द

फागुन में
महुए की कच्ची ताड़ी
और केरी जैसी कच्ची
गरीब की बेटी की उमर

बढ़ती महँगाई और
दहेज का चलन

गाँव में फैलता
इकतरा का बुखार
और सरकारी कर्मचारियों का दखल

किसान की धुँआती आँखों से
मीठी नींद और
प्यारे सपने
छीन लेता है।

 

11. प्रेम बारिश

तू
बना एक चित्र
और मैं
एक कविता लिखूँ

तू
रंग भर
और मैं
शब्दों को बिखेर दूँ


हम एक ऐसा संसार रचें
जहाँ सिर्फ तू और मैं हों
और प्रेम की हो रही हो
बारिश।

 

 

(कवि पुष्पराग, जन्मः 21 जुलाई 1971, गुना में, शिक्षाः विज्ञान से स्नातक उपाधि के साथ हिन्दी में पी-एच.डी., विधि स्नातक और
सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर उपाधि।

सृजनः एक आलोचना पुस्तक ‘बीसवीं सदी की हिन्दी युवा कविता’ प्रकाशित,
पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ एवं सामाजिक महत्व के आलेख प्रकाशित।

सम्मानः जल संरक्षण एवं अन्य सामाजिक कार्यों हेतु अनेक सम्मान। कला श्री अलंकरण,
साम्प्रदायिक सद्भाव हेतु ‘सूफी’ सम्मान, पर्यावरण सम्मान इत्यादि।

सम्पर्कः 23, हरिया काॅलोनी, कैन्ट, गुना (मप्र) 473 001.मोबाइलः 94257 98320 ई-मेलः Puspragguna@yahoo.in

 

टिप्पणीकार निरंजन श्रोत्रिय ‘अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान’ से सम्मानित प्रतिष्ठित कवि,अनुवादक , निबंधकार और कहानीकार हैं. साहित्य संस्कृति की मासिक पत्रिका  ‘समावर्तन ‘ के संपादक . युवा कविता के पाँच संचयनों  ‘युवा द्वादश’ का संपादन  और शासकीय महाविद्यालय, आरौन, मध्यप्रदेश में प्राचार्य  रह चुके हैं. संप्रति : शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गुना में वनस्पति शास्त्र के प्राध्यापक।

संपर्क: niranjanshrotriya@gmail.com)

 

 

 

 

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