उत्तर प्रदेश के विधायक अमनमणि त्रिपाठी ठसाठस भरी तीन इनोवा गाड़ियों का काफिले के साथ उत्तराखंड में चमोली जिले के कर्णप्रयाग में बैरिकेड पर से वापस लौटाए गए. उनका दावा था कि वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिवंगत पिता की अस्थियों का विसर्जन करने बद्रीनाथ जा रहे हैं.
इस पूरे प्रकरण से कई सारे सवाल उठते हैं. सवाल जो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से पूछे जाने चाहिए, लेकिन उससे पहले सवाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूछे जाने चाहिए.
हालांकि यह परंपरा है कि व्यक्ति जब सन्यास लेता है तो वह अपना श्राद्ध-तर्पण करके सन्यासी बनता है. यह माना जाता है कि सन्यासी के रूप में उसका नया जन्म है और उसके पहले के जीवन के रिश्ते-नातों से उसका कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन बावजूद इसके जब योगी आदित्यनाथ ने कोरोना का हवाला देते हुए,सन्यास पूर्व के अपने पिता के अंतिम संस्कार में न जाने की बात कही तो लोगों ने इसकी बड़ी तारीफ की. परंतु सवाल ये है कि जब आदित्यनाथ स्वयं अंतिम संस्कार में नहीं गए तो ये लोग कौन हैं,जो तेरहवीं और तर्पण के लिए जा रहे हैं ? ये किस अधिकार से जा रहे हैं ?
इस प्रश्न का जवाब योगी आदित्यनाथ से ही इसलिए पूछा जाना चाहिए क्यूंकि तेरहवीं और तर्पण के लिए जाने वाले लोग उनके द्वारा शासित राज्य उत्तर प्रदेश से आए हैं, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य हैं,विधायक हैं. जी हाँ ! अमनमणि एकलौते नहीं हैं,जो आदित्यनाथ के पिता के नाम पर किसी कार्यक्रम में शामिल होने आए. उनसे पहले 02 मई को योगी की सरकार में सिंचाई मंत्री बलदेव सिंह औलख के 13 लोगों के काफिले के साथ योगी आदित्यनाथ के सन्यास पूर्व के गाँव पंचूर जाने की खबरें आई थी.
जब केंद्र सरकार लोगों को शादी, अंतिम संस्कार जैसे कामों में सीमित संख्या में शामिल होने का निर्देश दे रही हो, कई लोग अपने स्वजनों के अंतिम संस्कार में तक शामिल न हो पा रहे हों,तब योगी आदित्यनाथ के मंत्री और विधायक किसकी शह पर उनके पिता के तेरहवीं और तर्पण करने के लिए उत्तर प्रदेश से पौड़ी जिले के दूरस्थ गाँव को निकल रहे हैं ?
अमनमणि त्रिपाठी , उत्तर प्रदेश के बाहुबली पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के बेटे हैं. अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के दोषी पाये जाने के बाद आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. अमनमणि त्रिपाठी स्वयं अपनी पत्नी की हत्या के आरोपी हैं.
उत्तर प्रदेश के सिंचाई मंत्री योगी के गाँव गए और अमनमणि भी आए तो लॉकडाउन काल में उत्तर प्रदेश भर में यदि वे कहीं नहीं रोके गए तो निश्चित ही ऊपर का इशारा तो रहा होगा !
उत्तराखंड के जिस अफसर की अनुमति लेकर अमनमणि त्रिपाठी कर्णप्रयाग तक जा पहुंचे उनका नाम है, अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश. ओम प्रकाश प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सबसे चहेते अफसर हैं. ओम प्रकाश ने केंद्र सरकार द्वारा जारी लॉकडाउन के निर्देशों के विरुद्ध जा कर अमनमणि त्रिपाठी के काफिले को बद्रीनाथ जाने की अनुमति दी. केंद्र सरकार का निर्देश है कि चार पहिया गाड़ी में ड्राईवर के अलावा केवल दो ही लोग हो सकते हैं. अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने 11 लोगों को अनुमति देने का आदेश जारी कर दिया. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को जवाब देना चाहिए कि वे केंद्र के लॉकडाउन निर्देशों का पालन जरूरी समझते हैं या अपने अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के लॉकडाउन निर्देशों को तोड़ने वाले आदेश के पक्ष में खड़े हैं ?
अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने बद्रीनाथ के कपाट खुले बगैर अमनमणि के काफिले को बद्रीनाथ जाने की अनुमति दी, क्या मुख्यमंत्री इसे ठीक समझते हैं ? कर्णप्रयाग के उपजिलाधिकारी वैभव गुप्ता और चमोली की जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया ने केंद्र सरकार द्वारा जारी लॉकडाउन निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करवाने के लिए अमनमणि की सत्ता की हनक की भी परवाह नहीं की. इन अफसरों ने फिर यह साफ करने का संदेश दिखाया कि अफसरों को नियम-कायदों का पाबंद होना चाहिए,किसी व्यक्ति विशेष का नहीं. मुख्यमंत्री को बताना चाहिए कि वे कोरोना काल में अपने कर्तव्यों का मुस्तैदी से पालन कर रहे अफसरों के साथ हैं या फिर केंद्र सरकार के लॉकडाउन निर्देशों की धज्जियां उड़ाने वाले अपने चहेते अफसर ओमप्रकाश के साथ हैं ?
कायदे से तो लॉकडाउन निर्देशों का उल्लंघन करने, अपने अधीनस्थों पर अनुचित दबाव बनाने और पद के दुरुपयोग के लिए कार्यवाही और मुकदमा तो अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के विरुद्ध दर्ज किया जाना चाहिए.